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________________ ३५६ छाई हुई है । मुझे मालूम हुआ है कि अन्य प्रान्तों से पंचमहाल प्रान्त सुखी है समृद्ध है । यह भी एक ईश्वर प्रार्थना व धार्मिक लगन का ही सुफल है-पूज्यश्री के इस व्याक्य का ठाकुर साहब एवं उपस्थित सभासदोंने हां कहकर अनुमोदन किया और कहा कि आपका कथन सोलह आना सत्य है । हमारे यहाँ धर्म व गुरु के प्रसाद से आनन्द है । पूज्यश्री ने अपने प्रवचन में अहिंसा पर भी पूरा बल दिया और दारू मांस जीवहिंसा जैसे घृणित कार्य न करने की जनता से अपील की । पूज्यश्री के गम्भीर प्रवचन से प्रभावित होकर सैकडों भीलों ने जीवहिंसा, दारू, मांस का परित्याग किया । व्याख्यान के बाद ठाकुर साहब की तरफ से प्रभावना दी गई । इस शान्ति प्रार्थना पर आये हुए महेमानों को चाय पानी का बन्दोवस्त किया । तथा बाकी सारा खर्च ठाकुर साहबने अपनी ओर से किया। आपकी तरफ से समय इस अवसर पर आये हुए सैकडों भीलों को चने और गुड दिया गया । इस प्रकार बडे प्रभावशाली ढंग से शान्ति प्रार्थना दिन मनाया गया । दशहरे पर जीवदया का प्रचार दशहरा पर कुरूढी के अनुसार चारों ओर हिंसा का बवण्डर उठता है इस हिंसा के भयकर तुफान में हजारों असहाय प्राणीयों की आहुति संसार को संकटमयी बनाने के लिये दी जाती है । न जाने वह घातक रिवाज कब से और किस अज्ञान ने प्रचलित किया । अफसोस है कि ऐसे अनार्य कार्यों में भान भूलकर आर्यावर्त निवासी ऐसे समय में अपना धर्म कर्म सब भूल जाते हैं । और अपने हाथों से अपने प्यारे धर्म को तिलांजली देते हैं । ऐसे पुरुष महा दयनीय अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं । उपरोक्त विघातक प्रथा को नाबूद करने के लिए भारत प्रसिद्ध स्व० परमशांत तपोधनी महानतपस्वी योगिराज श्री सुन्दरलालजी महाराज की स्मृति में बनी हुई आदर्श संस्था श्री मुम्बई जीवदयामण्डली' भी भरसक प्रयत्न कर रही हैं । इस अनुसार श्री गजानन्द कुलकर्णी बम्बई के सेठ चतुर्भुजजो, डाह्याभाई, नाथाभाई, कुसुमकान्त, जैन आदि ने दशहरा पर होती हुई हिंसा को रोकने के लिये पंचमहाल प्रान्त में खूब हि प्रयन्न किया। जिला मजिस्ट्रेट सा. भडूच पंचमहाल ने भी इसकार्य में पूर्ण सहयोग दिया । वीरपुत्र समीरमुनि व पं. श्री कन्हैयालालजी महाराज ने भी आस पास के गांवों २ घूम घूम कर हिंसा को रोकने का आशातीत प्रयत्न किया । इसके परिणामस्वरूप कारट, रणीयार, वरोड, टॉडी आदि गांवों में बिलकुल हिंसा बन्द रही । इस वर्ष पंचमहाल प्रान्त में दशहरे पर जीव दया मण्डली ने खूब प्रचार कर हजारों जोवों को अभयदान दिलवाया तथा स्व० तपोधनी योगीराज श्री की स्वर्ग तिथी विजयादशमी के दिन जीव दया के कार्यों से तथा धर्म ध्यान से अतीव उत्साह के साथ मनाई गई । साधारण जनता से लगाकर राजा पूज्यश्री का यह चातुर्मास सभी दृष्टि से सफल रहा। नगर की महाराजा और राजकुमारों ने गुरुदेव के प्रभावशाली प्रवचनों को सुने । उदयपुर महाराणा साहब की विनंती - श्री हिन्दवाकुल सूर्य आर्य कुल कमल दिवाकर दाम इकबालहू हिजहाइनेश महाराणा साहब श्री भूपालसिंहजी साहब की पूज्यश्री के प्रति अपूर्व श्रद्धा थी । महाराणा साहब ने गतवर्ष भी मेवाड में पधारने की विनंती के लिये श्री दारोगाजी साहब श्री कनैयालालजी चौविसाजी को भेजे थे । इस चातुर्मास की समाप्ति के अवसर पर महाराणा साहब ने उदयपुर पधारने की विनंती के हेतु पुनः कनैयालालजी चोविसा को भेजे । महाराणा ने कहलवा कर भेजे कि पूज्यश्री उदयपुर अवश्य पधार कर हमें दर्शन दें । तथा पूज्यश्री उदयपुर पधारें ऐसा तार भी भिजवाया गया । कई पत्र भी आये । तत्र उदयपुर के विशिष्ट उपकार को ध्यान में रखकर पूज्यश्री ने चातुर्मास के बाद उदयपुर मेवाड में पधारने के लिए बागड प्रांत की तरफ बिहार करने की अपनी भावना प्रगट की । चातुर्मास समाप्त हुआ । श्रावकों नें बडे समारोह के साथ अश्रुभिनेनयनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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