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के दिन पूज्य आचार्य महाराज श्री की आज्ञा से थांदला श्रीसंघ ने उस रोज गांव में सब आरंभ कार्य बन्द कराये । कत्लखाना बन्दरहा और श्रीसंघ ने पत्रिका छपवाकर चारों ओर आमंत्रण पत्र मेदिये । जिससे झाबुआ कुशलगढ लीमडी आदिसे काफ़ी संख्या में दर्शनार्थी उपस्थित हुए। नदी किनारे घोडा कण्ड बगीचे में श्रीसंघने शान्ति प्रार्थना के लिए परिषद को बेठने के लिये योग्य बन्दोवस्त किया। ता०८-६४१ के दिन चारों ओर से जनता आनेलगी। सभा स्थल खचाखच भरजाने पर पूज्यश्रोने अपना प्रभाव शाली प्रवचन प्रारंभ किया । पूज्यश्रोने अपने प्रवचन में इश्वर प्रार्थना का सुन्दर महत्व समझाया और अहिंसा धर्मकी आवश्यकता बतलाई । पूज्यश्री ने अपने प्रवचनमें फरमाया कि प्रत्येक जक्ति को सर्व संसार में व्याप्त अशान्ति को समाप्त करने के लिये पवित्रतासे इश्वर प्रार्थना करनी चाहिये । ईश्वर प्रार्थना में अपूर्व शक्ति है इससे आध्यारिमक सुख के साथ भौतिक सुख भी प्राप्त हो सकते हैं । आज जो मानव अशान्त दुखी भोर पीडित नजर आ रहा है । जिसका मूल कारण ईश्वर के प्रति अविश्वास ही है । अगर मानव ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था रखकर काम करता है तो उसमें उसे अवश्य हि सफलता मिलती है। ईश्वर प्रार्थना का अर्थ है समस्त प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव । सुख देने से ही सुख की प्राप्ति होती है । अगर हम अपने ही आत्मा की तरह दूसरे प्राणि को भी समझने लग जायें तो संसार के सर्व दुखों का अन्त अवश्यभावी है।" इस प्रकार पूज्यश्री का करीब दो घन्टे तक प्रभावशाली प्रवचन होता रहा । जनता मंत्र मुग्ध होकर प्रवचन का लाभ ले रही थी । इस शान्ति प्रार्थना में श्रीमान् देहरावासी संप्रदाय के पं. न्यायविजयजी महाराज भी पधारे थे।पं श्रीन्यायविजयजी म. एक अच्छे विद्वान और उच्च विचार के व्यक्ति हैं । उनका स्वभाव बडा ही मिलनसार है । पूज्यश्री के साथ इनका बडा मनमोहक वार्तालाप हुआ । शान्ति प्रार्थना में पं. न्यायवि जयजी म. ने भी प्रार्थना के महत्व को समझाने के लिए सुन्दर प्रवचन दिया । प्रवचन बडा ही प्रेरक रहा । आपकी प्रेरणा से अच्छे त्याग प्रत्याख्यान हुए । यह दृश्य बडा नयनरम्य था। थांदला के पास क्रिश्चियन पादरी साहब ने पूज्यश्री के उपदेश से उस रोज तमाम भील छात्रों को तथा अनुयाईयों को शिकार की मनाई करना और दारु मांस खाने के लिये मना किया । इसी प्रकार एक बडे मोलबीसाहब पेशावर के निवासी ने भी तमाम जनता को पूज्जश्री की आज्ञा मानने के लिये स्थल स्थल पर भाषण दे देकर उत्तेजना की । यहां पर श्री झाबुआ से दिवान साहब पूज्यश्री के दर्शनार्थ पधारे ।
इस प्रकार थांदले की विश्व शान्ति प्रार्थना में अपूर्व आनन्द आया । थांदला श्री संघ का विशेष बिराजने की भाव भीनी साग्रह विनती होने पर भी पूज्यश्रीने आगे बढ़ने के भाव से बिहार कर दिया। हजारों लोगों ने
यनोंसे पूज्यश्री को विदाई दी | थांदला से बिहार कर पूज्य श्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ साबुआ पधारे । पूज्यश्री के आगमन से झाबुआ में आनन्द छा गया । पूज्यश्री के दोनों समय प्रभावशाली प्रवचन होने लगे । हजारों की संख्या में लोग प्रवचन का लाभ लेने लगे । झाबुआ स्टेट के दिवान साहब
मनारायणजी मुल्लाजी साहब तथा खवासा महाराजा श्रीदीलीपसिंहजो साहब पूज्यश्री के प्रतिदिन व्याख्यान श्रवण करते थे । जैन अजैन लोग बडी संख्या में व्याख्यान श्रवण के लिए आते थे। चातुर्मास का समय समीप होनेसे झाबुआ संघ का अत्याग्रह होने पर भी पूज्यश्री ज्यादा नहीं चिराजसके और वहाँ से पज्यश्री ने बिहार कर दिया । झाबुआ से बिहारकर पू. महाराज श्री करडावद पधारे । यहाँ ॐ शांन्ति की प्रार्थना हई । इस ॐ शान्ति की प्रार्थना में झाबुआ का समस्त श्री संघ ऐवं पुलिस सुपरिडेन्ट साहब श्री नन्दकिशोरजी साहेब भी उपस्थित थे । शान्ति प्रार्थना के दिन करडावत निवासियों ने अपना सारा कारोबार बन्द रखा। भीलों ने पूज्यश्री के उपदेश से जीवसिंहा का त्याग किया। तथा और भी बहुत उपकार हुए।
करडावद से बिहार कर पूज्यश्री कत्वारा पधारे यहां के सेठ नानालालजी आदि श्री संघ ने खूब लाभ
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