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शास्त्र व संम्प्रदाय में देवी देवताओं को मांसाहारी नहीं बनाया है ।
देवता हमेशा अमृतहारी होते हैं ऐसा पुराणों में कहा गया है। तो फिर जो मनुष्य अमृत, दूध घृत मिष्ठान्न के स्थान पर मांस देवी देवताओं को चढाते हैं वे भयंकर भूल करते हैं और गंधे पदार्थोसे देवी देवताओं को नाराजकर वे शारीरिक अने मानसिक अनेक आपदाएं सहन करते हैं । एतदर्थ आप लोगों को देवी देवताओं के स्थान पर सदा के लिए पशुबली बन्द करदेनी चाहिये । ऐसे हरे भरे प्रदेश में रहकर भी दुखमय जीवन बिताने का कारण दारुमांस सेवन करना तथा देवीदेवताओं के स्थान पर प्राणियों कि बलि चढाना ही है। इसलिए तुमलोग आज से प्रतिज्ञा करोकि हम अपने २ गांवो में कोई भी देवी देवताओं के स्थान पर हिंसा नहीं करेंगे । __उपरोक्त आदेश सुनकर पूज्यश्री के सन्मुख समस्त गांव के भील लोगोंने अपने अपने गांव के देवी देवता के स्थान पर हिंसा नहीं करने तथा जब तक हमारे वंश का अस्तित्व और गांव रहेगा वहाँतक हमारे कुटुम्बी जन जीवहिंसा नहीं करेंगे एसी प्रतिज्ञा कर पट्टा लिखकर भेट किया । दानपुर के भोई लोगोंने भी देवी देवताओं के स्थान हिंसा नहीं करने की प्रतिज्ञाकर पट्टा लिखकर पूज्यश्री को भेट किया । बहुतों ने यावजीव दारु मांस जुआ आदि का त्याग किया । दानपुर का पट्टा इस प्रकार है
पट्टा न ७ नकल पट्टा दानपुर
सिद्ध श्री १००८ श्री श्री पूज्य श्री घासीलालजी महाराज साहेब ठाना ५ से सर्वन (बडी) से बिहार कर दानपुर (रियासतबांसवाडा) पधारे । और आज रोज ॐ शान्ति की प्रार्थना हुई। उसमें दयाधर्म का उपदेश सुनकर हम दानपुर निवासी भाईयों व वाघरियों की सारी कौम मिलकर दानपुरवासी कुल देवी देव ताओं को मीठे बना लिये यानी बकरे पाडे, मूर्गे आदि जीवों के बजाय मिठा प्रसाद ही देवी देवताओं को चढावेंगे । दानपुरवासी सभी देवताओं के सामने कोई जीव नहीं मारेंगे और दानपुरवासी सभी देवी देवताओं के नाम से घर व बाहर में कोई जीव नहीं मारेंगे और न मारने देंगे । यह ठहराव हमने चन्द्रमा
और सूरज की साक्षी से व गंगा माता की सौगन खाकर किया है सो हमारा वंश रहेगा वहांतक पालेंगे इस ठहराव को तोडेगा उसको गंगामाता पूगेगा और हम लोग बलद को बाधिया नहीं करेंगे।
यह ठहराव हम लोग अपनी राजी खुशी से होस हवास में लिख दिया सो सनद रहे, जो वक्त पर काम आवेगा । यह ठहराव पूज्यश्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज की सेवामें भेट किया है और यही ठहराव पूज्यश्रीजी ने देख रेख के लिए दानपुर के पञ्चों को दे दिया । पञ्च लोग देख रेख रक्खें । संवत १९९७ माघ वदी ४ शुक्रवार । बोलमा आखडी का बकरा, पाडा, आदि जीवों को अमरिया कर देवांगा । दः श्री जयनन्दन शास्त्रो दानपुर निवासी भोई, गवारियों के कहने से लिखा ।।
नि. अमरा पटेल भोई नि. रतना भोई नि० रूपजी भोई नि०वगता भोई नि० हीरा भोई नि. कचरिया पानू भोई नि. हीरा कोदरिया भोई नि. रतना छोटा भोई नि० धनजी भोई नि० हीरा पूंजा भोई नि० मोगजो भोई नि. कादरिया भोई नि. गोवरिया भूतिया नि. गोवरिया थावरा ।।
इस प्रकार दानपुर में बहुत बड़ा उपकर कर पूज्य श्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ दानपुर से बिहार का बांसवाडा पधारे । बासवाडा शहर यों तो राजस्थान प्रदेश में आया हुआ है। इस प्रदेश में घूमने से मालूम होता है कि सभी बाहरी शहरी प्रवृत्तियों से यह प्रदेश सर्व शून्यसा हैं । बांसवाडा चारों तरफ से बांस के वन से घिरा हुआ है । दोनों तरफ महीसागर और अनास ये दो बडी नदियाँ बहती रहती है । इस कारण इसकी शोभा अत्यन्त सुन्दर है । यह प्रदेश पहाडी होने के कारण बडा सुहावना मालूम होता है। इसकी सघन वन राजी चित्त को आकर्षित करती हैं । यहां पर पूज्यश्री के बिगजने से बहुत बड़ा उपकार
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