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________________ में गतिमान रखने को प्रेरित करती : रहती है। मार्गशीर्ष प्रतिपदा को आपश्री ने सन्त मण्डली के साथ बिहार किया । सभी ने भावोर्मियों की विदाई भेट दी और आपश्री उदयपुर के समीपस्थ क्षेत्रों को अपनी दिव्य वाणी से पावन करने लगे। उदयपुर चातुर्मास होने के पूर्व ही से ब्यावर पधारने के लिए ब्यावर श्री संघ की अत्याग्रह भरी विनंती थी । पूज्यश्री ने फरमाया कि अभी तो समय कम है, चातुर्मास के बाद अनुकूलता रही तो ब्यावर की तरफ बिहार करने का ध्यान में रखेंगे । चातुर्मास समाप्ति पर ब्यावर संघ का फिर से आग्रह हुआ कि अब आपका बिहार ब्यावर की तरफ होना चाहिए। श्रीसंघ के आग्रह पर आपश्री ने ब्यावर की ओर बिहार कर दिया। नाथद्वारा कांकरोली सरदारगढ़ आमेट, देवगढ, भीम आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए पूज्यश्री ब्यावर पधारे । ब्यावर के बाहर जैन गुरुकुल के विशाल भवन में बिराजे । कुछ दिन जैन गुरुकुल परिवार को विनंती से वहां बिराजकर फिर ब्यावर में पधारे। व्याख्यान में सभी संप्रदाय के लोग बहुत बड़ी संख्या में रायलाकम्पाउन्ड में आते थे । होली चातुर्मास यहां करके पूज्यश्री ने बिहार कर दिया । पाटन आकडसादा पडासौली आसीन्द, ताल लसाणी आदि गावों में होते हुए आप देवगढ पधारे । इन सभी गांवों में अगते पालने के साथ ईश्वर प्रार्थना का आयोजन रखा गया । श्री मांगीलालजी (तपस्वी श्री मदनलालजी) को वैराग्य प्राप्ति जब पूज्यश्री आसीन पधारे उस समय समस्त गांव में अगता रखा गया प्रेभु प्रार्थना की गई । उस समय रामपुरा से मांगीलालजी बाफना पूज्यश्री के दर्शनार्थ आये । पूज्यश्री के वैराग्यमय व्याख्यान से प्रभावित होकर ये पूज्यश्री के साथ २ बिहार करते हुए पडासोली तक साथ में आये । “सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसां" इस सुभाषित के अनुसार पूज्यश्री की सेवामें रहने से मांगीलालजी को संसार के भोग विलास से विरक्ति हो गई और आपने दीक्षा लेने का विचार किया। ये किसी के घर भोजन करने की अपेक्षा मुनि की तरह भिक्षावृत्ति से आहार करने लगे । तथा शास्त्रों का अध्ययन करने लगे। पूज्यश्री के उदयपुर चातुर्मास से सारे मेवाड प्रान्त पर पूज्यश्री का बहुत अधिक प्रभाव पडा । पूज्य श्री के अगाध सिद्धान्तज्ञान, द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव को परखने की अद्भुत शक्ति, चमत्कारपूर्ण वक्तृत्व शक्ति, विशाल प्रकृतिपर्यवेक्षण, आदि गुणों के कारण आपका इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि सारा मेवाड आपके समागम के लिए उत्कंठित हो उठा। उदयपुर का चातुर्मास समाप्त भी न हो पाया था कि जगह जगह के भाई आगामी चातुर्मास को और अपने अपने क्षेत्र को पावन करने की प्रार्थना करने लगे । इनमें खास कर देवगढ श्रीसंघ का तथा देवगढ़ के रावजी श्री विजयसिंह का बड़ा आग्रह एक सराहनीय था । इनका आग्रह अत्यंत और उत्साह जनक था । देवगढ श्री संघ के साथ साथ वहां के रावतजी साहब की अति विनंती में विशेष उपकार की संभावना छिपी हुई थी। चातुर्मास के बाद पूज्यश्री मेवाड प्रान्त के गावों को पावन क रते रहै । अपने उपदेश से मेवाड के हजारों गावों के भील आदिवासी एवं जैन अजैन जनता के हृदय को पूज्यश्री ने अपनी प्रभाव पूर्ण अमृतमय वाणी से पलट दिये और उन्हें सदा के लिए अहिंसक बना दिये । देवी देवताओं के नाम पर होनेवाली निर्मम पशुबलि को पूज्यश्री ने अपनी अहिंसामयी वाणी से सदा के लिए बन्ध कर दी। सैकडों ठाकुरों राजपूतों जागीरदारों भीलों आदिवासीयों ने शिकार, मांसभक्षण, मदोरा का त्याग कर दिया । इस प्रकार मेवाड के अनेक गावों को पावन करते हुए वैशाख मास में देवगढ पधारे । वहां के हजारों भाई बहनों बालकों एवं रावतजी साहब विजयसिंहजी व उनके कर्मचारी गण बड़ी दूर तक पूज्यश्री के सामने आकर स्वागत किया। पूज्यश्री स्थानक में बिराजे । आपके विशाल मैंदान में जाहिर प्रवचन होने लगे । पूज्यश्री का उपदेश सुनने के लिए जनों के अतिरिक्त हिन्दू , मुसलमान भील समाज राज्य के कर्मचारी गण उपस्थित होते थे। अनेक प्रतिष्ठित सज्जनों ने पूज्यश्री के प्रवचन को सुना और मनन किया । पूज्यश्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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