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________________ देहावसान हो जाने से गोडवाड के पंच वहां बैठ ने आए थे। उनके सामने झगडे को निपटाने की बात चली सभी के मन में यही भाव थे। किसी विशेष अवसर की तक में सभी थे। पूज्य आचार्य श्री को मेवाड मे जाना था, इस कारण सादडो से ५ मिल दूर मूर्तिपूजक समाज का प्रसिद्ध तीर्थ राणकपुरजी पधारे । उसी रात को सादडो मारवाड का स्थानकवासी व मूर्तिपूजक समाज का वर्षों का क्लेष समाप्त हो गया। दूसरे ही दिन एक हजार घरों में एक गृहस्थ ने इस क्लेष के अन्त की प्रसन्नता में एकश्रीफल और एक रुपए की प्रभावना करदी। मेवाड में पदापर्ण पूज्य श्री का चार वर्ष के बाद से मेवाड़ में पदापर्ण होने से सेरा प्रान्त के लोगों में प्रसन्नता छा गई । सिंगाडा गांव से श्रावक लोगों का तांता लग गया । सायरा, सेमड़, कम्बोल, पदराडा, ढोल, तरपाल होते हुए आप जसवन्तगढ पधारे। श्रीसंघ को आग्रह भरी विनन्ती को मान देकर होला चातुर्मास यहीं बिराजे । आस पास के गांवों से बहुत से श्रावक श्राविकाएँ दर्शनार्थ आए। वहां से गांव नान्दीस्मां पधारे, जहां उदयपुर श्रीसंघ के २५,३०अग्रेसर श्रावक चातुर्मास की तथा उदयपुर पधारने की विनन्ती करने के लिये आए। पूज्य श्री ने उदयपुर पधारने को विनन्ती स्वीकृत की। इधर के सभी गावों में जहां जहां पूज्य श्री पधारे वहां एक दिन का अगता पालकर ईश्वर प्रार्थना की गई। एक किसान ने अगता नहीं पाला और कुए पर रेंट (अरहट) चलाया । यकायक रेंट का बेल कुए में जा गिरा। गांव वाला ने पहुंचकर बेल का कुए स जावित बाहर निकाला । किसान न अपनी भूल के लिय पूज्य श्री के पास आकर वारंवार क्षमा मांगा । इसी प्रकार मंदार [गापीनाथजी की] गाँव में कलाल द्वारा अगता न रख जाने पर उसे भी तत्काल ही अपनी भूल का पश्चाताप के साथ क्षमा मांगनी पडा। उदयपुर के पास ही नाई गांव है, वहां के श्रीसंघका आग्रह हानेसे शेष काल वहा बिराज । वहां से उदयपुर चातुर्मास के लिय पधारे । वि० सं. १९९५ का चातुमास उदयपुर में उदयपुर जैन श्रीसंघ का चारकाल स यह हार्दिक भावना थी कि चारित्र चूडामणि पूज्य आचार्य श्री घासीलालजी महाराज सा. का चातुर्मास हमार यहा पर हो । ।जस समय पूज्य श्री सिन्ध प्रान्त म कराचा जैस दूर प्रदेश में बचरकर अपना आजस्वा वाणा द्वारा जैन धने का महान प्रचार कर रह थे उस समय भी श्रीसंघ के प्रमुख मेहताजा सा. जावनासहजा का आर से पूज्य श्री का सवामें विनती भेजी गइ या और मवाड राज्य क दिवान वरतजसिंहजी सा. महता का भा यह हार्दिक कामना था कि पूज्य श्री का चातुर्मास हमारे यहां हा । किन्तु [सन्धप्रान्त में हानवाल अपूर्व उपकारा का छाडकर पूज्यश्रा उसवक्त उधर नहा पधार सके । लगातार दो वर्ष तक सिन्ध प्रान्त म बिचरकर वहां की जैन अजैन प्रजा में जा जा उपकार । ववरण कराची के चातुर्मास क विवरण में आ हा गया है सिन्ध प्रान्त को पावन करते हुए जब पूज्यश्री बालातरा पधारे तब भी चातुर्मास का विनता के लिए । का प्रातानाध मण्डल पूज्यश्री का सेवामं पहुचा किन्तु उस समय भी उदयपुरवालों का इच्छा सफल न हुई। लेकिन् कुछ आशा बन्ध गई थी। ____ बालोतरा का चातुर्मास पूर्णकर पूज्यश्री जब जालोर पधारे उस समय भी उदयपुर जैन संघ का प्रतिनिधि मण्डल चातुर्मास की विनती करने के लिए पूज्यश्री की सेवामं जालोर पहुँचा। वहां भा पूज्यश्रा का आर से सन्तोष जनक उत्तर नहीं मिला । लेकन् कुछ आश्वासन मिल गया था। जालोर से जब पूज्यश्री घानेराव सादडी पधारे उस समय पुनः उदयपुर का श्रीसंघ पूज्यश्रा की सेवामें आया और उदयपुर पधारने की प्रार्थना करने लगा। उदयपुर संघ की अत्यंत आग्रह भरी प्रार्थना पर पूज्यश्री ने मेवाड की ओर विहार करना स्वीकार किया । सादडी से पूज्यश्री ने विहार किया बीच के छोट बड़े ग्रामों का पावन करते हुए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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