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________________ ३१९ लिये पत्र पत्रिकाओं द्वारा बाहर सूचना भेजी गई जिसका लोगों ने हृदय से स्वागत किया । लोगों नें इस अवसर पर खूब धर्मध्यान किया । पूज्यश्री के उपदेश से रावजी नें सदा के लिऐ तालावों में मच्छिमारने का कायम के लिए बन्ध कर दिया सव तरह से देवगढ का चतुर्मास सफल रहा देवगढ रावतजी साहव नें यह पट्टा लिख दिया । श्री एकलिंगजी, श्रीरामजी,, नकल उस हुक्म पेशी खाद ठिकाना देवणढ श्रीमान रावतजी साहब विजयसिंहजी वाके द्वितीय श्रावण शुक्ला ३ ता. १७-८-१९-६९ई. स. १९ - ९६ई. चूं के जैन संप्रदाय के पूज्यश्री घासीलालजी महाराज का यहां चातुर्मास है और ये अहिंसावृत्ति वाले महान साधु हैं, इनकी इच्छा है कि राघवसागर में तो पहले ही बिनाहुक्म मच्छियां वगैरा जानवर मारने की सदा के लिए मुमानियत थी मगर महाराज के कथन से फिर तमाम पट्टे हाजा के खालशाही तालावान में वजुजखास खानदान मालिक ठिकाना व मेहमान ठिकाना के आम के लिए मुमानियत की जाती है सो कोई मच्छियें वगैरेह का शिकार इन तालावान में बिना इजाजत नहीं करें हुक्म नं ३९-४८ नकल इसकी तामीलन कचहरी में भेजी जावे और लिखा जावे कि आमतौर पर सोहरत करादी जावे । जुमला तहसीलात व थानेजात में इतल्ला दी जावे । हुक्म कचहरी देवगढ नं. १५-७-९५ नकल इसकी तामीलन पुलिस व जुमला तहसीलात में भेजी जावे और लिखा जावे कि हुक्म पेसी खास की पूरे तौर से बन्धी रखी जावे । एक नकल इत्तिलायान पूज्यश्री घासीलालजी महाराज पास भेजी जावे । सं. १९९६ द्वितीय श्रावण सुद ६ ता. २० -८-३९ मु. अ. चन्दनमल मेहता द० मोतीलाल (मोहर छाप ) देवगढ का सफल चातुर्मास समाप्त कर आपने अन्यत्र बिहार कर दिया । देवगढ के आसपास के गांववाले आपके प्रभावशाली प्रवचनों से बड़े प्रभावित होते थे । आप जिस किसी ग्राम व नगर में पधारते वहाँ सर्व प्रथम ॐ शान्ति दिवस मनाने का उपदेश देते । पूज्यश्री के आदेश को गांव वाले बड़े सहर्ष से स्वीकार करते और पू श्री द्वारा बताई गई अहिंसक एवं निरवद्य विधि से ॐ शान्ति दिवस मनाते । जिसमें सभी गांव के जैन अजैन भाई सामिल होते । उसी सारे गांव में अगता पलवाया जाता था । अगते के दिन जीवहिंसा एवं सर्व आरंभ सारंभ के कार्य बंध रखे जाते थे । आपने देवगढ से बिहार कर ग्रामानुग्राम बिचरते हुए आसीन व पडासौलो पधारे । वैरागी श्री मांगीलालजी बाफणा पूज्यश्री के साथ ही में थे । मांगीलालजी पूज्य श्री से दीक्षा लेने की बार बार विनंती करने लगे । पूज्यश्री ने वैरागी मांगीलालजी से कहा अगर तुम अपने घर वालों की राजीखुशी आज्ञा प्राप्त करलो तो आपकी दीक्षा हो जासकती है । इस पर आपने पूज्यश्री से प्रार्थना कि भगवान् ! मुझे अकेले अपने घर जाने का तो त्याग है अगर आप श्रीपधारो तो मैं आपके साथ आकर अपने कुटुम्बियों से आज्ञा प्राप्त कर सकता हूँ । पूज्यश्री इस पर अपने दो शिष्यों को वैरागी मांगीलालजी के साथ भेजने की आज्ञा दे दी । वैरागी मांगीलालजी ने उस समय उपवास वचक्ख लिया और यह प्रतिज्ञा कि की अगर घरवाले मुझे दीक्षा की इजाजत दे देंगे तो मैं घर पारणा करूंगा वरना पुनः बिना पारणा किये हो वापस चला आउंगा । इसप्रकार वैरागी मांगीलालजी मुनिवरों के साथ रामपुरा जो कि पडासोली से १० मील पडता है वहाँ बिहार कर के गयें। सायंकाल के समय सन्तों के साथ मांगीलालजी अपने गांव पहुंचे । मुनिजी राममन्दिर में ठहर गये । और मांगीलालजी घर पहुँच कर विनयपूर्वक दीक्षा को आज्ञा मांगने लगे । आप के मुख से दीक्षाकी बात सुनते ही सारा परिवार शोक मग्न हो गया । माता पुत्र वियोग में अश्रुपात करने लगी । दोनों भाई माँगीलालजी को संयमी जीवन की कठिनाईयाँ बता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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