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वीरपुत्र समीरमुनिजी महाराज के प्रयास से श्री स्थानकवासी जैन उपदेशक मण्डल स्थापित किया गया जिसमें श्री वीरपुत्र तथा मण्डल के सदस्यों के प्रति गुरुवार को विविध विषय पर व्याख्यान रात्रि के समय होने लगे । पूज्य आचार्यश्री के सूचन से आषाढ कृष्णा ११ ता० २०-६-४१ से ॐ शान्ति का चौवीस कलाक अखण्ड जाप किया गया । जिसमें क्रमशः सर्वभाई बहनोंने सहर्ष भाग लिया । इसके पहले जरा भी बरसात नहीं हुई थी । असह्य गरमी पडती थी । लोगों में बेचैनी फैली हुई थी परन्तु ज्यों ही 'ॐ शान्ति' के जाप पूरे हुए उसी रोज प्रातः ही से वर्षा प्रारम्भ हो गई । जिससे स्थानिक जनता में अपूर्व श्रद्धा बढी । इस प्रकार पूज्यश्री के पधारने के पहले भी संघ ने अपनी व्यवस्थित ढंगसे शान्ति सप्ताह मनाया । पूज्यश्री के पधारने पर विशेष रूप से धर्म ध्यान होने लगा । उपाश्रय में जब जगह कम पडने लगो तब उपाश्रय के बाहर एक भव्य और विशाल मंडप बनाया गया । पूज्यश्री का व्याख्यान प्रतिदिन मण्डप में होने लगे । लीमडी की जनता व्याख्यान के समय अपना सर्व कारोबार बन्द रखती थी । जिससे सभी लोगों को समान रूप से व्याख्यान श्रवण का लाभ मिलता था । झालोद दाहोद: रणीयार: नानसभाई आदि आसपास के गावों के 'लोग सैकडों की संख्या में पूज्यश्री के दर्शन के लिये आने लगे ज्यों ज्यों चातुर्मास के दिन नजदीक आने लगे त्यों त्यों धर्म ध्यान की भी वृद्धि होने लगी। लोगों में नदी के बाद की तरह धार्मिक उत्साह बढने लगा । इधर तपस्वो श्री मदनलालजी महाराज की भी तपस्या बढने लगी। तपस्वीजी की प्रेरक तपस्या से श्रावक गण में भी तपस्या के प्रति अनुराग बढ गया । श्रावक श्राविकाओं ने भी बडी मात्रा में तपश्चर्या प्रारम्भ करदी । पूज्यश्री के बिराजने से सारा गांव यात्रा धाम सा बन गया था।
रणीयार में शांति प्रार्थना
___ रणीयार निवासी पाटीदार एवं अन्य भाईयोंने अपने गांव में शान्ति प्रार्थना मनाने की पूज्य श्री से प्रार्थना कि जिसको पूज्य श्री ने स्वीकार की । तदनुसार श्रावणशुक्ला ९ ता०१-८-४१ को रणीयार गांव अपने यहां शान्ति प्रार्थना दिन जाहिर किया । उस रोज गांव वालों ने खेती बाडी आदि सारा कार्य बन्द रखा । बैलों को छुट्टी दी गई । व्यापार बन्द रखा गया । ता० १-८-४१ के प्रातः रणीया. र गांव वाले अग्रसर लीमडी आये, और लिमडी श्रीसंघ को तथा पूज्यश्री को रणीयार पधारने की विनंती की । लिमडी श्रीसंघ ने दुपहर को ११ बजे आये हुए रणीयार निवासियों को सरघस के रूप में लिमडीमें घुमाया और रणीयार रवाना हुए । पूज्य श्री भी अपने शिष्य समूह के साथ रणीयार पधारे । रणीयार लीमडी से दो माइल पडता है । तथापि छोटे छोटे बच्चे भी अतीव उल्लास के साथ रणीयार जाने के लिये पूज्यश्री के साथ; तैयार हो गये । लीमडी तथा रणीयार के बीच के मार्ग में मनुष्यों का तांतासा लग गया था । रणीयार से स्कूल मास्टर अपने सर्व छात्रों के साथ पूज्यश्री को तथा लीमडी संघ को लेने के लिये बहुत दूर तक सामने आये । रणीयार निवासियों ने पूज्यश्री को अपने गांव में सरघस के
आकार में घमाकर नवाफलिया के व्याख्यान स्थल पर ले गये १ जहां पहले ही से लोगों को बैठने के लिये उचित ढंग से व्यवस्था कर रखी थी । पूज्यश्री के पधार जाने पर सारी जनता अपने अपने स्थान पर बैठ गई । लीमडी वोलियण्टर टीम यहां भी व्यवस्था करने के लिये खड़ी थी । पूज्यश्री ने अपना मंगल प्रवचन प्रारम्भ किया। पूज्य श्री ने अपने मंगल प्रवचन में ईश्वर प्रार्थना की आवश्यकता पर बल देते हुए फरमा कि "आजके अशान्त युग के लिये शान्ति प्राप्त करने का अभय मार्ग ईश्वर प्रार्थना ही है। साथ ही आपने अहिंसा धर्म को भी जीवन के लिये आवश्यक बताया ।” ॐ शान्ति की प्रार्थना में लीलवा के
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