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________________ ३.४४ आदि की विनती के कारण पूज्यश्री का पदार्पण होनेसे शहर तथा राज्य में जैनमुनियों के प्रति अजब प्रेम विकसित हुआ कारण की पूज्यश्री से पहले प्राय यहाँ मुनियों का पधारना बहुत कम हुआ है। यह क्षेत्र चारों ओर से पहाडी प्रदेश से घिरा हुआ है । रास्ते में जैन लोगों के घरोंका एक भी गांव नहीं है । जिसमें संज़ेली पधारने में मुनियों को बढा परिषह उलाना पडता है । जबसे पूज्य श्री संजेली पधारे तबसे भील कौम व अन्य कौम दर्शन तथा व्याख्यान सुनने के लिये बडी २ संख्या में आने लगी । 1 1 तालाव के किनारे सेठ साहब श्री प्रेमचन्दजी की दुकान पर प्रतिदिन पूज्यश्री के प्रभावशाली प्रवचन होते थे । प्रवचन में राजकर्मचारी गण, व अन्य प्रजाजन बडी श्रद्धा पूर्वक बडी संख्या में उपस्थित होते थे । रात्रिमें भी प्रियवका पं. रत्न मुनि श्री कन्हैयालालजी म. के जाहिर व्याख्यान होते थे । जनता की बडी अच्छी उपस्थिति रहती थी संजेली रियासत के मेनेजर साहब श्री सनत्कुमारजी साहब पूज्य श्री के व्याख्यान में पधारे । पूज्यश्री के उपदेश और आदेश को सुनकर मेनेजर साहब ने अहिंसा दिवस पालने का और ॐ शान्ति की प्रार्थना कराने का समस्त राज्य में आदेश फरमाया । ता० १५-५ - ४१ को समस्त राज्यमें अगता पालने का हुक्म जारी किया गया । हुक्मके अनुसार सारी रियासत में व संजेली में भी हिंसा बन्द रही। सारे आरंभ संभारंभ के कार्य बन्द रहे और आम्रवांडी में सुबह से ही नर नारियों के वृन्द उमडने लगे । गाँव से आम्रवाडी तक श्री मान् महाराजा साहबने सारे राजमार्ग को ध्वजा पताका से श्रृंगारित किया । आम्रवाडी में एक रोज पहले सरकार ने अपनी तरफ से बडे २ छायावान बन्दवाकर लोगों को बैठने के लिए योग्य प्रबन्ध किया । रास्ते में भव्यदरवाजे खडे किए गये थे । सारा नगर ध्वजा और पताकाओं से भव्य व सुन्दर लगता था उसकी शोभा देखने योग्य थी । आमन्त्रण पत्रिका छपवाकर सर्वत्र भेज दो गइ थी । आमन्त्रण पत्र पाकर हजारों की संख्या में लींमडी. झालोद, कुशलगढ आदि आस पास के गांवों व शहरों के लोग ॐ शान्ति की प्रार्थना में सामिल होने के लिये उपस्थित हुए । संजेली श्रावक संघ ने आगन्तुक सज्जनों के खाने पीने रहने की बड़ी सुन्दर व्यवस्था की थी। नगर सेठ श्री प्रेमचन्द्रजी उदयचन्दजी बागेरचा घासीलालजी महता तथा राजमलजी धोका आदि सर्व श्रीसंघने बहार के महेमानो की अच्छी सेवा बजाई शान्ति प्रार्थना के दिन वेन्ड के साथ शहर में जुलूस निकला और शहर में घूमकर आम्बांवाडी में उपस्थित हुआ जुलूस के साथ श्रीमान् राजा साहब एवम् उनके भ्रातागण तथा मेंनेजर साहब, आदि राज क्रमचा गण भी उपस्ति हुआ । जुलूस के आगे बेण्ड पीछे महाराजा एवम् राज्यकर्मचारीगण उनके पीछे लींमडी संघ संजेली संघ व अन्य प्रजाजन जयजय कार करती हुई चलती थी । स्थान स्थान पर लींमडी के छात्रों व सेठ मिश्रीलालजी तथा बाबूलालजी बांठिया के सुरिले भजन होते थे । जिसको सुनकर प्रजा तथा महाराजा को खूब संतोप हुआ। जुलूस धीरे धीरे शहर में फिरता हुआ सभा स्थान पर पहुंचा। इसी प्रकार आस पास की रियासत में से सैकड़ो भील शान्ति प्रार्थना में सामिल होने के लिये बड़ी संख्या में उपस्थित हुए । आम्रवाडी में जुलूस सभा के रूप में बदल गया अपने अपने स्थान पर जब समस्त लोग बैठ गये तब पूज्यश्री ने अपनी अमोघवाणी द्वारा आगन्तुक परिषद् को सम्बोधित करते हुए फरमाया भाईयों ? संसार में इस समय चारों ओर अशांति का साम्राज्य है । आज भारत परतन्त्र होने के कारण अनेक बन्धनों से बा हुआ हैं । और दुखमय जीवन बिता रहा है । मनुष्य को खाने का पीने का ओढने का पहनने का आदि सब प्रकार का दुःख है और इन दुःखों से छूटने के लिये प्रत्येक व्यक्ति सतत् प्रयत्न शील रहता है । परिशुद्ध ईश्वर प्रार्थना से संसार में मनुष्य अलभ्य वस्तुएँ भी प्राप्त कर सकता है । ईश्वर प्रार्थना करने बाले के लिये संसार सदा सुखमयी बनता है । सर्व जीवों के साथ मैत्री भाव रखना ही सच्ची ईश्वर भक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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