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सभी जगह अगता (पाखी) पालने के साथ ईश्वर प्रार्थना प्रवचन होता रहा । जसवन्तगढ वालों ने भी चातुर्मास की विनन्ती के लिये पहुंचने का तांता बांध दिया था । जसवन्तगढ संघ की मांग थी कि पूज्यश्री हमारे यहां पर दीक्षित हुए तो हमें उसके उपलक्ष में एक चातुर्मास अवश्य मिलना ही चाहिए । इस प्रकार जसवन्तगढ़ संघ की अत्याग्रह भरी विनन्ती देख कर पूज्य श्री ने संघ की विनन्ती स्वीकार कर ली ।
पूज्यश्री सेमड, सायरा, सिंगाड़ा ढोल, नान्दिस्मा, होकर गोगुन्दा पधारे । चातुर्मास समय नजदीक आ जाने पर तपस्वी मदनलालजी म. तथा तपस्वी मांगीलालजी म. ने तपश्चर्या प्रारंभ कर दी । तपश्चर्या में ही धीरे धीरे विहार करते हुए दोनों तपस्वी म. पूज्य श्री के साथ मजावड़ी खाखडी होते हुए जस. चन्तगढ पधारे । जसवन्तगढ के जैन अजैक सभी लोगों को चातुर्मास के लिये पूज्य श्री के पधारने से अत्यन्त प्रसन्नता थी। बहुत ही उत्साह उमंग के साथ स्वागत किया गया । जसवन्तगढ़ एक सुन्दर टेकरी पर बसा हुआ है । गोगुन्दा रावजी साहेब के पूर्वज पहले यहां पर रहते थे । यह गढ प्राचीन समय में सामरिक महत्व रखता था । वहां आज भी प्राचीन समय की बाटियां, मालपुवे, मिरचियें, हल्दी, तेल, सोर, बन्दुके आदि वस्तुएँ भण्डार में पड़ी हुई है । स्थान स्थान पर बुरजें बनी हुई है । गढ़ को एक ही दरवाजा है । वर्तमान में सभी घर जैनां के ही है केवल तीन घर वैरागी जाति के हैं ।
गोगन्दा रावजी ने दरीखाना बुरज का मकान चातुर्मास बिराजने के लिये दे दिया था । सुबह में पं० श्री समीरमुनिजी म. व्याख्यान देते थे । दुपहर में प्रथम पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी म. बाद में पूज्य श्री घासीलालजी महाराज व्याख्यान फरमाते थे । वसवन्तगढ़ के नीचे में चारों तरफ बारह गांव (भागल) बसे हुए हैं । इस बारह गांव के लोगों को दुपहर को हि समय मिलता होने से बहुत बडी सख्या में ओसवाल ब्राह्मण, राजपूत, सुथार कुम्हार, वैरागी, साधु, भील आदि जाति के सैकड़ों स्त्री पुरुष व्याख्यान में आते थे । पूज्य आचार्य श्री जवाहरलालजी म. सा. (बीकानेर) भीनासर में स्थिरवास बिराजित थे । पूज्य श्री को अपने प्रिय शिष्य श्री घासीलालजी म. के प्रति पूर्ण स्नेह था, यह उल्लेख पाठको ने पूर्व वर्णन में पढा ही है । बीच में आए हुए बिक्षेप के कारण गुरु शिष्य में विछोह हो गया था। वही विक्षेप अन्ततक अवरोध रुप में बनाही रहा और चाहते हुए भी गुरु शिष्य दोंनो नहीं मिल सके। यहि एक पूर्व अंतराय कर्म का कारण था एक दिन उदयपुर से समाचार मिले कि पूज्य श्री जवाहिरलालजी म. का आषाढ शुक्ला ८ ता० १०।६।४३ के दिन भीनासर में स्वर्गवास हो गया । इस समाचार से पूज्य श्री घासीलालजी म. आदि सभी मुनियों को तथा जसवन्तगढ के संघ को बहुत ही विक्षोभ हुआ । दूसरे दिन व्याख्यान बन्द रखा गया । और शोक सभा हुई शोक सभा में पूज्य श्री के महान जीवन का परिचय पू. श्री घासीलालजो म. ने तथा समीर मुनिजी म. ने दिया ।' दोनों तपस्वी मुनियों की तपश्चर्या के साथ साथ भाईयों बाईयों में भी पंचरंगियां बेले. तेले, पंचोले अठाई आदि तपश्चर्याएं बहुत हुई । पयूषण पर्व में आस पास के गांव के श्रावक श्राविका बहुत आए । धमे ध्यान तपश्चर्या भी बहुत हुई ।
श्रावण मास में अति वृष्टि के कारण खारी नदी में भयंकर बाढ़ आने से किनारे के सभी गांवो में जान माल का बहुत ही नुकसान हुआ । गांव के गांव जलमग्न हो गए थे। बाद से त्रस्त लोगों के लिए स्थान-स्थान से अनाज कपड़े दवा विगेरे पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही थी। जसवन्तगढ में भी पूज्य श्रीने अपने व्याख्यान में बाढ़ ग्रस्त लोगों को सहायता पहुंचाने का उपदेश दिया जिससे यहां के संघ ने घर घर से अनाज इकट्ठा करना प्रारंभ किया । सभी जाति के लोगों ने यथा शक्ति अपनी अपनी इच्छा से अनाज ला-लाकर बडा ढेर कर दिया । एक भील ने जंगल से लकडी का गठ्ठर (मोली) लाकर बेचा. उसके बदले में जो अनाज आया वह लेकर बाढ ग्रस्त लोगों के लिये मेजने के वास्ते जो अनाज हवाला हो रहा था उसमें देने के लिये लाया । भील बहुत ही गरीब था, लाया हुआ अनाज दे देता है
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