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________________ ३५८ अनासनदी को पार करने के बाद बागड देश प्रारंभ होता है । बागड देश के सरहद की यह एक बडी भारी नदो है । गतवर्ष ही (यानी पूज्य श्री के पधारने के एक वर्ष पूर्व) ही इसका पुल बांसवाडा दरबार ने तैयार कराया है । नदो के दोनों तट घने वृक्षों से एवं ऊंची ऊंची टेकरियों से बड़े सुहावने लगते हैं । इसका प्राकृतिक दृश्य बड़ा नयनरम्य है यों तो सारा बागड देश प्राकृतिक सौदर्य से सुशोभित है । इस देश के चारों और भीलों की वस्ती है । यहाँ के आदिवासी शहरी जीवन के वातावरण से शून्य होने के कारण अपने आप में बड़े सुखी नजर आते हैं । इस देश में स्थानकवासी और श्वेताम्बर मूर्ति पूजकों की वस्ती नहीं वत है । यहाँ के सर्व गांवों में विशेषकर दिगम्बर संप्रदाय के ही घर दिखाई देते हैं । एक समय था जब की सारा बागडदेश शुद्ध स्थानकवासी परम्परा को माननेवाला था । यहाँ आज भी कईगावों में स्थानकवासी सप्रदाय के उपाश्रय भी दृष्टि गोचर होते हैं । भूगडा, मोटेगाँव कलिंजर, खूदनी आदि गांवों में अभी भी वृद्धपुरुष कहते हैं कि यहाँ मुहपत्ति बांधकर एक साथ सो सो दौसी दौसी मनुष्य दया व्रत पालते थे व घर घर मुहपत्ति बांधकर सामायिकें होती थी । मुनियों के अच्छे चामुर्मास भी होते थे । किन्तु ज्यों ज्यों स्थानकवासी मुनि का आवागमन कम होता गया और दिगम्बर मुनियों का आवागमन बढता गया त्यों त्यों लोग स्थानकवासी धर्म को छोड़कर दिगम्बर मत को स्वीकार करने लगे । यहाँ दिगम्बर सप्रदाय का प्रसार १७ वीं सदी के आसपास से प्रारंभ हुआ था ऐसा अति प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों से मालूम होता है । यहाँ आज भी कई स्थल पर हस्तलिखित ग्रन्थों के भण्डार हैं और कई उपाश्रयों में बड़ी अव्यवस्था के साथ हस्तलिखित ग्रन्थ पडे हैं । आज इस प्रदेश में सर्वत्र दिगम्बर जैन समाज को मानने वाले हैं। ये लोग श्वेताम्बर मुनियों से बड़ाद्वेष रखते हैं और आहार पानी भी नहीं देतें । भयंकर सर्दी में भी वे श्वेताम्बर मुनियों को ठहरने के लिये मकानतक नहीं देते थे। पूज्य श्री को इस प्रदेश में संप्रदायिक कट्टरता का बड़ा सामना करना पड़ा। सर्वत्र सांप्रदायिक कटुता दृष्टि गोचर होती थी यहाँ के दिगम्बरजैन लोग स्थानकवासीजैन मुनि से बात करना तो दूर रहा किन्तु आंख खोलकर देखना भी पसन्स नहीं करते हैं । इतना कष्ट होने पर भी पूज्य श्री दृढता पूर्वक भूख और प्यास के परीषह को सहते हुए बागड देश में खूबधर्मप्रचार किया । बागडदेश के छोटे बडे ग्रामों में जैन अजैन एवं आदिवासियों को अपने पावन प्रवचनों से लाभान्वित किया और सैकड़ों को जैन धर्म का अनुयाई बनाये बांसवाडा शहर में प्रवेश ___बागडदेश का मुख्य शहर बांसवाडा और डूंगरपुर है। दोनों गजधानियां है । बांसगाडे के महाराजा पृथ्वीसिंहजी है । और आपके दो पुत्र है। बाँसगाडा के उत्तर पूर्व एवं दक्षिण की तरफ बडी बडी ऊंची पहाडियाँ है । ये पहाड वृक्षों से सुशोभित हैं । पहाडों की वनश्री से यह शहर बडा ही सुहावना लगता है । यहां बहुत हि आम्रवृक्ष है। आम्रवृक्ष की विपुलता देख अगर इसका दूसरा नाम आम्रवाड रखा जाय तो असंगतियुक्त नहीं होगा। यों तो बांसवाडे का नाम गुणनिष्पन्न ही है कारण कि इसके चारों तरफ बांस की उत्पत्ति अधिक है। शहर के पास दो बडे बडे सुन्दर सरोवर है । पास ही एक छोटी नदी है। शहर के बोचमें ऊंचे राजमहल है । इससे शहर बडा ही आकर्षक लगता है । इस प्रांत का मुख्य शहर होने से यह बहुत बड़े व्यापार का भी केन्द्र है । मेवाड की तरह इसके भी सोलह बत्तीस ठिकाने है। इस शहर में स्थानक वासी जैन और दिगम्बर समाज के अधिक घर है । मंदिर मार्गियों के केवल दो घर है मालवे से ऋषभदेवजी तीर्थ यात्रा जाते समय मूर्तिपूजक साधु साध्वीयों का यहां सदा आवागमन बना रहता है। स्थानकवासी जैन समाज के २५ घर है जिनमें हीगलालजी कोठारी ताराचन्दजी कोठारी भवरलालजी मेघराजजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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