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________________ ३५७ से गुरु देव को विदा दी। मेवाड की यशस्वी यात्रा __ लींमडी का चातुर्मास समाप्त कर पूज्य श्री ने अपनी मुनि मंडली के साथ ता० ५-११-४१ को बिहार कर दिया । पूज्य श्री का उस समय स्वास्थ्य ठीक नहीं था । लीमडी संघ ने स्वास्थ्य के ठीक होने तक लीमडी में ही बिराजने की बड़ी विनंती की किन्तु पूज्य श्री का मनोबल बड़ा दृढ था। चातुर्मास का बिहार तो होना ही चाहिये । यह कह कर पूज्य श्री ने लींमडी से बिहार कर दिया और वहाँसे एक मील पर टांडी गांव पधारे । वहाँसे सायंकाल के समय पुनः बिहार कर एक मील पर स्थित बरोड गाव के पास सरकारी कोटड़ी में पधारे । यहाँ पधारने पर पूज्य श्री का स्वस्थ्य और भी बिगड़ गया । तबियत अधिक बिगडती देख श्रीयुत वीरचन्दजी पन्नालालजी करनावट उसी समय दाहोद गये वहाँ जाकर श्रीमान् देशभक्त ईश्वरलालजी वैद्य जो वहाँ के एक अच्छे भावुक सद् गृहस्थ है। एवं वैद्य विद्या में बडे भारी निपुण और अनुभवी है उनको लाये । वैद्यराजजी ने पूज्य श्री की तबियत की जांच कर चिकित्सा प्रारंभ कर दी। वैद्य के उपचार से एवं मुनिगण की अपूर्व सेवा से पूज्य श्री का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन अच्छा होने लगा । करीब पूज्य श्री यहां अठारह दिन बिराजे । इसअवसर पर मणीलालजी दुगड ने एवं करणावटजी ने तथा लोमडी श्रीसंघने अपने सारे व्यवसाय धंधे को छोड़कर अपूर्व सेवा की । करोड निवासी पाटीदार पुरुषोत्तम भाई वैष्णव हैं उन्होंने रातदिन अपना व्यवसाय छोड़कर पूज्य श्री की सेवा में लगे रहे । योग्य उपचार से पूज्य श्री पूर्ण स्वस्थ हो गये । वहाँ से ता०२२-११-४१ को विहार कर पूज्य श्री झालोद पधारे । वहाँ विरदीचन्दजी कोचेटा, प्रेमचन्दजी शोभालालजी भंडारी बडे श्रद्धालु श्रावक है । यहाँके श्रीसंघने पूज्य श्री के बिराजने के लिये बहुत विनंती की, किन्तु उदयपुर पधारने के लिये महाराना साहब का पूर्ण उत्साह वर्धक तकादा आरहा था जिससे बांसवाडा को तरफ ता० २४-११-४१ को बिहार कर सालोपाट पधारे यहाँ गुलाम अली थानेदार है। पूज्य श्री से इन्होंने धार्मिक चर्चा की। पूज्य श्री के इसल्लाम धर्म विषयक जोन कारी से बडे प्रभावित हए । उसने पूज्य श्रीके उपदेश से मांस मदिरा एवं जीव हिंसा का सदा के लिए त्याग कर दिया । वहाँ से ता० २५-११-४१ को पूज्य श्री ने बिहार कर दिया । थानेदार साहब बहुत दूर तक पहुँचाने आये । मार्ग में बांसवाडा सरहद में आई हुई अनासनदी के तटपर पूज्यश्री वटवृक्ष की घनी छाया में रात्रोके लिए बिराज गये । वहाँ अचानक ही कुशलगढ के महाराज कुमार श्री भारतसिंहजी साहब अपनी मंडली के साथ पूज्य श्री के दर्शन किये थे । ये पूज्य श्री के परम भक्त है । इन्होंने पूज्य श्री से कुशलगढ पधारने की विनंती को । इसके पहले भी महाराजकुंवर साहब ने कुशलगढ पधारने के लिये पूज्य श्री से कई बार प्रार्थना की थी। आपने आग्रह भरे स्वर में पूज्य श्री से कहा-गुरुदेव हम लोग वर्षो से आपके दर्शन पिपासु हैं । आप के कुशलगढ पधारने से अच्छा उपकार होगा । महाराणी साहब को भी आपके दर्शन करने की और व्याख्यान सुनने की बड़ी अभिलाषा है । तब पूज्य श्री ने फरमाया-महाराजकुमार आपकी भक्ति स्तुत्य है किन्तु उदयपुर दरबार की तरफ से उदयपुर जल्दी पधारने का आग्रह है और वहाँ जल्दि पहुंचने से बडे उपकार की संभावना है इसलिए मैं मेवाड जाने की जल्दि कर रहा हूं। इस पर महराजकुमार ने फरमाया गुरुदेव कुशलगढ में भी आपकी इच्छानुकुल उपकार का कार्य होगा। चार दिन तक अगता पाला जायगा और ने अपनीसमस्त रियासत में चार दिन के लिए जीव हिंसा बंद करवा दूंगा । आप अवश्य पधारें । इस पर भी पूज्य श्री ने कुशलगढ पधारने की अपनी स्वीकृत नहीं दे सके । दो घंटे तक महराज कुमार पूज्य श्रीकी सेवा में रहकर वापस कुशलगढ चले आये । बागडदेश का बिहार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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