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________________ ३४९ ठाकुर साहब श्री रणजीतसिंहजी भी सपरिवार पधारे। लीलवा की सारी जनता भी व्याख्यान सुनने आई साथ ही तोसलिया, नानसभाई, चनासे, राजपूतनी रणीयार आदि आस पास के गांवों से बडी संख्या में लोग आये । सर्व जनता व्याख्यान सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुई । इस प्रसंग पर आसपास के सर्वगांववासी को शान्ति प्रार्थना की सूचना देकर बुलाने की लीमडी निवासी प्यारचन्दजी चोपड़ा ने बड़ी मेहनत की और सारी व्यवस्था की पूज्यश्री का अहिंसामय उपदेश सुन कर दीता, हीरा, वेलजी, रंगजी, मीठिया, विचियो, वीरो आदि भीलों ने आजीवन दारु पीना मांस भक्षण एवं जीवहिंसा का परित्याग किया । कुंभारजातिवालोंने इग्यारस, अमावस को अम्बाडा नहीं लगाने का तथा उस रोज अपना धन्दा बन्द रखने का वचन दिया। इस प्रकार महत् उपकार हुआ । सायंकाल के समय पूज्यश्री अपनी शिष्यमण्डली के साथ लीमst पधारे । लीमडी में भी सुबह रणीयार की जनता पूज्यश्री के व्याख्यान श्रवन के लिये प्रतिदिन आया करती थी । पूज्यश्री के यहां चातुर्मास से लीमडी और आस पास के गांव में अपूर्व प्रेम एवं धर्म की अपूर्व श्रद्धा जागृत हुई मडी का अपूर्व पर्यूषण पर्व 1 पर्युषण पर्व पर बाहर से बांसवाडा, कुशलगढ थान्दला, झाबुवा, दादोह, झालोद संजेली लीमखेडा घार किलनगढ़ राजगढ़ रतलाम इन्दोर आदि शहरों के सैकड़ों श्रावक श्राविकाएँ पूज्यश्री के दर्शनार्थ आए पयर्षण के व्याख्यान में प्रारंभ में पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी मा. वैराग्यमय वाणी से अन्तगढ सूत्र फरमाते थे बादमें पूज्यश्री अपनी अमोघवाणी से जनता को उपदेश फरमाते थे । पूज्यश्री के प्रभावशाली प्रवचन को जनता मन्त्रमुग्ध होकर श्रवण करती थी । दुपहर में भी पं. रत्नमुनिश्रीकन्हैयालालजीम. अनुतोववाई तथा जम्बूचरित्र फरमाते थे । दुपहर के समय भी जनता खूब ही इकट्ठी होती थी । पूज्यश्री का इस क्षेत्र में चातुर्मास होने से इस मांगल्यकारी पजुषण पर्व में तपस्या और धर्म ध्यान की बाढ आगई थी । बेले तेले से लगा कर नौ तक की तपस्या एवम् आयंबिल बड़ी मात्रा में हुए । पजूषण के आठोंही दिनों में लोमडी श्री संघ ने तथा आस पास के गांव वालों ने एवम् स्थानीय श्रावकों ने अलग अलग रूप से प्रभावनाकी । संवत्सरी के दिन पूज्य श्री ने क्षमा धर्म पर प्रभावशाली प्रवचन दिया तथा संवत्सरी पर्व की विशेषता बताई । आपके प्रवचन से प्रभावित होकर ओंकारलालजी कोठारीजी ने सपत्नीक शीलव्रत ग्रहण किया । दुपहर को आलोयणा का वांचन हुआ । सायंकाल के समय प्रतिक्रमण कर समस्त जीवायोनी से क्षमा याचना की । यह दृश्य बड़ा अपूर्व था । संवत्सरी के पारने के दिन लोमखेडा निवासी जोरावरसिंहजी सूरजमलजी नाहने अपने अठाई तप के उपलक्ष में समस्त श्रीसंघ को प्रिति भोजन कराया । ८७ दिनकी तपश्चर्या का पूरः तपस्वीश्री मदनलालजी महाराज की तपश्चर्या ने लीमडी और आसपास के क्षेत्रों में अपूर्व उत्साह बढाया । चारों ओर से तपस्वीजी की तपस्या की पूर्ति का अंतिम दिवस कब होगा इस प्रकार की पूछ परछ करने वाले पत्र स्थानिय श्रीसंघ के नाम पर आने लगे । स्थानीय श्रीसंघ भी तपश्चर्या का पूर खूलवाने के लिये लालायित बन रहा था । पूज्यश्री व तपस्वीजी श्री से अर्ज कर श्रीसंघ ने भाद्रपद शुक्ला १४ गुरुवार ता०४ ९-४१ को पूर खुलवाया। फिर स्थान स्थान पर उपकार और जीवदया के लिये पत्रिका छपवा कर देश विदेश में भेजी । फिर स्थानीय श्रीसंघ का डेप्युटेशन झाबुवा गया । खवासा दरबार, कुशलगढ़ महाराजकुमार दाहोद मामलतदार साहब लीमडी ठाकुर साहब वोलवानी तथा लीलवा के ठाकुर साहब वकिल साहब श्री रामचन्द्रजी पाण्डे के पास गया और ता० ३-९-४१ अपने अपने जिले में अगता रखवा कर ॐ शान्ति की प्रार्थना करने व कराने की तथा उस दिन व्याख्यान में पधारने की अर्ज की। जिसको सभी महाशयोंने सहर्ष स्वीकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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