________________
३१०
नरेन्द्रकुमार, एवं देवेन्द्रकुमार इस प्रकार ज्ञानचन्दजी के तीन पुत्र है इस प्रकार व्यावहारिक रीति से आपको पुत्र पौत्रादि सरणी दिव्य परंपरा आज भी विधमान है एवं तपस्वीजी के पुण्यबलसे वे सव व्यवहारिक सुख संपन्न है । घडी धन्य आज की सबको मुबारिक हो २ ॥ हुवा है पूर चवदशका मुबारिकहो २ ॥टेक।। हमारे भाग्योदय से फिर कृपाकि इन मुनिवरने ॥ हुवे दर्शन हमें यहां पर मुबारिक हो २ ॥१॥ मुनि सद् ग्रन्थ के ज्ञाता जैनागम व्याख्याता ॥ वर्षती वाणो अमृतसी, मुबारिक हो मुबारिक हो ॥२॥ पिता भैरव के घर आये माता प्रताप के जायें।। शहर अलवर को शोभाए, मुबारिक हो मुबारिक हो ।।३।। घर की रिद्धि सब छोडी, कुटुम्ब से प्रिती तुम तोडी ॥ गुरु के शिष्य हो होना मुबारिक हो मुबारिकहो ॥४॥ तपस्यारम्भ कर दिनी यहां पर आते हि पहले ॥ पिच्योतर दिन है - आजे मुबारिक हो मुबारिक हो ।५। कहिं बेला कहिं तेला कहीं अठाई नव वरंगी ।। लगा है ढाट तपस्या का मुबारिक हो मुबारिक हो ॥६।। हजार एक आठ तेले कर पुज्य मुनिवर ने फरमाया । हो गये उससे कईज्यादा मुबारिक हो मुबारिक हो ॥७॥ तप पूर के पहले, अमरपडा खूब बजवाया ।। रखे सर्वलोग ज्यां अगता मुबारिक हो मुबारिक हो ॥८॥ 'शोभा, की अंत में मुनिवर, यहि है आपसे अर्जी ।। आपकी मुज पै हो मेहर मुबारिक हो मुबारिकहो ।।९।। भजन नम्बर २ मुनि सुन्दर तपस्वी तपस्यामें है भारी २ पिता भैरुलालजी प्रताप बाई महतारी, उगणीसे सित्योतर दिक्षा मुनि ने धारी २ यह काम धेनु सम जाण जगत सुख कारी करे ज्ञान ध्यान उद्योत रत दिन सारी, मैरी नैया पडी मझधार आप दो तारी ॥१॥ तपस्यामें देख लो कैसे मुनि ये शूरे चम्मालीस इक्सट और एकावन पूरे उगणसाठ इक्यासी छियोंतर ब्यावरके मांही, चौसठ पिचोतर उदयापुरमें आई नित उठ करके सब लीजे नाम सवेरी ॥ मैरी नैया पडी मझधार आप दो तारी ॥२॥ नव्यासी गाम मोटेमें आपने किने नेउ तप ठाम सेमल तर पिने शहैर कुचेरा एकानु देव चरण चिने, नेउ छनो तप धार कराचि यश लिने पिच्यासी का पूर पूर आत्मा भारी मैरी नैया पडी मझधार आप दो तारी ॥३॥ सुन्दर तपस्वी अर्ज मैरी सुनलिजे २. अब हो जाय निस्तार आशिस ऐसी दीजे कोई हुइ मेरे से भूल माफ कर दीजे, मेरे लिए प्रभु से आप दया कीजे शोभा चरणों की आस एक है तेरी, मैरी नैया पडी मझधार आप दो तारी ॥४॥
चातुर्मास समाप्त होने पर पूज्य श्री खण्डप, जालोर, तखतगढ होते हुए पोष माह में सादडी मारवाड प. धारे । उस समय गोडवाड प्रान्त का सादडी के स्थानकवासी व मूर्तिपूजक संघ में भयानक कदाग्रह चल रहा था। परस्पर पूर्ण रुप से संबन्ध विच्छेद था ।इस कदाग्रह को मिटाने के-लिये बहुत से प्रयत्न हुए परन्तु सफलता नहीं मिली। पूज्य श्री वहां पधारें और वहां गाँव में अगता रखवाकर ईश्वर प्रार्थना का आयोजन रखा गया जिसमें कई मूर्तिपूजक भाई आए । यह देखकर वहां के लोग बोल उठे कि पूज्य आचार्य श्री के पदार्पण से यहां का क्लेष मिट जायेगा।
पूज्य श्री ने भी सादडी के इस भयानक झगडे को मिटाने की बात मन में ठोनली । पहले तो स्था नकवासी समाज की तड को मिटाई बाद में वहां के प्रमुख गृहस्थ पृथ्वीराजजी कोठारी श्री जवानमल वटिया तथा युवक दल से संपर्क स्थापित किया । अन्दर ही अन्दर सभी से हृदय में परस्पर के क्लेष को मीटाने की भावना जागृत हुई । एसे समय में वहां मूर्तिपूजक समाज के मुख्य कार्यकर्ता दलीचन्द्रजी का
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org