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स्थिति में काफले को वहीं रुकना पडा । सार्थवाह ने अपने साथियों से पूछ कर वहीं सुरक्षित स्थल पर अपना पडाव डाल दियो । सामान की सुरक्षा के लिये वृक्षों पर मंच बनाये गये । रहने के लिये घास की झोपड़ियां बनाई गई । मणिभद्र ने अपने लिये बनाई हुई एक निर्दोष झोपडी आचार्य श्री को रहने के लिये दी । आचार्य श्री उस झोपडी में अपनी शिष्य मण्डली के साथ रहने लगे । और धर्मध्यान में समय बिताने लगे ।
वर्षां बहुत लम्बी चली । अतः सार्थवाह को अपनी कल्पना से भी अधिक रुकना पडा, लम्बे समय तक अटवी में रहने के कारण काफले के समीपको खाद्य सामग्री खूट गई । लोग कंद मूल खा कर अपना जीवन व्यतीत करने लगे ।
एक समय सार्थवाह जब आराम कर रहा था उस समय उसके मुनीम ने कहा स्वामिन् ? खाद्य सामग्री के कम होने से सभी लोग कन्द, मूल और फल खाने लगे है ओर तापसौं जैसा जीवन बिताने लगे हैं । भूख के कारण काफले की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है । मणिभद्र की बात सुनकर धन्नासार्थवाह चौक गया । उसे अपने आपकी स्थिति पर एवं काफले कि दशापर अत्यन्त दुःख हुआ वह सोचने लगा मेरे काफले में सबसे अधिक दुःखी कौन है ? यह सोचते सोचते उसे धर्मघोष आचार्य का स्मरण हो आया । वह अपने आपको कहने लगा । इतने दिन तक मैने उन महाव्रत धारियों का नाम तक नहीं लिया । सेवा करना तो दूर रहा कन्द, मूल फल वगैरह वस्तुएँ उनके लिए अभक्ष्य हैं । वे 1 निर्दोष आहार ग्रहण करते हैं । अतः उनकी खाद्याभाव में क्या स्थिति रही होगी । उसकी मुझे जांच करनी चाहिए ।
दूसरे दिन सार्थवाह शय्या से उठा । प्रातः कृत्य से निपटकर वह बहुत से लोगों के साथ आचार्य के समीप गया । वहां पहुँच कर मुनियों से घिरे हुवे धर्मघोष आचार्य के दर्शन किये और पास में बैठकर आचार्य से कहने लगा-भगवन् ? मैं पुन्यहीन हूँ ? पुन्यहीन के घर में कल्पवृक्ष नहीं उगता । न वहां कभी धन की वृष्टि होती है । आप संसार - समुद्र से पार होने के लिये जहाज के समान हैं । आप सच्चे धर्मोपदेशक व सद्गुरु हैं । आप जैसे सद्गुरु को प्राप्त करके भी मैने कभी अमृत के समान आप श्री के वचन नहीं सुने । प्रभो ! मेरे इस प्रमाद को क्षमा कीजिए ।
सार्थवाह के ये वचन सुनकर अवसर के ज्ञाता आचार्य श्री कहने लगे- सार्थपते ? आपको दुःखी नहीं होना चाहिए । जंगल में क्रूर प्राणियों से हमारी रक्षा करके आपने सब कुछ कर लिया है । काफलें के लोगों से इस देश और कल्प के अनुसार आहार पानी आदि मिल जाते हैं ।
सार्थवाह ने कहा - भगवन् ! यह आपकी महानता है कि मेरे अपराध की ओर ध्यान न देकर आप मेरी प्रशंसा करते हैं तथा प्रत्येक परिस्थिति में संतुष्ट रहते हैं । किसी दिन मुझे भी दान का लाभ देने की कृपा कीजिए ।
आचार्य श्री ने कहा- कल्पानुसार देखा जायगा । इसके बाद सार्थवाह वन्दना करके चला गया ।
उस दिन के बाद सार्थवाह भोजन के समय मुनियों की प्रतीक्षा करने लगा । एक दिन गौचरी के लिए फिरते हुए दो मुनि उसके निवास स्थान पर पधारे । सार्थवाह को बडी प्रसन्नता हुई । वह सोचने लगा-आज मेरे धन्य भाग्य है जो मेरे घर मुनियों का आगमन हुआ है किन्तु इन्हें क्या दिया जाय ? पास में ताजा घी पड़ा था । सार्थवाह ने उसे हाथ में लेकर मुनियों को प्रार्थना को । यदि वह ग्रहणीय हो तो आप इसे ग्रहण करें । ग्रहणीय हैं । यह कहकर मुनियों ने पात्र वहां रखा । सार्थवाह बहुत प्रसन्न हुआ । और अपने जन्म को कृतार्थं समझता हुआ घी देने लगा । घी देते समय सेठ के परिणाम इतने
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