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बडी सादडी मेवाड से श्रीमान् सेठ गब्बालालजी पन्नालालजी मारू लिखते हैं कि यहां पर तपस्वी राज बडे व बडे प्रवर्तक मुनी श्री १००८ श्री मोतीलालजी महाराज आदि संतो के बिराजने से धर्मध्यान उपकार बहुत हुवा । दिल्ली में व उदयपुर में विराजित तपस्वीराज के पूर पर भी बहुत उपकार हुवा । आम अगते रहे दुकाने बन्ध रही व घरों में घट्टी उखलाने बन्द रहे । तपमहोत्सव का एक विराट जलूस स्थानकजी से निकाला गया । बाहिर से आई हुई उपकार की सूचनाओं में सिर्फ थोडी सी ही यहां प्रकाशित की गई है । इनसे पाठक भली प्रकार समझ सकेंगे कि पूज्य ओचार्य श्री के प्रति जैन अजैन जनता की कितनी भारी श्रद्धा है यह सब आपके तपोबल व उपदेश का ही प्रभाव है।
खमनौर में मिति आसोज शुक्ला एकम को विनोलामाता के वहां पाडे व बकरे चढायें जाते थे । यह खबर पूज्य श्री ने सुनी तब पूज्य श्री ने अपनी ओजस्वी भाषा में फरमाया की पाडे और बकरे माता के सामने नहीं कटने चाहिये । इस पर सूचना उसी स्थान पर पहुंचाई जिसपर श्रीमान् सेठ कन्हैयालालजी साहब नाहर लिखते हैं कि कल बिनोलामाता के वहां पाडे व बकरे चढाने का दिन था । यहां पर शोभा लालजी साहब थानेदार का राजनगर तबादला होकर उनके बजाय कल ही उनके बड़े भाई श्रीचम्पालालजी साहब जो पहले खमणौर वर्षातक रह चुके हैं वो हि वापिस आ गये और लोगों से अच्छी जान पहचान हैं। उन्होंने फिर फरमाईश की जिस पर यह तै पाया कि माताजी पाती दे दें तो लोह नहीं किया जावे । इस पर (मैं जीवनसिंहजी भण्डारी और वे मन्दिर के एतकादवाले ईकठे मन्दिर में पहुंचे। पातो मांगने पर बली नहीं करने की पाती आई उसी वक्त आधामन आटेका कंसार करवा कर तकसीम करवा दिया । पाडे के कडी डलवा दी और कोई दुसरे जानवर बकरे पाडे का लोह नहीं हुआ सो यह हाल पूज्य - महाराज साहिब श्री घासीलालजी म० से अंज करा देवें १९९५ का आसोज सुदी १०।
ता० ४-१०-३८ द० कन्हैयालाल पाखी के दिन जामनगर में भी पाखी पाली गई ।
सरकार द्वारा सारे राज्य मेवाड में एक रोज का अगता रखने का हुक्म होने पर भी बहुतसी जगह तीन तीन रोज तक आम अगते रक्खे गये और भी कई जगह कई तरह से गुप्त उपकार हुए हैं। विस्तार भय से यहां उन सर्वका वर्णन करना असंभव है । पूज्य श्री के इधर पदार्पण से जगह जगह शान्ति प्रार्थना अहिंसा दिवस अनेकों तहर के उपकार हुए । सादडी मारवाड का इतने वर्षा का झगडा मिटाने का श्रय आप श्री को हि प्राप्त हुआ है । ईस प्रकार आपके ओजस्वी भाषणों से एक नहीं अनेकों ऐसी धार्मिक प्रवृत्तियों की ओर लोग प्रवृत्त हुवे जिनका वर्णन करना यहां असंभव है।
__गत दो वर्षों में यहाँ चातुर्मास न होने से जो धर्मध्यान में कमी हुई थी उसको पूज्यश्रीने अपने इस आदर्श चातुर्मास की किशोर अवस्था में ही पूर्ण कर दी। पूज्यश्री के इस आदर्श चातुर्मास में समस्त जैन अजैन जनता ने तन मन धन से अपूर्व सेवा बजाई । प्रातः काल पूज्य आचार्य श्री नन्दी सूत्र की टीका गूढार्थ के साथ फरमाते थे । पूज्यश्री की आगम विषयक मार्मिक विवेचना सुनकर श्रोतागण अत्यन्त हर्षित होते थे । आधा घंटा कृष्णचरित्र भी विविध दृष्टान्तों के साथ सुनाते थे उसे सुनकर अजैन जैन जनता आपकी सुन्दर प्रवचन शैली से मुग्ध हो जाती थी । चातुर्मास बडे ही उत्साह और भव्य धार्मिक आचार विचारों की प्रभावना से पूर्ण हुआ। उपदेशामृत के पान से तृप्त उदयपुर की जनता को चार माह के समय का पता ही न चला कि कब पूरा हो गया। उनके मन में यही अभिलाषा थी कि हम उपदेश सुनते ही र हैं और धार्मिक आचार विचार-साधना से आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर बढते रहें । लेकिन मुनि के आचार की मर्यादा तो परिभ्रमण के आदर्श में गर्भित है। जनता के कल्याण की भावनो ही सन्तों के विहार पथ
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