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________________ ३४१ हुआ। रात्रि के समय आपके सुशिष्य पं मुनि श्री के प्रभाव शाली प्रवचन होते थे । व्याख्यान में जैन अजैन भाई १००० १२०० भी संख्या में उपस्थिप होते थे । तनाम हिन्दु मुस्लिम जैन अजैन जनताने महाराजश्री को अधिक बिराजने की और चातुर्मास के लिए बडी विनंती की । किन्तु कुशलगढ संघ की बारम्बार विनंती होने से पूज्यश्रीने कुशलगढ की तरफ बिहार किया। बांसवाड़ा आने व जाने में बहुत ही परीषह सहन करना है। क्योंकि मार्ग में जैनों की वस्ती नहीं वत है। इधर थोडे से पूज्यश्री के बिचरने से करीब चार पांच हजार भीलोंने सर्वथा दारुमांस जीवहिंसा का परीत्याग किया । जिनभीलोंने मांसमदिरा को त्याग किया वे भक्त के उपनाम से प्रसिद्ध हए । ये बडे सुखी नजर आते हैं । धन धान्य से बड़े समद्ध हैं । पज्य श्री को अपना परम अराध्यदेव मानते हैं । और आज भी इनके उपकारों का स्मरण करते रहते हैं । पज्यश्री मार्ग के अनेक छोटे बडे गावों को अहिंसा का दिव्य सन्देश फरमाते हुऐ कुशलगढ पधारे । कुशलगढ पधारने पर वहां के श्रीमान् मेनेजर साहेब श्री तजुमुलहुसेनजी साहबने पूज्यम० श्री की आज्ञानुसार सारे कुशलगढ के राज्य में ता० ६-३-४१ को अगता पालने का आदेश जाहिर किया तदनुसार उक्त तारीख को सारे राज्य में हिंसा (आरंभ) बंद रही । आस पास के तमाम भील लोग उस रोज कुशलगढ आये और के अलग अलग जागिरदारों के गांवों के भोललोगों की बडी में बडी सभा इकट्ठी हुई । जिसमें प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक गांव के ठाकुरोंने भाषण दिये शांति प्रार्थना का महत्व समझाया। अपनी अपनी प्रजा को हिंसा नहीं करने का एवं दारु मांस सेवन नहीं करने का सन्देश सुनाया । कुशलगढ में उदयबाग के भीतर सभास्थल तैयार किया गया था। चारो ओर आम्रवृक्षों की सुन्दर घनी छाया में स्त्री पुरुषो को वेठने के लिये योग्य प्रबन्ध किया गया था। सारे गांव में व्यापार बन्ध रखा गया था । दुपहर को पंचायती नोहरे से शानदार जूलूस निकला । जो उदयबाग के भव्य मण्डप में पहूचने के बाद सभा के आकार में स्थित हो गया । पहले समीरमुनिजी को बाद में पूज्यश्री का शानदार भाषण हआ । हजारों मनुष्यों की परिषद एक भाव से व्याख्यान श्रवणकर बहुत प्रसन्न हो उठी। मेनेजर साहब ने सभास्थल पर पोलिस का योग्य प्रबन्ध किया था । सरकारी राज्यकर्मचारी तथा स्थानिक प्रजावर्ग का उत्साह आदर्श था । पूज्यश्री का अमृतमय उपदेश सुनकर सारी परीषद बहुत ही प्रसन्न हुई । विशेष हर्षजनक बात यह हुई कि कुशलगढ के पास एक बडी नदी है उसमें जगह जगह जलद्रह है । उस जगह भील लोग आ-आकर मच्छो आदि प्राणियों की शिकार करते थे । वहां पूज्यश्री के उपदेश के कारण श्रीयुत मेनेजर साहबने सदन्तर सभी कौम को शिकार करने का मनाई हुक्म फरमा दिया है। विशेष हर्ष की बात यह हुई कि उदयपुर के श्रीमान महाराणाजी साहब के भेजे हुए दारोगाजी साहब कन्हैयालालजी चौबीसाजी साहब के पधारने से पूज्जश्री ने दो दिन ज्यादा बिराजकर लीमडी शहर की तरफ बिहार किया । लीमड़ी कि तरफ पधारने की खबर को जानकर पूज्यश्री को लेने के लिये लीमडी श्रीसंघ पीथापुर गांवतक सामने आया। पीथापुर से पूज्यश्री के साथ साथ श्रीसंघ लीलवा गांव आया । लीलवा प्राचीन काल में लीलावती शहर के नाम से प्रसिद्ध था । लीलवा पधारने पर ठाकुर साहब श्री रणजीतसिंहजी साहब ने अपने गांव में अगता पलाकर तालाव के किनारे ॐ शान्ति की प्रार्थना करवाई । जहाँ सारा गाव तथा आसपास के सेकडों मनुष्य आये । लीमडी श्री संघ भी आया । पूज्य श्री का व्याख्यान श्रवणकर ठाकुर सा. बहुत ही पसन्न हुए । लीबडी शहरमें पदार्पण फाल्गुन शुक्ला १३ को पूज्यश्री लीमडी पधारे । लीमडी से लीलवा तक पूज्यश्री के स्वागत के लिये श्रावक एवं श्राविकाओं का तांता लग गया था । जय ध्वनि तथा मंगल गान के साथ पूज्यश्री लीमडी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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