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________________ ठाकोर रणजितसिंह केशरीसिंह लिलवा २३-९-४१ संजेली २३ - ९ - ४१ आपने त्या बिराजमान जैनमुनि पूज्यश्री १००८ श्रीघासीलालजी महाराज भने तप स्वीजी महाराज ने अमारा प्रणाम कहेशो आपना तरफ थी तपस्यानी पत्रिका मळी हती। आपना लख्या प्रमाणे भादवा सुदि १३ता० ३९-४१ ना रोज संजेली तथा रियासत मां पाखी पालनामां आवी अने ईश्वर प्रार्थना करी । ॐ शान्ति दिन मनावामां आव्यु ते आप जाणशोजी । हवे हमारा वती पूज्य महाराज सा. ने अर्ज करशों के चौमासा पछी फरीथी अमने दर्शन आपवा संजेली पधारें । आपनो सनतकुमार मेनेजर संजेली लसानी (मेवाड ) ३५५ 1 पत्र आपका मिला। आपके वहां बिराजमान पूज्यश्री घासीलालजी महाराज साहब ठाना ५. की सेवामें ठाकुर साहब श्री खुमानसिंहजी साहब की व मेरी तरफ से बन्दना अर्ज करें और अर्ज करे कि तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज साहब के ८७ दिन की तपस्या के पूर की खुशी में भादवा सुदि १३-१४-० ३९-४१ के दिन ठाकुर साहब श्रीने अगता पलाना स्वीकार किया है। उसीके अनुसार पट्टे के सर्व गांवों में सेहनेलोगों के मारफत सहोरत कराके अगता पलाया गया है। यह अरज पूज्य महाराजसाहब से करदें कि आपके फरमान माफिक तामिल करा दी गई है । संवत १९६८ भादवा सुदी १५ मोतीलाल सुराणा का ठि० लसानी मेवाड इस पुनीत अवसर पर कतवारा जागीरदार साहब ने तपस्वी महाराजश्री के पूर के दिन जाहिर किया था कि मैं दशहरा पर जो एक बकरा मारा जाता था वह सदा के लिये मारनाबन्द करता हूँ । इस प्रकार जागीरदार साहब ने जीवदया के कार्य में उत्साह के साथ सहयोग दिया । तपस्वी श्रीमांगीलालजी महाराज । दूसरे तपस्वीश्री मांगीलालजी महाराजने २१ दिन का पारना कर पुनः श्रवण शुक्ला १३ से तपश्वर्या शुरू की आपके त्रेसठ उपवास का पूर आसोज शुक्ला १ सोमवार ता० २२-९-४१ को हुआ। पूरके दिन कसाईयोंने सहर्ष कतलखाने बन्द रखे । भट्टियें बन्द रखी । व्यापारियों ने अपना व्यापार बन्द रखा तथा सा कार्य चन्द रहे । उपवास पौध दया सामायिकें तथा आयंबिल ऐवं अन्य त्याग प्रत्याख्यान विपुलमात्रा में हुए । लीलवा में शान्ति प्रार्थना श्रीमान ठाकुर साहब श्री रणजितसिंहजी साहब ने पूज्य आचार्य श्री से अर्ज कि के एक रोज लीलवा गांव पधारकर शान्ति प्रार्थना करवावें । तदनुसार ता० २३-९-४९ के दिन शान्ति प्रार्थना के लिये लीलवा गांव के ठाकुर साहब नें तैयारी शुरू करदी । पत्रिकाएँ छपवाकर लीमडी, लीलवा, रणीयार नानसलाई, मुंडासेडो, झालोद, दाहोद, आदिगांवों में भेजी, उक्त तारीख के दिन पूज्यश्री लीमडी से लीलया पधारे। डीमी श्रीसंघ तथा आसपास के तमाम गावों से खेडूतवर्ग, एवं भील समूह बडी संख्या में आये । व्यास्थान स्थल ध्वजापताका से सणगारित किया गया । तथा व्याख्यान श्रवण करने वालों के लिये विशाल पण्डाल बनाया गया । सर्व आसपास के सभी गावों के हजारों नरनारियों के एकत्रित होने पर व्याख्यान शुरू किया । पहले छोटे मुनिवरों ने प्रासंगिक प्रवचन किया । बाद में पूज्यश्रीने अपनी गम्भीर वाणी से उपस्थित श्रोतावर्ग को सामूहिक शान्ति प्रार्थना का महत्व समझाया - पूज्यश्री ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि “सर्व प्राणियों का शरणभूत एकमात्र परमात्मा ही है । ईश्वर स्मरण से आत्मिक लाभ के साथ साथ एहिक लाभ की भी प्राप्ति होती है । पूज्यश्री ने आगे कहा- यहां पहले तालाव के किनारे शान्ति प्रार्थना थी। उस समय सूखा था किन्तु इस गया है सर्वत्र हरियाली ही हरियाली जब मैं आया था तब इसी तालाब पानी से भर 1 Jain Education International समय For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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