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________________ के लिए योग्य प्रबन्ध परदे आदि का किया गया । टीक' दोपहर को महाराजासाहेब और महागनी साहिबा के पधार जाने पर विशाल जन समूह के लाभार्थ पूज्यश्रीने अपनी उपदेशरूप अमृतधारा वर्षानी शुरु की । आपके उपदेशों को सुनकर महाराजा बडे ही प्रसन्न हुए । और व्याख्यान के अन्त में पूज्यश्री के दर्शनार्थ दक्षिण से आये हुए व्याकरणाचार्य पं. दुखमोचनजी झा ( जिन्होंने 'बाल्य-अवस्था में पूज्यश्री को पढाया था ) के समक्ष खूब ही सन्तोष प्रगट किया और पूज्यश्री के पांडित्य को खूब ही प्रशंसा की और दूसरे रोज महलों में पधारकर पूज्यश्री उपदेश फरमाये ऐसी इच्छा प्रदर्शित की जिसको पूज्यश्री ने मान्य फरमाई । दूसरे दिन पूज्यश्री अपनी शिष्य मण्डली सहित महलों में पधारे । जहाँ दरबार ने खानगी बातचीत की और उपदेश का लाभ भी लिया । पूज्यश्री ने फरमाया कि "क्षात्रतेजके कारण ही धर्म का अस्तित्व है । आप जैसे राजा, महाराजा धर्म के प्रति श्रद्धा प्रगट कर इस तरह जो धर्म की सेवा करते रहे तो वह सत्युग दूर नहीं है ।” ये बचन सुनकर दरबार ने फरमाया-कि "यह तो हमारा फर्ज है । वह दिन हमारे लिये धन्य है कि हमारे कारण से धर्म और धर्म गुरुओं की प्रशंसा चारों ओर फैले । यदि हम धर्म और धर्मगुरुओं के यश के कारण न बने तो दूसरा कोन बनेगा ? राजा धर्म का रक्षक होता है और धर्म रक्षा करता है । आप जैसे महान त्यागी सन्तों की प्रेरणा से ही धर्म की रक्षा होती है। आपने जो मेरी रियासत में फिर कर लोगों को धमाँभिमुख किया इसकेलिए हम आपके उपकृत है। इसी तरह समय समय पर आप इधर पधारते रहैं और धर्म की प्रेरणा देते रहें यही हमारी आप से हार्दिक प्रार्थना है।" समय बहुत हो चुका था और महाराजाधिराज ने गत दिवस से शान्ति प्रार्थना तक कुछ खाया नहीं था। राजा के प्राइवेट सेक्रेटरी ने पूज्यश्री से कही तब पूज्यश्री ने महाराजा को मांगलिक सुनाया। मांगलिक श्रवण कर महाराजा ने पूज्यश्री को प्रणाम किया । महाराजा अपने निजी स्थान पर चले आये। सैलाना से पूज्यश्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ बोदिना पधारे । बोदिना के ग्रामनिवासियो ने पूज्यश्री का प्रवचन सुना । पुज्यश्री ने अपने प्रवचन में अहिंसा के महत्त्व को समझाया । फलस्वरूप समस्त ग्राम निवासियों ने व पंचों ने ग्रामके सभी देवी देवता के स्थान में हिंसा न करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । और इस विषयक समस्त गांवके पंचों ने पट्टा लिखकर पूज्यश्री को भेट किया । उस पट्टे का नम्ना इस प्रकार है बोदिना-सिद्ध श्री श्री १००८ श्री पूज्य महाराज साहब श्री घासीलालजी महाराज १००७ श्री वीरपत्र समीरमलजी महाराज तथा पं. मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज१००५श्री मदनलालजीम० तथा तपस्वीजी श्री १०० श्री मांगीलालजी महाराज ठाना ५ से मिति मगसर सुद ९ सं० १९१७ को गांव बोदिना पधारे । पूज्य महाराज साहब का उपदेश सुनकर हम गांव बोदिनाताल के सरवन इ० रतलाम के कल पंच सभी जाति के मिलकर बोदिना के कुल देवी देवताओं को मीठे बना लिये । आयन्दा हमारे गांव में हमारा वंश रहेगा वहाँतक कुलदेवी देवताओं के नाम कोई जीव नहीं मारेगे और कोई जीव मार कर नहीं चढावेंगे । उनका बोलमा के आये हुवे जोवों को अमरिया बना देवेंगे और उनके कान में कडी डालकर उनको छोड देंगे। अगर काम पडेगा तो कुल देवी देवताओं को सब गाववाला मिलकर मीठी प्रसादी चढावेगे। यह प्रण हमलोग चारभुजाजी को बीच में रखकर चन्द्रसूर्य की साक्षो से कुलगाववाला मिलकर किया है सो आद औलादतक निभावेगे । मिति मगसर सुदि ९ सं० १९९७ का छे इतवार ता०८-१२-४० द तेजमल धाडीवाल हततानावाला सर्व पंचों के कहने से लिखा है नि० भील सवाजी नीनामा नि. भील रामाजी की द० दलपतसिंह सरदार शीशोदिया द० नानुरामबलाई नि० गोगाजी गायरी द..लालजी पटेल नि० डेरिया रामचन्द्रजी की द० जगन्नाथ कोदार निराम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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