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________________ ३५४ कुंवरजी गेंदालालजी । श्री स्था. जैन संघ । लीमटी (पंचमहाल) आपकी पत्रिका प्राप्त हुई । पूज्यश्री तथा तपस्थीजा महाराज को नमस्कार कहें । तपस्वाजी महाराज की तपस्या के प्रति हार्दिक अभि. नन्दन । आपका जमशेद नशरवानजी मु० कराची कुंवरजी गेंदालालजी पूज्य महाराज साहब श्रीघासीलालजी महाराज व तपस्वीजी महाराज साहब की सेवा में दासानदास जीवनसिंह मेहता उदयपुर निवासी की वन्दना अर्ज करें । जाहिर सन्देश व जीवदया का विराट अयोजन को पत्रिका पहुंची । पढकर बहुत खुसी हुई । कोटान्नु कोटी धन्यवाद है कि ऐसे महानुभावों महात्माओं के वहाँ बिराजने से जीवदया का अपूर्व उपकार हुआ और हो रहा है । हम कारनवश सेवामें उपस्थित न होसके जिसके लिये दिलगीर हैं । दोनों बाबू की वन्दना अर्ज करें और चातुर्मास बाद मेवाड देश में पधारने की अर्ज करें । आपका जीवनसिंह मेहता उदयपुर ___इस अवसर पर चिटनीस प्राणशंकर दवे मु० खेडा, रेल्वे सुप्रीटेन्डेट चन्द्रसिंहजी मेहता उदयपुर' मणीलाल सुन्दरजोदेसाई कलकत्ता, नागोर से मूलचन्दजी व्यास, सीतामउ श्रीसंघ, शाहपुरा मेवाड से मनोहरसिंहजी चंडाल्या, उदयपुर से केशरीमलजी छगनलालजी संघवी, बोदवड से छगनमलजी दानमलजी, भादरण से श्री संघ, हुरडा से घूलचन्दजी वैद्य, इन्दौर से छोगालालजी पोखरना, लासलगांव से मास्टर रतनलालजी मुणोत, कराची से पोपटलाल प्राणजीवनशाह, उदयपुर से जीवनसिंहजो भण्डारी, रतनलालजी तलेसरा, कामलीघाट से सीरिलालजी अग्रवाल, जयपुर से मणिलालजी संकलेचा, अहमदाबाद से भोगीलाल छगनलाल शाह, रतलाम से सेठश्री माणकचंदजी छाजेड, हैदराबाद सिन्ध से सेठ विसना डी. डास्वानी, ठेकेदार टिकाराम जोसी आदि महानुभावोंने तपश्चर्या के शुभ अवसर पर अभिनन्दन भेज कर अपनी हार्दिक भक्ति भाव का परिचय दिया । इस अव सर पर बाहर गावों में भी अच्छा उपकार हुआ जिसका किंचित् मात्र दिग्दर्शन निम्न पत्रों से करवाते हैं । कोटरी बन्दर-श्री जैनाचार्य जेनधर्म दिवाकर पूज्य श्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज साहब ठाना ५ व श्री स्थानकवासी श्रीसंघ समस्त की सेवामें लिंमडी । सिद्ध श्री कोटडी बन्दर से लिखी सेठ ठाकरसी रामजी का सादर जयजिनेन्द्र बंचना । वि० लिखना है कि तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज का ८७ उपवास का महान तपोव्रत का पूर आज भाद्रशुक्ला १४ गुरुवार ता० ४-९-४१ को पाखी रख कर यथा शक्ति धर्मध्यान किया गया । और सिन्धुनदी में होती जीवहिंसा को बन्द करने का प्रबन्ध पूर्ण बन्दोवस्त रखकर के किया गया । यथा शक्ति खर्च करके मच्छी. मारों को रोजी देकर बेठा दिया था । आपकी आज्ञानुसार धर्मध्यान खूब अच्छा किया गया । आपके दर्शन के लिये हमलोग नहीं आसके जिसके लिये क्षमा याचना । आपका ठाकरसी रामजी का जयजिनेन्द्र ई कलमों के अनुसार भादवा सुद १४ ता ४-९-४१ के दिन हमारे गांव के ठाकुर साहब की तरफ से कचहरियों को बन्द रखी गई व कसाईगों भी दुकाने बन्द रखी हमने व्यापार बन्द रखा धर्मध्यान खुब किया और कराया । सो आपको ज्ञात रहे । महाराज श्री को वन्दना आपका स्थानक वासी जेन संघ शिवगढ ( मालवा) लीलवा १४-९-४१ आपना तरफ थी तपस्वी श्री मदनलालजी महाराज नी तपस्यानी पत्रिका मळी पत्रिकामा लख्या मुजब तारीख ३-९-४१ ना दिवसे अगता पालवा मां आव्या । अमारावती पूज्यश्री घासीलालजी महाराजने वन्दना कहेशो अने पूज्य महाराज साहब ने अरज करशो के मारु गांव पण लिमडी थी बे माइलज छे माटे चातुर्मास मां एक दिवस अहिंया पधारी शान्ति प्रार्थना कराववी अने व्याख्यानन लाभ आपशो एज । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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