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के मुह से एक आवाज थी कि हमारे में से एक महान योगी तपस्वी चला गया ।
श्री योगानिष्ठ महान तपस्वी मुनि श्री सुन्दरलाल जी म. सा. का संक्षेप जीवन परिचयः ।
तपस्वी श्रीसुन्दरलालजी का जन्म अलवर में हुआ । आपके जन्मदाता पिता का नाम भेरुबक्षजी है एवं माता का नाम अचीबाई है । आपके जन्म के बाद कुछ बडे होने पर श्री गोकुलचन्द्रजी के वहां आपको गोद लिया गया था । आप बाल्यअवस्थासे हि धर्म प्रति बडी श्रद्धा रखते थे । आपकी सुयोग्य उम्र होने पर सुशिला श्री सुगनबाई के साथ शादि की गई तत्पश्चात् आपको कोई संतान न होने से १९७६ में एक बालक को गोद लिया जिनका नाम नाथुलालजी है।
आप बाल्यअवस्था में ही धर्म के प्रति पूर्ण श्रद्धालु होने से गृहस्थावस्थामें भी आप नित्यप्रति सामाइक प्रतिक्रमण उपवास बेला तेला आदि अनेविध धार्मिक तपस्याएँ किया करते हैं
एक समय की बात है कि स्वर्गस्थ महानतपस्वीराज श्री सुन्दरलालजी महाराज जब गृहस्थाश्रममें थे तब उनके बड़े भाई कल्याणबक्षजी को शादी करके बारात वापस अपने गाममें लौट रही थी। उस समय रास्तेमें कल्याणबक्षजी को लघुशंका की हाजत हुई । और वे रथ से नीचे उतर कर कुछ दर जाकर लघुशंका की निवृत्ति के लिये बैठे । परन्तु काफी देर होने पर भी वे वापस नहीं लौटे तो बारात के अन्यजन वहां तालाश के लिये गए, तो उन्होंने वहां कल्याणबक्षजो को बेहोश अवस्थामें पडे देखे । उनको बेहोश होने कि बातजानकर तपस्वोराज ने वहां जाकर उनकी नब्ज देखी । नब्जसे उनको अभी बेहोसी ही है ऐसा जानकर पूज्य तपस्वीजी ने उसी वख्त वहां की जमीन पुंजकर आसनलगाकर ध्यानमें बेठ गये। कछ समय के बाद वे कल्याणबक्षजी बोलने लगे की मेरे स्थान पर लघुशंका की है अतः मैं इन्हे लेकर हे जाउंगा। इस पर से तपस्वीराज ने कहा कि इन्होंने जो कुछ किया है वह भूल से ही किया है अतः भूलकी इन्हे क्षमा की जावे । तत्पश्चात वे होश में आये और वहां से गांव के लिए रवाना हुए । गांव में पहुंचने पर वे फिर से बेहोश हो गए। फिर तपस्वीराज ने वेसा हि किया और तेले का तपकर उनसे वचन लिया कि मैं १२ वर्ष पर्यन्त किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं दूंगा ।।
स्व० तपस्वीराज एकबार जब अलवरमें बिराज रहे थे तो उसी मौहल्ले में रात्रीको कौवे को बोली सुनकर उन्होंने कहा कि यहां पर कोई बहुत बडा उपद्रव होने वाला है । उसके दो तीन घन्टे के बाद किसी ने एकब्राह्मणी को जान से मार दिया ।
कहने का भाव यह है कि आप तपस्या के बलसे इस प्रकार भूत प्रेत डाकनादि को हटा सकते थे । एवं अनेक पक्षियों की भाषा आदि भी जान कर भविष्य को कह देते थे।
तपस्वीश्री जब कहीं ४५ वर्ष की अवस्थामें थे उस समय उनकी सांसारिक धर्म पत्नी का देहान्त हो गया । उसके बाद उन्होने अपने भाई को लडकी गेंदाबाई की शादि कर वे संसारमें रहते हुए भी महीने में २७ दिन धर्मध्यानमें व्यतित करना शेष ३ दिन दुकान पर जाने का निश्चय बना लिया ।
इस प्रकार कुछ समय पसार करने पर अपने सुपुत्र श्रीनाथुलालजी को घरका सारा कार भार सौंपकर संवत् १९७७ के मगसीर सुदी बीजको शहर भिनासर में पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज सा. के पास जाकर उन्होंने दीक्षा धारण की ।
इस प्रकार आप बाल्यावस्थासे ही बडे धर्म परायण होकर विरक्त रहे एवं गृहस्थाश्रम स्वीकारने पर भी तपस्वी श्री उससे विरक्त से ही रहे। जैसे जल कमलवत् । ___आपके पुत्र नाथुलालजी के दो पुत्र हुवे जिनका नाम श्री बिरदीचन्दजी एवं ज्ञानचन्दजी विरदीचन्द जी के दो पुत्र हुवे जिनका नाम मंगलचन्दजी, एवं लाभचन्दजी, ज्ञानचन्दजी के पुत्रों के नाम महेन्द्रकुमार
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