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________________ ३०७ दूसरे मुनियों का आग्रह रूक गया । दस पन्द्रह दिन निकल जाने के बाद तपस्वीजी म. ने दूध लेना भी बन्द कर दिया । केवल पानी और दवा लेते थे। ऐसी अवस्था में अजमेर सेठ घेवरचन्दजी चोपडा को श्रीसंघने तार से सूचना भेजी कि आप वैद्यराज जगन्नाथजी को लेकर जल्दि आयें । वैद्यराजजगन्नाथजी ने पहले भी तपस्वीजी म. का उपचार किया था, उससे आराम भी हुआ । जब तपस्वीजी म. को तार देने का पता चला तो वे बोले कि वैद्यजी नहीं आ सकेंगे । हुआ भी वही तार पहुंचा उस समय वैद्यजी स्वयं अस्वस्थ थे जिससे नहीं आसके । तपस्वीजी म. की जन्मभुमि अलवर शहर थी आपके पिता का नाम भैरबक्षजी था और माताका नाम अचीबाई था । आपके एक बड़े भ्राता भी थे जिनका नाम कल्याणमलजी था । छोटी बहन का नाम सुन्दरबाई था। आपकी पत्नी का नाम सुगनबाई था। आपके पुत्र नाथुलालजी थे। पोत्र का नाम चिरदोचन्दजी एवं ज्ञानचन्दजी थे। इस प्रकार आपके लड़का था पोते थे परिवार बहुत बड़ा था दीक्षा के बाद वे जन्मभूमि अलवर नहीं पधारे अने कभी जाना भी नहीं चाहते थे। वे यह कहते थे कि मैने जब घर परिवार का संम्बन्ध त्याग दिया है तो फिर वहां जाने की जरूरत ही क्या ! वहां जाने से मोह भाव जागृत होने की संभावना रहती है । अतः में अलवर जाना ही नहीं चाहता । परिवार से निर्मुक्त भाव रखनेवाले तपस्वीजी महाराज ने पूज्य श्री से कहा कि अलवर वालों को संथारे का समाचार मत देना । भादवा सुद १५ को तपश्चर्या का पारणा हुआ था आसोज विद ७ से दूध, पानी, दवा से अतिरिक्त अन्य आहार का त्याग कर दिया। आसोज सुद एकम १ से दुध का भी त्याग कर दिया और आसोज सुद६ ते दवा का भी त्याग कर दिया । तेविहार संथारा कर लिया पानी भी पूज्य श्री के हाथों से ही ग्रहण करते थे । उनको दीक्षा ली तब से यह नियम था कि मुहपति बन्धी रहै तब तक चारों अहार में से एक भी अहार नहीं लेना | दवा पानी लेना हो तो भी वे मुहपति का डोरा कानमेंसे निकालने के बाद ही लेते। इस नियम से वे मुहपति मुह पर होते हुए चारों अहार के त्यागी थे आजोस सुद ६ से ८ तक शारीरिक स्थिति भयावह होती गई । रुग्णता के तार अन्यत्र भेजने के साथ अलवर भी तार भेजा गया । अलवर तार भेजने की बात जब तपस्वी जी म. को मालूम हुई तो उन्होंने फरमाया कि अलवर वाले नहीं आ सकेंगे। बात भी यही हुई कि अलवर तार गया तो अलवर वालों ने पुनः तार से पूछाया कि तपस्वीजी महराज का स्वाथ्य कैसा है ? इस तरह का जवाब गया जितने तो इधर की सारी स्थिति ही बदल गई । अत्यन्त अशक्तिवश तीन दिन तक वे स्वयं प्रतिक्रमण नही कर सके, नित्यपाठ भी दूसरों ने सुनाया । तीनों दिन रात्रि प्रति समय मुनि पास में बने रहे। रात में ओसरे के अनुसार मुनि सेवा में जागृत रहेते थे । तपस्वी म. की चेतना बढती हुई थी निरन्तर अंगुलियों के पेरखो पर अन्गूठा घूमता रह रहा था। उन्होने फरमा दिया था कि मेरे पास कोई भी बात नही करें। मेरे स्मरण में गड़बड़ो नहीं होनी चाहिए । आठम के बाद नवमीका दिन आनन्द से बीता । रात्रि के दोनों समय का प्रतिक्रमण और नित्य पाठ स्वयंने किया । सूर्योदय होने पर वहां के वैद्य ने नाड़ी देख कर कहा कि कल से आज नाड़ी बहुत ही अच्छी चल रही है। भय जैसी कोई बात नहीं है। आसोज सुद १० सुबह तपस्वीजीम ने समीर मुनिजी तथा कन्हैया मु निजी से कहा कि आज मेरा स्वास्थ्य ठिक है, तुम जाओ और पढो १ पूज्य श्री ने दोनो मुनियों से फरमाया कि तुम जाकर पण्डितजी से पाठ लेकर वापिस नौ बजे तक आजाना । नो बजे तपस्वीजी म. का आसन जिस कमरे में है उससे दूसरे कमरे में परिवर्तित करना है । दोनों मुनिवर धर्मशाला में पढते थे वहां गये । पूज्य श्री बाहर पधार कर तपस्वोजी महाराज के पास पहुँचे इतने मे श्रावक बक्षीरामजी दांती और केसरीमलजी दोनों भी वहां दर्शनार्थ आए । पूज्य श्री ने तपस्वीजी म. से कहा कि आप को सोए सोए बहुत समय होगया I Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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