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________________ नि० कालू नि० रोडा नि० नानुरामसेरा नि० सेरा रत्ता नि० खूमा नि० वीजा नि० घासी नि० देवा नि० सेरा नि० हरीदेवा नि० तुलसा नि० गिरधारी नि० तुलसी नि० खेता ___ काचलाखारी-सिद्ध श्री पूज्य १००८श्री घासीलालजी महाराज ठाना ५ से दानपुर में बिराजमान थे उस मौके पर हम काचलाखारी के कूल भिलान उपदेश सुनने को आये । महाराजश्री १००८ श्री ने दयाधर्म का उपदेश सुनाया उसको सुनकर हम सभी ने निचे मुजब कुल देवी देवतागण ने बजाया पाडा बकरे, मुर्गे आदि जीवों को चढाना बन्द कर उन्हों के बदले मोठा भोग चढाकर धूप ध्यान करांगा । कोई भी जीव देवी देवता के नामसे देवता के सामने तथा घर में भो व बाहर में नहीं मारेंगे और न मरवा देंगे, । इस ठहराव को तोडेगा उसको बारा बीज पूगेगा, यह ठहराव हमारे गांव व हमारे वंश रहेगा वहाँ तक पालांगा संवत१९-९७ माघ वदि ६शनिवार ता०१२-१-४१ द० जयनन्दन शास्त्री ने पंचों के कहने से लिखा । __ नि० रावत थावरजी,, नि० रंगजी गामण गामजूवा,, नि० गामड रतना,, निगामण थावरावल्द दीत्या द० नाथूदानपुर गला,, द० चरपटो विरजी गाव द० खेडिया ,, केरीगोगाबनेगडिया ,, रावत नगजी हालरा पाडा,, मगरा राठौर गामड कालू ,, नि० तमा रुकमा गाम जुआ नि. कुरिया ।। इस प्रकार आसपास के अन्य ग्रामों में विविध प्रकार का धर्मोपकार करते हुए पूज्य आचार्य श्री सेरपुर तथा पुन्याखेडी गांव पधारे । यहां दोनों गांव में एक रोज का पूर्ण अगता रखा गया और ॐ शांति की प्रार्थना हुई । मौमिडन और हिन्दु तमाम भाईयोंने पूर्ण श्रद्धा से सारा आरंभ समारंभ के कार्य तथा हिंसा बन्द रखी। पास ही के आंबे नामक गांव में पधारे पर आंबे के महाराजा साहब श्री विश्वनाथसिंहजी ने गांव में अगता पलाकर ॐशान्ति की प्रार्थना करवाई और जितने दिन पूज्य श्री का बिराजना हुआ उतने दिन ठाकुर साहब ने तन, मनसे सेवा की । यहाँ श्रीमान भैरुमलजी डुगड बडे धर्म प्रेमी श्रद्धालु श्रावक है। इन्होंने अच्छी सेवा की । आंबे से बिहार कर पूज्य श्री बडे सरवण पधारे । जहाँ ठाकुर साहब श्री महेन्द्रकुमारजी साहब और उनके भाई ठाकुर साहब ने सारे गांव में पूज्य श्री का उपदेश सुनकर सारे गांव भर में अगता पलवाया सारा आरंभ सारंभ बन्द कर वाया और सामुहिक रूपसे ॐ शान्ति की प्रार्थना करवाई । यहां पर कांग्रेस के कार्य कर्ता श्री जगन्नाथजी ने ईस कार्य में पूर्ण रूप से मदद की । ठाकुर साहब ने पूज्यश्री को दो तीन दिन अधिक बिराजने की प्रार्थना की किन्तु बांसवाडा पधारने की विनती के लिए बांसवाडा से टेप्युटेशन आया हुआ था इसी कारण शीघ्र बिहार कर बांसवाडेके सरहद उपर आया हुआ दानपुर गांव पधारे । यह गांव चारों ओर पहाडों से घिरा हुआ है । मुनियों का यहां आना दुर्लभ होता है । स्थानका वासी जैन के ७-८ घर है । भक्ति भाव अच्छा है । अन्य माहेश्वरी भाइयों में सेठ रामचन्द्रजी सरवण वाले मुख्य है । गांव के आस पास भीलों की बस्ती हजारों की संख्या में है । आठवे दिन यहाँ हाट बजार भरता है । जिसमें हजारों मील माल खरीदने तथा बेचनें आते हैं । यहाँ पूज्यश्री आठ दिन बिराजे । एक दिन गांववालों ने हिंसा आरंभ आदि सर्व बन्द कर अगता पालकर ॐ शान्ति दिन मनाया, जिसमें सारा गांव तथा आस पास के भील लोग बहुत ही आये। पूज्य श्री का उपदेश सुनकर राजपूत, भोई मील लोगों ने दारु, मांस नहीं पीने व नहीं खाने की प्रतिज्ञा ग्रहण की। बादमें सेठ धूलचन्दजी सेठ श्रीझब्बालालजी आदि श्रावकोंने गाडी भेजकर व खुद जाकर आसपास के ४-५ गांवों के भीलों को ईकठे किये फिर सर्व भील पञ्चों को पूज्यश्री ने देवी देवताओं के स्थान पर होती हुई हिंसा को रोकने के लिये अहिंसामय उपदेश फरमाया । देवोदेवता कभी भी जीवों की बलि नहीं चाहते और जहाँ पशुवध होता है वह स्थान देवीदेवताओं की शक्ति से शून्य है । कारण कि किसी भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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