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अब तो जरा इस मकान में ही घूमो फिरो तो अच्छा। तपस्वीजी म. बोले इतनी शरीर शक्ति नहीं है। दोनों श्रावको ने अर्ज की हमे तपस्वीजी म. को बैठा कर दर्शन कराने की कृपा करो । पूज्य श्री ने अपने हाथ के सहारे तपस्वीजी म. को बैठाए । तपस्वीजी म. ने दोनों श्रावकों को वन्दना स्वीकारी । पूज्य श्री अपने हाथों
का सहारा दिए हुए हैं। किसे पता था कि तपस्वीजी म. अभी कुछ क्षण में ही महापायाण करने वाले हैं । हिचकी आई और श्वासों ने तित्र गति पकडी, उसी समय पूज्य श्री ने चौविहार संथारा करा दिया, जिसे तपस्वोजी महाराज ने चेतन युक्त स्वीकार करलिया। दोनों मुनि भी वहां उतावल से पहुंचे। शरीर में सिनेमां के चित्रों की तरह रंग दौड रहा था । जैन समाज की वह महान विभूति, महान तपस्वी, महान योगी इस नश्वर देह को पूज्य श्री के हाथों में सभी उपस्थित मनियों श्रावकों की साक्षी से समर्पित करके सदा के लिये प्रस्थित होगए अर्थात् स्वर्गवासी होगए ।
तपस्वीजी म. के स्वर्गवास के समाचार वायु वेग की तरह गांवमें सभी जाति, सभी समाज वालों को मालूम होते ही सभी ने अपना अपना व्यापार काम काज बन्द कर दिया। आस पास के गावों के संघो को तार फोन से समाचार पहंच जाने से सैकड़ों लोग बाहर से आगये । करांचो से ५०० मनुष्य आने के लिये कराची स्टेशन पर आए । बालोत्तरा श्रीसंघ को फोन किया कि यहा के लोग पहँचे वहां तक अग्निदाह न करे । मारवाड प्रान्त में इतने समय तक मृत-शरीर को रोके रखने की प्रथा न होने से बालोत्तरा श्रीसंघ ने तबतक रुके रहने को ना कहदी, जिससे वहां के लोग हताश होकर स्टेशन से लौट गए ।
एक बजे तक श्मशान यात्रा की तैयारी करली क्योंकि सामान तीन दिन पहले ही जोधपुर से ले आये थे। श्री फतेहचन्द्रजी दांतो के मकान में चातुर्मास था । वह सारा मकान गली, बाजार लोगों से खचाखच भर गया । जैन जैनेतर सभी को तपस्वोजी महाराज के प्रति दृढ श्रद्धा होने से गांव की सभी जाति को भजन मण्डलियां अपने २ साधन लेकर प्रभु भजनों की धून लगा रहे थे । मनुष्यों की ठठ इतनी लगी थी कि कहीं पैर रखने की जगह नहीं थी । बेन्ड की विषाद स्वर लहरी में साक्षात जीवित मूर्ति बिराजित है एसो प्रतित हो रही थी। आत्मा द्वारा त्यागे जाने पर शरीर में कडक पन आजाता है परन्तु इस शरीर में वैसा कोई परिवर्तन नही आया । शरीर के सभी अंगो को जिधर झुकाओ उधर ही झुकता था। लोग ऐसा सोच रहे थे कि यह भव्य आत्मा अभी कुछ बोल कर जीवित होने की प्रतीति कराएंगे। परन्तु वह कल्यना साकार नहीं होसकी। हजारों जनता की आँखे सजल होजाती थी। निःश्वास भरे शब्दो में वे बोलते थे कि इस महान आत्मा का अव इस जन्म में दर्शन कब होगा ? यह दिव्य यात्रा बजार से होती हुई श्मशान में चार बजे पहुंचो । जहां चन्दन पीपल काष्ठ की चिता में नश्वर शरीर को रखा गया । हजारों नारियल प्रज्वलित आग में वर्षा की भां ते हजारों लोगों ने श्रध्या अश्रु पूरित नयनों से अर्पित किये । तपस्वी म. का सोरा शरीर जल जाने के बाद भी बहुत समय तक चदर और मुहपति न जली यह वहां उपस्थित लोगों के लिये महान आश्चर्य बना । दूसरे दिन करांची संघ के कार्यकर्ता श्रीछगनलाल लालचन्द भाई तुरखिया, श्री खीमचन्द माणेकचन्द शाह, श्री छोटालाल छगनलालशाह श्री नारायणजी भाई, श्री सोमचन्द्र नेणसी महता, श्रीत्रिभुवनदास भाई आदि आए और अपने साथ लाए हुए चन्दन को तपस्वीजी म. के शरीर का जहां हआ वहाँ समर्पित किया । समर्पित करते हो आग प्रज्वलित हो उठो, मानो वह इस भेट की राह रही थी। सभी आश्चर्यचकित रह गये पश्चात दग्ध शरीर की जगह से करांची श्रीसंघ वालोंने भभूति के रूप में राख टीनों में भरी। इस बात का बालोत्तरा के जैनो अजनो को पता चला तो सभी वहां दौड पडे । उस ज गह से राख हाथ लगी तो राख और बाद मे मिट्टी भी खोद खोद कर ले गए ।
तपस्वीजी म. के स्वर्गवास के समाचारों से सारे स्थानकवासी जेन जगत मे विषाद छागया । सभी
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