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________________ ३२० कर उन्हे घर ही रहने को बार बार आग्रह करने लगे । गांव के अन्य भी सगेसम्बन्धी मित्र जब उपस्थित हुए अन्त में पडासोली के श्रावकों के प्रयत्न से वैरागी मांगीलालजी के भाई भोजाई के समझाने पर मांगीलालजी को दीक्षा की आज्ञा मिल गई। पडासौली श्रीसंघ ने ही इनका दीक्षा महोत्सव किया । अत्यन्त वैराग्य भाव से आपने दीक्षा ली। दीक्षा लेने पर इनका नाम मदनलालजी म. रखा गया । दीक्षा लेने पर मुनिश्री मदनलालजी महाराज ने शास्त्रों का अच्छा अध्ययन किया । अपने गुरुदेव की सेवा में आपने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया । आपने जो निष्ठा पूर्वक पूज्यश्री की सेवा की वह अतिस्मरणीय है । आपका सारा जीवन लम्बी. लम्बी तपश्चर्या में व्यतीत हुआ । दीक्षित होने के साथ ही आपने ओज को तपस्या द्वारा तेज में रुपान्तरित किया था आपकी यह तप साधना जीवन पर्यन्त चलती रही ज्यादा से ज्यादा ९२ दिन तक की तपश्चर्या की थी ओर मास खमण एवं बेला तेला आदि की तपस्याएँ तो अनेक बार कर चुके थे । आप जैसे उच्च कोटि के तपस्वी थे वैसे ही ज्ञानी और सेवाभावी भी थे। आपकी सेवा परायणता साधुओं के सामने एक आदर्श उपस्थित करती है । ता० १७-४-७२ प्र० वैशाख सुदी ४ बुधवार के दिन अहमदाबाद में पूज्य श्री की सेवा करते हुए स्वर्गवासी बने । आपके स्वर्गवास से पूज्य श्री के हृदय पर जो अघात लगा वह अवर्णनीय है । वि. स. १९९७ का ३९ वॉ चातुर्मास रतलाम में __स्थानकवासी श्रीसंघ रतलाम की ओर से कुछ मुख्य मुख्य श्रावक गण फाल्गुन मास में जैनाचार्य जैन धर्म दिवाकर पूज्य श्री घासोलालजी महाराज आदि ठाना ६ की पवित्र सेवा में पडासौली (मेवाड) पहुचे और पूज्यश्री से रतलाम फरसने की विनंती करने लगा। क्योंकि मालवा प्रान्त का जैन श्रीसंघ लम्बे समय से आपके प्रवचन सुनने व दर्शन करने को उत्सुक हो रहा है । श्रावकों का अत्यन्त आग्रह देखकर प ने चातुर्मास के पूर्व रतलाम फरसने की स्वीकृति फरमा दी। आपकी इस स्वीकृति से रतलाम की जनता को बड़ी प्रसन्नता हुई। आपने रतलाम की ओर बिहार कर दिया । अपनी मुनि मण्डली के साथ आप बदनोरा देश में पधारे । यहां जगह जगह देवी देवताओं के नाम होनेवाली हिंसा को बंध करवाई । व कई जगह तो सारे गांवों के लोगों ने जीवहिंसा त्याग कर पूज्जश्री से सम्यक्त्व ग्रहण किया। और जैन धर्मानुरागी बने । जैसे पडासौली, जयनगर, शंभूगढ, गजसिंहपूरा परा, आकडसादा, आसण दाँतडा जीवार, बालापुरा, जग पुरा, गेनसिंहकाखेडा, अंटाली लाम्बा, धनोप, नान्दसी मौजा सागरिया, कैरोट, बछखेडा आदि गांवों के जागीरदारों, व ठिकानों आदिवासियो भीलों आदिने अहिंसा के पट्टे लिखकर पूज्यश्री को भेट किये । उन पट्टों की प्रतिलिपी इस प्रकारहैश्रीनाथजी श्रीरामजी नकल हुक्म अदालत ठिकाना सरदारगढ मवरखा जेठ विद ८ ता.११-५-३८ ई.सं.१९९५ द० मोतीलाल ता. ११-५-३९ द० मीरजा अबदुलबेग जैन श्वेताम्बर बाइस संप्रदाय के पूज्य महाराज साहेब श्रीघासीलालजी म. मनोहर व्याख्यानी मुनि मनोहर लालजी तपस्वीजी महाराज मांगीलालजी मुनिश्री कन्हैयालालजी म० वगैरा ठाणा ६ से जेठविद ७ को यहां पधा रणा हुवा और आज शान्ति का व्याख्यान बडे आनन्द से हुआ । इसलिए आज की तारीख पटे हाजा में अगता रखाया गया और तालाब मनोहर सागर में बगेर इजाजत किसीको भी शिकार नहीं खेलने व मच्छियें नहीं मारने की रोक की गई और बडा बड का घास कट जाने बाद मुहचर घास मुकाते दिया जाया करता है वो आयन्दा मुकाते नहीं दिया जाकर मवेशियान को पुन्यार्थ चराने की इजाजत दी गई । लिहाजा हुक्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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