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________________ मनुष्यों के लिये धर्म ही आधार भूत है । बिना धर्म के कोई भी प्राणी न तो सुख पाया है और न पायेगा । आज ईतिहास बोल रहा है । इस धर्म के लिये बडे बडे नरवीरों ने अपने प्राण न्योछावर करदिये हैं। धर्म को धारण करना सहज बात नहीं है । तथापि छोटे छोटे बालक से लेकर बडे बडे चक्रवर्ती महाराजा भो इस धर्म को अपना सकते हैं । धर्म में जाति भेद नहीं है । कारण कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते-अथवा "कम्मुणा बम्भणो होइ कम्मुणा होइ खत्तियो” के अनुसार सर्व प्राणिमात्र का धर्म में अधिकार है। धर्म चार प्रकार का कहा गया है । दान, शील, तप और भावना इन चार प्रकार के धर्माचरण से आत्मा मोक्ष मार्ग की ओर प्रवृत्त होता है । ये हि आत्मा के गुण हैं। जब ये गुण आत्मा में प्रगट हो जाते हैं तो उन महान आत्मा को देव भी नमन करते हैं । एसे आत्मवान पुरुषों की संकटावस्था में देव भी आकर सेवा करते हैं। पति सीता के अग्नि कुण्ड का पानी होना, सति चन्दनबाला को विकट समय में मदद प्राप्त होना । सुदर्शन सेठेको शूली का सिंहासन बनना । हरिश्चन्द्र महाराजा को स्मशान में आनन्द प्राप्त होना आदि अनेक पुरुषों को समय समय पर दैवीक मदद मिली थी । इस दैविक मदद को वे ही प्राणी प्राप्त कर सकते हैं जो धर्म के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं । इस कारण प्रत्येक मनुष्यों को धर्माचरण करना ही चाहिये । आज आप सर्व महानुभाव यहाँ तस्वीजी के दर्शन के लिये आये हो । अस्तु यहां आकर एकने एक जरूर प्रतिज्ञा करना चाहिए कारण की इस समय ऐसे तपोत्सव पर की गई प्रतिज्ञा अवश्य ही हमें अपने संकटों से मुक्ति पाने में सहायता करती है ।': पूज्यश्री के मार्मीक प्रवचन के पश्चात् मास्टर श्रीशोभालालजी मेहता उदयपुर, मास्टर देवेन्द्रकुमारजी कुशलगढ बाबू, राजमलजी मेहता कुशलगढ के सामुहिक प्रवचन हुए । तत्पश्चात् तपस्वीजी श्रीमदनलालजी महाराज साहेब एवं तपस्वी मांगीलालजी महाराज ने मण्डप में पधार कर सारी परिषद को दर्शन दिये । बाद में पृथ्वीराजजी नाहटा और नवलमलजी श्रीमाल ने सपत्नीक शीलवत ग्रहण किया । बाद में जयध्वनी के साथ सभा विसर्जित होगई । व्याख्यान के अन्त में प्रभावना दी गई। आज सारे दिन भील के टोले के टोले लम्बी दूर से दर्शन के लिये आते थे । सर्व मनुष्यों ने दर्शन कर खूब ही सन्तोष प्रगट किया । तथा दारु, मांस भक्षण जीवहिंसा, ग्यारस अमावस्या के दिन खेती न करना आदि की प्रतिज्ञा ग्रहण की । करीब तीन चार हजार किसान व आदिवासी भीलों ने पूज्यश्री के दर्शन कर विविध त्याग प्रत्याख्यान किये । दर्शनार्थी भीलों को खाने के लिये भुने हुए चने दिये गये । इस प्रकार बडे भारी समारोह के साथ तपस्वी मुनिश्री मदनलालजी महाराज की तपश्चर्या का अन्तिम दिवस मनाया गया। इस अवसरपर स्थानीय श्रावकों कि तरफ से दर्शनार्थियों के लिये भोजन प्रबन्ध बडा सराहनीय रहा। गुरुदेव का चमत्कार तपस्वीजी के पारने दिन ता० ५-९-४१ को कत्वारा निवासी श्रीमान् सेठ नानालालजी राजमलजी बूड ने बाहर के दशार्थियों के लिये भोजन का प्रबन्ध किया । भोजन करीब तीन चार हजार आदमियों के लिये ही बनाया गया था । किन्तु गुरुदेव के चमत्कार पूर्ण प्रभाव से दर्शनार्थियों ने दोनों समय भोजन किया फिर भी सामग्री उतनी ही उतनी नजर आई तो गांव के मोढ वणिक जाती को भोजन के लिए निमंत्रित किया । वह ज्ञाति भी जीमकर चली गई किन्तु भोजन सामग्री उतनो ही दिखाई दी तब गांव के लुहार, सुनार माली दरजी, तेली, कुम्हार आदि समस्त ज्ञाति को बुलाकर उन्हें जिमाया गया । सारे गाव वालों ने भोजन कर बडी तृप्ति का अनुभव किया । गुरुदेव की इस चमत्कार पूर्ण प्रभाव से सारा गांव आश्चर्य चकित हो गया। ___ इस अवसर पर बाहर गांव के आये हुए पत्र तथा उपकार वर्णन इस प्रकार है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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