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है। पितृ भक्त पुत्र वही कहलायगा कि जो अपने समान दूसरे भ्राता के साथ प्रेम रखता हो कारण कि पिता की दृष्टि में सर्व पुत्र एक सा होते हैं। इसी प्रकार ईश्वर भक्त भी वही है कि जो दूसरे प्राणियों के साथ मैत्रि भाव से रहता हो। अगर अहिंसा भक्त होकर हम इस संसार में जो भी कार्य करेंगे वह ईश्वर कृपा से जरूर सफल होंगे । यानि अहिंसा के साथ ॐ शान्ति की प्रार्थना की जाय तब ही इष्ट सिद्धि प्राप्त होगी । इस प्रकार दो घण्ठे तक पूज्यश्री का प्रभावशाली प्रवचन हुआ । प्रवचन सुनकर राजा और प्रजा बड़ी प्रभावित हुई संजेली के महाराजा साहब ने प्रबचन सुनकर जीवदया का पट्टा पूज्यश्री को भेट किया और तालाव में मच्छलीयां पकड़ी जाती थी उसे सदा के लिये बन्द कर दिया ।
सरकार की तरफ से हुक्म न. ११७५ द्वारा यह हुक्म जारी किया गया कि "संजेली रियासत के तमाम तालाव तथा नदी नाले व द्रह पर कोई भी मनुष्य मच्छी आदि की शिकार नहीं करेगा जिसके लिए सरकार की तरफ से पूरा इन्तजाम रहेगा । दुसरा दशहरा के दिन जो चोगानिया पाडा मारने में आता था वह सदा के लिये बन्द किया जाता है । यानी आयन्दा नहीं मारा जायगा । "
शान्ति प्रार्थना के दुसरे दिन श्रीमती महारानीजी सहिबा की तरफ से संजेली श्रीसंघ तथा बाहर के आये हुए दर्शनार्थियों को धाम धूम से प्रेम पूर्वक प्रीति भोजन (स्वामीवात्सल्य ) कराया। श्री संजेली दरबार पधारकर पूज्यश्री को विनंती कर महलों में ले गये । और अपने हाथ से आहार पानी बहराया तथा माजी साहब
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अर्ज कराई कि पूज्य महाराज साहब हमे भी उपदेश सुनावें कारण कि वयोवृद्ध दरबार अभी ही स्वर्ग वासी हुए हैं। जिसकारण में बाहर नहीं आसकती । माजी साहब की मयविनय प्रार्थना पर पूज्यश्री ने माजी साहब को भी उपदेश सुनाया । उपदेशको सुनकर माजी साहब बडे प्रसन्न हुए । इसी प्रकार ओर भी अनेक त्याग प्रत्याख्यान हुए । संजेली में आचार्य महाराज को बिराजने के लिए संजेली श्रीसंघ की तथा दरबार की बहुत विनंती थी मगर अन्यत्र मुनिराजों के पधारने से प्रत्येक स्थल पर विशेष उपकार होते हैं इस हेतु से पूज्य श्रीने झालोद कि ओर बिहार किया । झालोद पंचमहाल का एक मुख्य स्थान है । यहाँ श्रीमान प्राणशंकर गणपतलाल दवे मालकारी साहब है । आपकी योग्य तथा संत स्नेहिता की बात पहिले ही लीमडी प्रकरण में लिखी जा चुकी है। पूज्य श्री जबसे शालोद पधारे तबसे तमाम राज्य कर्मचारियों के साथ नित्यमेव पधारकर पूज्यश्री की सेवा एवं उपदेश का लाभ लेते थे । झालोद से लीमडी कुशलगढ़ होते हुए थांदला पधारते रास्ते में उदेपुर्या गांव के ठाकुर साहब मोतीसिंहजी साहब ने उपदेश सुनकर सदा के लिये दशहरा पर मरते हुए पाडे को मारने का मनाई हुक्म जाहिर किया ।
थांदले में अपूर्व उपकार
उदयपुर्या से बिहारकर पूज्यश्री थांदला पधारे । पूज्यश्री के थांदला पधारने से सारा थांदला शहर उत्साहि नजर आता था । कारण जब पूज्यश्री का रतलाम चातुर्मास था तबसे ही थांदला श्रीसंघ पूज्य श्री को थां
दला पधारने का बार बार आग्रह कर रहा था। पूज्यश्री के पधारने से महाराजश्री के विराजने से धर्म ध्यान खूब होने लगा। पूज्यश्री के की संख्या में जनता व्याख्यान का लाभ लेने लगी । गांव में लम्बे पंचायत में भी फूट थी । इसी वैमनस्य के शाली प्रवचनों से गांव का वैमनस्य सदा के
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श्रीसंघ की मनोकामना पूरी हो गई । दोनों समय प्रवचन होते थे। हजारों
समय से आपसी वैमनस्य चलता था कारण गांव की प्रगति रुकी हुइ थी । किन्तु पूज्यश्री के प्रभाव लिए मिट गया । जनता में पुन प्रेम छा गया।
दुसरा पूज्यश्री के प्रभावशाली प्रवचनों से चामुण्डा माता के स्थान पर जो प्रतिवर्ष बहुत जीवहिंसा होती थी वह सदा के लिए बन्द हो गइ । थदला ओसंघ ने पूज्यश्री के उपदेश से नदी आदि में जो मच्छियां पकड़ी जाती थी वह सदा के लिए बन्द करवा दी। इस प्रकार ओर भी बहुत उपकार हुए। ता० ८-६-४१
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