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________________ १५. की। तदनुसार श्रीमान् झालोद माहलकारी साहबने अपने तालुके में ता० ३१-८-४१ भादवा सुदि १० के दिन अगता पालकर ॐ शान्ति की प्रार्थना के लिये सर्व जनता को विज्ञप्ति पत्र द्वारा निवेदन किया । लीमडी में शान्ति प्रार्थना भादवा सुदी १० ता० ३१-८-४१ के दिन जगतभर की शान्ति के लिये अपनी व प्राणिमात्र की शान्ति के लिये अहिंसा के साथ शान्ति दिवस मनाया गया । उसरोज लोमडी का सर्व व्यापार बन्द रहा । चक्की खेती बाड़ी का सर्व धन्धा बन्द रखा गया । ठाकुर साहब श्री दीपसिंहजी साहब ने अपने हुक्म से कतलखाना बन्द करवाया, होटले बन्द रखी गई यानी सर्व आरंभकार्य बन्द रखे गये । दुपहर को ११ बजे उपाश्रय से भव्य सरघस निकाला गया । सरघस आमरास्ते व बजार में होता हुआ वापिस उपाश्रय के भव्य मण्डप में आया जहां सभा के आकार में बदल गया । जनता अपने अपने स्थान पर बैठ गई । पह स्थानीय छात्रों की प्रार्थना हुई । लघुमुनियों के प्रारंभिक प्रवचन के बाद पूज्जश्री ने अपना प्रवचन प्रारंभ किया । प्रवचन में आपने उपस्थित विशाल जन समूह को सम्बोधित करते हुए कहा “आजका सारा विश्व भौतिकता की ओर बढ़ता जा रहा है । इसकी अध्यात्मिक दिनोदिन शक्ति क्षीण होती जा रही है। मानव विलासी बनता जा रहा है। यही कारण है कि आज विश्व में सर्वत्र दुःख ही दुःख दृष्टिगोचर हो रहा है कहीं भी शान्ति नहीं है। मानव आजके इस अशान्त वातावरण से संत्रस्त है। उसे अगर सच्ची शान्ति प्राप्त करनी होतो वह ईश्वर प्रार्थना से ही प्राप्त कर सकता है। इस कनीष्ठ समय में हमारा आश्रय स्थल है तो एक ही ॐ शान्ति का जाप जब जब किसी पर संकट दिखाई दे तो उन्हें प्रभु भजन करना चाहिये । ईश्वर स्मरण से आत्मा को अवश्य अद्भूत शान्ति प्राप्त होती है । प्रभुस्मरण से सुदर्शन की शूली उसके लिये सिंहासन बनगई । चित्तौड़की महाराणी मीरा के लिये जहर के प्याले भी अमृत बनगये । अप्राप्यवस्तु भी ईश्वर प्रार्थना से प्राप्य हो जाती है। हमारा भारत वर्ष प्राचीन समय में नामस्मरण में बहत आगे था । आज का भारतवासी अपनी इस पवित्र परम्परा को विलासिता की चकाचौंध में भूलगया । आज फिरभी अगर हम उस पुराने भारत का अनुकरण करें तो वह शान्ति का समय हमारे लिये दूर नही रत परतन्त्रता की ओर में जिस दुःख का अनुभव कर रहा है उसका कारण भी यही है । विदुर सलता की तरह भारतवासियों के हृदय में ईश्वर प्रेम जागृत हो जाएँ तो वह परतन्त्रा की बेड़ी से आज भी मस्त हो सकता है। आप सब मिलकर जगत की शान्ति के लिये ईश्वर से प्रार्थना करेंगे तो शासनदेव जरूर हमारी सहायता करेगा । इस प्रकार दो घन्टे तक पूज्यश्री का धारा प्रवाह प्रवचन होता रहा । आजकी इस शान्ति प्रार्थना में सम्मिलित होने के लिये गांव के तथा बाहर गांव के करिब चार पांच हजार मानव समूह एकत्र हो गया था । ईस प्रार्थना में लीमडी के ठाकुरसाहब व कुंवर साहब तथा विलवाणी के ठाकुर सा० और झालोद के फौजदार साहब एवं मालकारी साहब भी पधारे थे । गांव के किसान भील आदि भी हजारों की संख्या में उपस्थित थे । इसप्रकार शान्ति प्रार्थना बड़ी भव्यता के साथ सम्पन्न हई शांति प्रार्थना के । दिन से ही जनता उमड उमड कर आने लगी स्थानीय वालियन्टर नित्य लिमडी से दाहोद स्टेशन पर आगन्तुक मेहमानों का स्वागत करने को जाते थे । यहाँ पर भी मोटरस्टेन्ड पर वालीयन्टर खडे मिलते थे । नित्यमेव लोकलट्रेन फास्ट ट्रेन से दर्शनार्थी बड़ी संख्या में उतरते थे । उतरने वाले मेहमान समय पर लिमडी पहुंच जाय इस खातिर सर्विस के प्रेसिडेन्ट साहब को कहकर खास चार मोटरों का बन्दोवस्त कराया था । मगर ईतने नित्य दर्शनार्थी उतरते थे कि एका एक मोटर को चार चार चक्कर करने परते थे । दाहोद से भरी हुई मोटरे ज्यों ही लीमडी उपाश्रय के पास पहुँचती त्योंही उनका स्वागत के लिये स्थानीय संघ तैयार मिलता था। इस प्रकार मेवाड, उदयपुर, मारवाड, गोधरा मोरबी, सैलाना झाबुआ थांलदा पटलावाद धार गौतम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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