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________________ ३१२ आप नान्देशमा पधारे । पूज्यश्री के चार वर्ष के बाद मेवाड में पर्दापण होने से पूरे प्रान्त में प्रसन्नता की लहर छा गई । उदयपुर श्रीसंघ को जब इस बात का पता चला तो श्रीसंघ के २१ मुख्य कार्यकर्तागण मोटर द्वारा नान्देशमा आये और पूज्यश्री से पुनः उदयपुर पधारने की बहुत विनंती की। इसके पहले ब्यावर श्रीसंघ भी पूज्यश्री की सेवामें पहुँच गया था और व्यावर पधारने की आग्रहभरी प्रार्थना करने लगा । किन्तु लम्बे समय से उददपुर संघ की अत्यंत भावना को ध्यान में रख कर पूज्यश्री ने उदयपुर पधारने की स्वीकृति फरमा दी । सिंगाडा, सायरा, सेमड, कम्बोल, पदराडा ढोल तरपाल होते हुए आप जसवंत गढ पधारे। आपने श्रावकों की विनती पर होलि चातुर्मास जसवन्त गढ़ में ही व्यतीत किया। इस अवसर पर आशातीत धर्मध्यान तपवर्या हुई । नान्देशमां से पूज्यश्री ने उदयपुर की ओर बिहार किया । मेवाड के जिस जिसगांव में पूज्यश्री पधारे उस दिन वहां अगते रखे गये । और सभी प्रकार की जीवहिंसा भी बन्द रखी गई । जाहिर में ईश्वर प्रार्थना की गई । नान्दिशमां गाव में भी अगता रखा गया ओर ईश्वर प्रार्थना की गई । पूज्य आचार्यश्री जब उदयपुर के समीप पधारे तो यह शुभ समाचार सुनकर समस्त उदयपुर में प्रसन्नता की लहर छा गई । पूज्यश्री के नगर में पदार्पण होने के शुभ दिन की प्रतीक्षा करने लगे । चैत्र कृष्णा अष्टमी ता० ४-३ मार्च को पूज्यश्री नगर के बाहर आयड ग्रम में गंगोद्भव पर कोठारी - जी की बाड़ी में पधारे । श्रीमहावीर मण्डल ने पहले से ही श्रीमान् महाराणा आर्यकुल कमल दिवाकर की सेवा में अर्जी भेज कर पूज्यश्री के शहर में पधारने के रोज आम अगता [पाखी] पलवाने का हुक्क प्राप्त कर लिया था । हुक्म से शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया गया था कि "आज पूज्य आचार्यश्री घासीलालजी महाराज पधार रहे हैं । सो सारे शहर में अगता पालना अर्थात् जीवहिंसा आरंभ आदि के कार्य मत करना ।" पूज्यश्री अपनी शिष्य मण्डली सहित ठीक ८ बजे हाथी पोल के दरवाजे होकर जयध्वनि के साथ बड़े जूलूस से सदर बाजार में होकर (विशाल अक्षयभवन) महेता साहब श्रीजीवनसिंहजी की हवेली में पधारे । पूज्यश्री के व्याख्यान अक्षयभवन में होने लगे । जनता उमड उमड कर आपके व्याख्यानों का लाभ लेने लगी । आपके आदेश से श्रीमान् महाराणा साहब बहादुर मेवाडाधीश ने तमाम राज्य मेवाड में चैत्र शुक्ला १२ ता० ११ अप्रेल को आम अगता पाखी रखाये जाने व उस रोज “ॐ शान्ति शान्ति शान्ति” की प्रार्थना करने का फरमान जारी फरमाया । तदनुसार उपरोक्त तारीख को समस्त मेवाड राज्यधानी में एवं मेवाड के साडे दस हजार गावों में जीवहिंसा बन्द रही । सारशहर में “ ॐ शान्ति प्रार्थना व दूसरे रोज भगवान श्री महावीर स्वामी की जयन्ति का समारोह मनाने के लिए विशाल पंचायती नोहरे का स्थान नियत किया गया। वहां पर स्टेट फराशखाने से जनता के लिए बडे बडे साईवान लगवा दिये गये । व बिछायत का इन्तजाम हो गया। पंचायती नोहरे के विशाल प्रांगन में पूज्यश्री के आने के पूर्व ही हजारों व्यक्ति वहां एकत्रित हो चुके थे । प्रबन्ध व्यवस्था इतनी चतुराई से की गई कि प्रत्येक व्यक्ति पूज्यश्री को देख सकता था । पूज्यश्री घासीलालजी महाराज ठीक आठ बजे संतमण्डली एवं समारोह के स्थान पर पधारे । उपस्थित सर्व जन समूह ने श्रद्धावनत हो था मानो समस्त उदयपुर नगर आज इसी एक ही स्थान पर आकर पाट पर मुनिवृन्द के साथ पूज्यश्री बिराजमान हो गये । पाट के सामने ही मेवाडाधिपति महाराणा सा. श्री भूपालसिंहजी बहादुर अपनी रोजकीय पोशाक में आसीन थे । और पास में रंजिडेन्ट साहेब भी बैठे थे । कुछ पास ही राजकीय अधिकारी नगर के संभ्रात प्रतिष्ठित नागरिक बैठे थे और उनके पीछे जनसाधारण का अपार समूह उपस्थित था। मंगला चरण के साथ पूज्यश्री ने अपना प्रवचन प्रारंभ किया । Jain Education International श्रावक श्राविकाओं से परिवेष्ठित हो स्वागत किया । ऐसा प्रतीत होता केन्द्रित हो गया है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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