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जिससे समस्त लीमडी की जनता आनन्द विभोर हो गई । चारों तरफ के आये हुए सज्जनों को भी यह जानकर खुशी हुई की हमारे प्रान्त में अहो भाग्य से लीमडी में इस वर्ष चातुर्मास है । जिससे हमें भी पूज्यश्री एवं अन्यमुनियों के दर्शन तथा वाणी का अपूर्व लाभ मिलेगा । जिस समय यह विनती मंजूर हुई उसके पूर्व बासवाडा, थांदला, दाहोद, कुशलगढ, दिल्ली आदि क्षेत्रो से बड़ी संख्या में संघआया तथा पिपलोदा, गोधरा, उदयपुर. दिल्ली, अलवर, आदि स्थानों से सामूहिक विनंती पत्र आये और अपने अपने शहर में चातुर्मास बिराजने की विनती की किन्तु लींमडी श्रीसंघने अपने क्षेत्र में आये हुए लाभ को अपना कर विनती मंजूर करालो।
___अहिंसा का उपदेश देने के लिये जैन मुनि देश विदेशों में बिहार करते हैं और अनेक कष्टों को सहन कर अहिंसा का प्रचार करते हैं । तथा हिंसकों को अहिंसक बनाते हैं । अहिंसा धर्म सारे विश्व में फैले इस आदर्श की उपयोगिता दुनियाँ को समझाते हैं। इसी कारण लीमडी में कोई शान्ति प्रार्थना का विस्तृत समाचार टेलिग्राम द्वारा व पत्र द्वारा वाइसराय को सीमला भेजा गया । उन समाचारों से श्री नामदार वाइसराय को कितना आनन्द हुआ वह तो स्वयं ही उनके पत्र पढने से मालूम होगा । इसीलिए उस पत्र को अक्षरशः यहाँ उद्धृत किया जाता है। नामदार माकवीस ऑफ लीलीथगो P: C. Night G. M. S. I. G. M. E. O. B. F. D. L. T. D.
Viceregal Lodge
Simla.
Viceroy's House. वाइसराय का आया हुवा पत्र
New Delht 31st March 1974 Dear Sir,
I am desired by His Excellency the Viceroy to thank you for your letter in which you have informed him of the observance by Jain Divakar Shreeman Ghashilaljee of Limdi of the day of National Prayer.
Yours truly,
Sd Assistant Secretary. Secretary
The Shwetamber Sthanakvasi Jain Sangh Limdi, Via Dobad.
इस प्रकार नामदार वाइसराय ने पत्र द्वारा अपने हृदय में रहीं हुई धर्म भावना तथा सन्तपुरुष के प्रति आदरभावना व्यक्त की ।
संजेली रियासत में उपकार
संजेली लिमडी से वायुकोण में आया हुआ एक राज्य का मुख्य शहर है । यह भी बगीचे तथा बडे बडे तालावों और पहाडों से सुशोभित है । यहाँ के महाराजा का नाम है श्रीमान महाराज श्री नरेन्द्रसिंहजी आपके भ्राता के नाम-विक्रमसिंहजी मोहनसिंहजी, राजेन्द्रसिंहजी, श्रीमहावीरसिंहजी । ये चारा भ्राता तथा महाराजा पूर्ण भक्त है । स्टेट मेनेजर साहब श्री सनतकुमारजी पूर्ण स्नेही और विचक्षण है। संजेली शहर ही प्राकृतिक शोभा से सुशोभित तो है ही सुश्रद्धालु ऐसे नर वीरों के अधिपत्य से संजेली शहेर विशेष सुशोभीत है। वहाँ के सेठ साहब श्री गुलाबचन्दजी, लुनाजी प्रेमचन्दजी, उदयचन्दजी, कुंवरजी, मिश्रीलालजी,
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