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की सरल और हृदय स्पर्शी वाणी ने श्रोताओं का तथा स्थानीय महाराजा साहब का तथा कुंवरसाहब का हृदय इतना आकर्षित कर लिया था कि प्रतिदिन श्रोताओं की संख्या बढने लगी । पूज्यश्री के उपदेश से वैशाख शुक्ला प्रतिपदा के दिन विश्वशान्ति के लिए ॐ शान्ति की प्रार्थना का आयोजन रखा गया । राजा साहब श्रीविजयसिंहजी ने अपने अधिकार के - २४० गावों में अगता पालने का आदेश जाहिर कर दिया और समस्त प्रजा को ॐ शान्ति की प्रार्थना करने का आदेश जारी किया । फलस्वरूप हजारों प्राणियों को अभयदान मीला ।
अब अवसर पाकर इसवर्ष का चातुर्मास देवगढ में ही व्यतीत करने का श्री संघ ने तथा खास कर रावतजी साहब ने प्रार्थना की । पूज्यश्री ने स्थानीय श्रावक संघ की और रावजी साहब की आग्रह भरि विनंती को देखकर चातुर्मास की स्वीकृति फरमा दी। पूज्यश्री की स्वीकृति से सारे नगर को सर्व जन्ता प्रसन्नता के सागर में डूब गई । चातुर्मास को सफल कराने के लिए अभी से ही जोर जोर से तेयारियां होने लगी आपने देवगढ से बिहार कर दिया ।।
वि० सं. १९९६ का चातुर्मास देवगढ में
देवगढ से पूज्य श्री का रायपुर बोराणा, देवरिया, होते हुए सरदारगढ एवं संवारिया पदार्पण हुआ। वहां पर मेवाड के स्थवीरपद भूषित पंडित मुनिश्री जोधराजजी म. एवं युवाचार्य पं. मुनिश्री मांगीलालजी म. ठाणा ३ का अत्यन्त वात्सल्यमय मिलन हुआ । बाहर के दर्शनार्थीयोका सतत आगमन बना रहा । आचार्य श्रीका एवं युवाचार्यश्री का स्नेह अमिटस्थापित हुआ यह धवलधारा अण्ड रही थी। वहां से आपश्री कांकडोली पधारे वहां पर जैनदिवाकर प्रसिद्ध वक्ता पं. मुनिश्री चौथमलजी म. के दर्शन किये दोनों ज्योतिधरोंका मिलन चन्द्र सूर्य जैसा लगता था । आपसका दिव्य प्रेम और स्नेह रहा । जैनदिवाकरजी म. के आर्शीवाद लेकर यहां से अनेक गावों को उपदेशामृत का पान कराते हुए आप अपनी शिष्य मण्डली के साथ चातुर्मासार्थ देवगढ पधारे ।चातुर्मास में तपस्वीश्री मांगीलालजी महाराज ने ८८दिन की घोर तपश्चार्या प्रारंभ कर दी । पूज्यश्री के व्याख्यान में जैन अजैन सभी लोग बहुत बड़ी संख्या में उपस्थित होते थे जिससे सरकारी मकान में बहुत बड़ा पण्डाल बनाया गया। देवगढ रावजी श्री विजयसिंहजी साहेब की श्रद्धाअधिक बढी । वहां के नायब हाकिम श्री मोतीलालजी साहेब सुराणा की भक्ति पूज्यश्री के प्रति अत्यधिक थी। इन्हीके द्वारा रावजी साहब को समाचार पहुँचते रहते थे । राजमहल में रावजी साहब ने पूज्यश्री का व्याख्यान सुना और तपश्चर्या के पूर पर देवगढ प्रान्त के २४० गांवों में पूज्यश्री की आज्ञानुसार अगते पोलने का आदेश लिख दिया । भादवा सुद पूनम को शहर के बाहर तालाव की पाल पर तपोत्सव व ईश्वर प्रार्थना विषय
का जाहिर व्याख्यान हुआ । व्याख्यान में ५-६ हजार जनता उपस्थित थी। व्याख्यान समाप्ति के बाद बाग के महलों में रावजी साहबकी माताजी तथा रानीजी ने पूज्यश्री के उपदेश सुनने की भावना प्रगट की। जिससे वहां भी पधारे और उन्हे उपदेश दिया ।
इस वर्ष सभी जगह वर्षा न होने से दुष्काल था। सभी तालाव पानी के अभाव में सूख गये थे। घास पानी और अन्न के अभाव में सर्वत्र हा-हा कार छाया हुआ था। पूनम के दिन विश्वशान्ति की प्रार्थना का आयोजन हो ने के बाद आकाश बादलों से छा गया और रात्री में इतनी वर्षा हुई की सारा देश के तालाब पानी से भर गये । देवगढ की प्रजा प्रसन्नता से नाच उठी। रावजी साहेब उदयपुर होने से वर्षा के समाचार लेकर एक आदमी वहां गया और रावजी को वर्षा होने का शुभ समाचार सुनाया तो प्रसन्न होकर उस आदमी को रावजी ने ५१ रुपये इनाम में दिये। सभी राजा प्रजा को प्रसन्नता थी कि पूज्यश्री ने ईश्वर प्रार्थना कराई उसी का यह शुभ परिणाम है । भादवा सुदी १५ ता० २८-९-३९ के दिन तपस्वीसी का पारणा हुआ । पुर के अवसर पर हजारों व्यक्ति दर्शनार्थ आये । तपस्या के पूर को सफल बनाने के
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