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लिया । वहां से आप दाहोद पधारे । दाहोद पधारने पर प्रतिदिन दो समय पूज्यश्री के व्याख्यान होते थे । हजारों की संख्या में जनता व्याख्यान श्रवण करती जिसमें श्वेताम्बर मूर्तिपूजक दिगम्बर जैन अजैन सभी जनता बडी श्रद्धा से व्याख्यान का लाभ लेती थी। दाहोद के मामलतदार सा. श्री नौतमलाल भाई सोमे धर ठाकुर भी व्याख्यान श्रवण करते थे। पूज्यश्री के आदेश पर मामलतदार साहब ने तथा गांव के अग्रगण्य सजनों ने ता० ३०-६-४१ को शान्ति प्रार्थना करने का एवं उस रोज व्यापार जीवहिंसा बन्द रखने की विज्ञप्ति निकाली। तदनुसार दाहोद शहर का कापड बाजार एवं दाणा बाजार बन्द रखा गया। हलवाई तेली भडभुजाओंने अपना अपना धन्धा बन्द रखा। कसाईयोंने कतलखाना बन्द रखा । सात मिल मालिकोंने गुरुदेवके आदेशानुसार अपनी अपनी मिले सारे रोजा बन्द रखी। सारे शहरमें गुरुदेव के आदेशानुसार मिल कारखाना, दुकाने तथा अन्य व्यवसाय बन्द रखकर जनता ॐ शान्ति की प्रार्थना में शामिल हुई । विशाल पण्डाल जनतासे खचाखच भर गया था। जगह के अभाव में बहुत जनता बाहर खडी थी । विशाल जन समूह के बीच ॐ शान्ति की प्रार्थना प्रारंभ हो गई। प्रार्थना के बाद पूज्य गुरुदेव का मंगल प्रवचन प्रारम्भ हुआ । विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए पूज्यश्री ने ईश्वर प्रार्थना का हार्द मर्मपूर्वक समझाया । आज के अशान्त युगमें शान्ति पाने के लिये परम पवित्र हृदय से प्रार्थना की परम आवश्यकता बताई । साथ ही अहिंसा धर्म पर भी आपका मननीय प्रवचन हुआ जिसको सुनकर दाहोद की जनता की अहिंसा देवी के प्रति बहुत श्रद्धा बढगई । दाहोद जैसे गांव में संपूर्ण चौवीस घंटे कत्लखाने का बन्द रहना एक आश्चर्य माना जाता है । यह सर्व पूज्यश्री के पुण्य प्रभाव का ही चमत्कार था । पूज्यश्री जहां भी जाते हैं वहाँ की जनता अवश्य धार्मिकता की और प्रवृत्त होती है। पूज्यश्री के उपदेश से और भी बडे बडे त्याग प्रत्याख्यान हुए । हिंसक वृत्ति के लोगों ने हिंसा का परित्याग किया दारु मांस सदा के लिए छोड दिया। इस महति कार्यवाही में मामलतदार साहब श्री नौतमलाल सोमेश्वरभाई ठाकुर, मूर्ति पूजक समाज के अग्रगण्य से मगनलाल मनसुखलालभाई एवं दिगम्बर समाज के मुखिया दलाल भागीरथजी मोतीलालजी केशरीमलजी, खेंगारजी दयारामजो, लुनाजो चम्पालालजो ओछवलालजी पन्नालालजी आदि महानुभावों का सराहन सहयोग रहा। रात्रि को कोरट के जाहेर मैंदान में पं. रत्न मुनि श्री कन्हैयालालजी म० के जाहिर व्याख्यान होते थे । दाहोद में इस प्रकार महत्व का उपकार कर पूज्यश्री व. पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी म. लींमडी की ओर बिहार किया । दाहोद से पूज्यश्री ने तेले की तपस्या कर रखी थी। दाहोद से पूज्यश्री मोराखेडी पधारे । मीराखेडी तक दाहोद का श्रीसंघ पूज्यश्री को पहुँचाने के लिए आया था। पूज्य आचार्यश्री दाहोद से लींमडी की तरफ बिहार सुनकर लीमडी का श्रीसंघ हर्षीत हो उठा । और मीराखेडी पूज्यश्री की सेवामें वीर पत्र समीरमुनिजी 'जो कि पहले ही से लींमडी में विराजते थे । उनके साथ श्रीसंघ आ पहचा । मीराखेडी से पज्यश्री रूखडी पधारे । यहां तो लोमडी की जनता का तांता सा लग गया था । रूखडी में से बिहार कर पूज्यश्री अषाढ शुक्ला नवमी को चातुर्मास के लिये लींमडी पधारे । लींमडी में तपश्चर्या
लीमडी जब पूज्यश्री पहले फाल्गुन महिने में पधारे तबसे आज पर्यन्त श्री संघ को दर्शन एवं व्याख्यान का लाभ मिलता ही रहा कारण कि पहले पूज्यश्री और बाद में वीरपुत्र समीरमुनिजी सकारण यहां बिराजे | जिससे श्रीसंघ को अपूर्व लाभ प्राप्त हुवा । वीरपुत्र समीरमुनि के साथ तपस्वी श्रीमदनलालजी महाराज एवं तपस्वी श्री मांगीलालजी महाराज बिराजमान थे दोनों तपस्वीश्री ने अषाढकृष्णा १ ता० १० -६-४१ से तपश्चर्या शुरू कर दी थी मांगीलालजी महाराज ने २१ दिन की तपश्चर्या का पारणा किया ।
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