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आपने एक घंटेतक ॐशान्ति की प्रार्थना पर सारगर्भित प्रवचन दिया । हीज हाइनेश महाराणा साहब ने बडे मनोयोग से प्रवचन सुना । प्रवचन सुनने के बाद महाराणा साहब ने उदयपुर में चौमासा करने की प्रार्थना की । दूसरे दिन श्रीमहावीर जयन्ति का भी पंचायती नोहरे में आयोजन रखा गया। इस प्रसंग पर पूज्यश्री ने एवं अन्य वक्ता मुनिराजों ने भगवान श्री महावीर स्वामी के पथ पर चलने का उपदेश दिया । श्रीमहावीर मण्डल की ओर से उस दिन कैदियों को मिष्ठान भोजन दिया गया ।
___ पूज्यश्री के इस आदर्श उपकार को देखकर यहां की जैन अजैन जनता आपका चातुर्मास यहीं पर कराने की बड़ी हार्दिक इच्छा करने लगी । सादडीघाणेराव, गोगून्दा, ब्यावर अजमेर आदि कई शहरों की चातुर्मास की बहुत विनंती थी किन्तु यहां विशेष उपकार होता देख कर आखिर ता० १७ अप्रेल को पूज्यश्री ने यहां की आग्रहभरी चातुर्मास की विनती को मंजूर कर ली । जिसकी सूचना श्रीमहावोर मण्डल ने समाचार पत्रों में प्रकाशित करवादि ।
वैशाख वदि छठ को पूज्यश्री ने अपनी शिष्य मण्डली के साथ उदयपुर से बिहार किया। भूवाना देलवाडा सेमल गोगून्दा नाई आदि ग्रामों में आप धर्म प्रचार करते हुए बिचरने लगे । इन ग्रामो में आप के उपदेश से त्याग प्रत्याख्यान विपुलमात्रा में हुए । ग्रामों में हरजगह कई मरतबा अगते पलवाये गये । इस प्रकार मेवाड प्रांत में जैन शासन की प्रभावना करते हुए आपने चातुमासार्थ आषाढ शुक्ला ३ ता ३० जून को उदयपुर में प्रवेश किया । मनोहर व्याख्यानी श्री मनोहरलालजी महाराज घोर तपस्वी श्री मांगी लालजी महाराज को लेकर पूज्यश्री से पहले ही शहर में पधार गये थे और तपस्वीराज ने शहर में पधारते ही आषाढ कृष्णा २ ता० १५ जन से ८६ दिन के उपवास की तपश्चर्या प्रारंभ कर दी । नाई गांव वालों की बहुत आग्रह भरी विनती होने से पूज्यश्री ने अपने पट्ट शिष्य मधुर वक्ता पं० मुनि श्रीकन्हैया लालजी महाराज व मंगलचन्दजी महाराज को नाई चातुर्मास के लिए भेज दिए । यहाँ इन मुनिद्वय के प्रभाव शाली व्याख्यानों से तपश्चर्या आदि धम ध्यान खूब अच्छा हुवा । नाई का अपूर्वचातुर्मास हुआ ।
पूज्यश्री का बिराजना अक्षय भवन में हुआ । जैन अजैन जनता व राजकमचारी वर्ग व्याख्यान का खूब लाभ लेने लगे । बाहर से दर्शनार्थ आने वाले भाई बहनों के लिए ठहरने का व भोजन आदि का संघ ने उतम प्रबन्ध किया । पर्युषणपर्वाधिराज बडे आनन्द से मनाये गये । श्रावक श्राविकाओ में उपवास
ला तेला पचोला अणाईयां पंचरंगियां, दया पौषध ब्रह्मचर्यव्रत आदि तपश्चर्या त्याग प्रत्याख्यान खूब हुए । पूज्यआचार्य श्री एकलिङ्गदासजी महाराज की संप्रदायानुयायी महासतीजी श्री इन्द्रकुँवरी म० व धन कुवरजी म. आदि भी उन दिनों चातुर्मासार्थ उदयपुर में बिराजमान थे। इनमें महासतीजी श्री इन्द्रकुंवरजी म. ने ४० दिन की उग्र तपश्चर्या की । तथा एक बहन ने भी ३४ उपवास किये और गोगून्दा निवासी तपस्वी श्री गणेशलालजी हरकावत ने ३६ दिन के उपवास किये। घोर तपस्वीराज मुनिश्री मांगोलालजी महाराज के ८६ दिन के उपवास का पूर भादवाँ सुदी १४ ता० ८-९-३८ को हुआ । जिसकी सूचना देश विदेश में चारों तरफ पत्रिकामा द्वारा भेजी गई । श्रीमान् महाराणा साहब हिन्दवाकुलसूर्य की सेवा में भी श्रीमहावीर मण्डल द्वारा इसकी सूचना मालूम कराने पर आपने इस खुशी में भादवा सुद १३ ता० ७-८-३८ को समस्त मेवाड राज्य में अगता (पाखी) पालने का आदेश दिया । और उस दिन विश्वशान्ति के लिए ॐ शान्ति प्रार्थना करने का हुक्म जारी किया । जिसकी प्रतिलिपि पाठकों की जानकरी के लिए दी जाती है-वह प्रतिलिपि इस प्रकार है
सेक्सन नं. ६ नं. २१६७ श्री एकलिंगजी ॥ श्रीरामजी ।। सिद्ध श्री श्री सिटि पुलिसजोग राज्य श्रीमहक्माखास लि, अपंच दरख्वास्त श्री जैन महावीर मण्डल ४०
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