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________________ ३६९ आत्मा नदी है संयम उसका पवित्र तीर्थ है । सत्य उस नदी का जल है । शील उसका तट है। दया की लहरें छलछलाती है । है युधिष्ठिर ! उसमें ही स्नान कर । पानी से अंतरात्मा शुद्ध नहीं होता। मुझे भारतवर्ष की विभिन्न सेन्ट्रल जेलों में जाने का अवसर मिला है । प्राचीन युग की तुलना में आज की जेलों का बहुत बडा सुधार हुआ है । बन्दियों को गृह उद्योग का प्रशिक्षण दिया जाता है। अध्ययन के लिये पस्तकालय की सुविधा होती है। कला सत्संग और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा उनकी जीवन दीशा को मोडने का सफल प्रयास किया जाता है। इसके सुखद परिणाम निकले हैं। में इसे अहिंसा का ही सफल प्रयोग मानता हूँ । व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया भी यही है । किसी अपराधी को कानूनी ढंग से सजा देने मात्र से ही उसका जीवन सुधार नहीं हो सकता । जीवन सुधार के लिए हृदय परिवर्तन को आवश्यकता है। हृदय परिवर्तन के लिए सत्संग ही एक राजमार्ग है । वह बुराई. असद्वृत्ति और अनैतिक के प्रति घृणा पैदाकर भलाई, सवृत्ति और नैतिकता के लिए मन में एक प्ररेणा पैदा करता है । ताकि व्यक्ति स्वयं बुराईयों की ओर से मुख मोडे तथा भलाईयों की ओर अधिकाधिक उन्मुख हो सकें। पापसे मुक्ति ईश्वर भजन से होती है। बाल्मिकी जैसा हत्यारा लुटेरा भी ईश्वर भजन से अजर अमर हो गया है। जेल में जब कभी तुम्हें समय मिले उस समय में निरर्थक बाते न करके अपना निरीक्षण करों । यह जेल जो हमें मिली है । मनुष्य का स्वभाव है वह भूल करता है लेकिन भूल को मनुष्य ही सुधारता है । आपने गलत काम किया वह आपने अनायास किया या जानकर किया है किन्तु आज से हमें यह निश्चय करना होगा कि अब हम चोरी हत्या आदि अमाननीय कृत्य कभी नहीं करेंगे। हम मनुष्य हैं इसलिए मनुष्य बनकर रहेंगे । आपलोग इस समय अपने दुष्कृत्यों की सजा भुगत रहे हो । अगर अब भी आप सदाचार से रहने लगजावों तो आपके सदाचार से प्रसन्न होकर सरकार स्वयं आप की सजा कम कर देगी। जेल को भी अपना घर मानकर भाई भाई की तरह आपस में रहो । एक दुसरों के दुःख पर हसो मत किन्तु सहानुभूति रखो । और अपने पाप से मुक्ति पाने के लिए हृदय से ईश्वर प्रार्थना करो। आप अपने व्यवहार और आचरण से जेल को भी स्वर्ग बनादो । जब कभी तुम्हारे पर आपत्ति आवे उस समय सदा यह सोचते रहो-प्रभो मैंने अज्ञानता के कारण पाप किये हैं । और उसी की सजा भुगत रहा हूं । भविष्य में मुझे सदा अच्छा आचरण करने का मौका दे । मैं दुनियां को अब यह बता दूंगा कि बुरा आदमी भी अच्छा आदमी बन सकता है। आपको महाराणा साहब ने यह एक बडा अच्छा सुअवसर दिया है । इस प्रकार पूज्यश्री ने एक घंटे तक केदियों को उपदेश दिया उपदेश समाप्ति के बाद कैदियोंने सामूहिक रुप से दस मिनिट तक ॐ शान्ति की धुन लगाई । और खडे होकर तीन मिनिट तक मौन रखा बादमें जोरों की आवाज में यह नारा लगाया-व्यक्ति का देश व संसार का कल्याण हो। ___तत् पश्चात् पूज्यश्री ने जेलर साहब को फरमाया कि कल सारे मेवाड में आमतौर पर अगते पाले जावेंगे। एवं गुलाबबाग में महाराणा साहब के नेतृत्व में ॐ शान्ति की प्रार्थना होगी । इसलिए कल सर्व कैदियों को छुट्टी मिलनी चाहिये । इस सम्बन्ध में श्री महाराणा साहब का आपको हुक्म मिल गया होगा । जेलर साहब ने इस पर अर्ज को कि आपकी आज्ञानुसार कल छुट्टी करदी जावेगी । उसी समय खडे होकर सभी कैदियों को कह दो पूज्य महाराज सा० की इत्तला के अनुसार तुम्हें कल की छुट्टी दी जाती है । तदनुसार जमादार ने जेलर साहब के कथनानुसार बुलन्द आवाज से हुक्म सुना दिया । सब कैदियों ने यह हुक्म सुनकर बडे जोरों से हर्षनाद किया और बाहों को ठपकारते जमीन से उछलते-हमें छुट्टी और भोजन दिलाने वालों की जय' श्री महाराणा साहब की जय' पूज्य महाराज की जय' की बुलुन्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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