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केवल दो तीन मील का ही बिहार कर सकते थे। और वह भी मुनियों के सहारे से ही चल सकते थे । तपस्वीजी म. की पूज्य श्री के प्रति अनन्य भक्ति थी तो पूज्य श्री का तपस्वीजी म. के प्रति अगाध स्नेह था । एसी अवस्था में पूज्य श्री उनको तनिक भी जुदा नहीं छोडते थे । बालोतरा स्टेशन की जैन धम शाला में बिराजना रहा । रात को पूज्य श्री का जाहिर व्याख्यान भी होता था । रात की शान्ति के समय व्याख्यान में लोग भी श्रवणार्थ बहुत अधिक आते थे । आचार्यश्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ चातुर्मास के लिये शहर में सेठ फतेचन्दजी दांती के विशालभवन में पधारे, श्रीसंघ का अपार उत्साह था, श्रीसंघ के द्वारा दांतीजी के मकान के पीछे पटांगण में एक विशाल मण्डप तैयार किया गया था, वहां आचार्यश्री के ब्याख्यान होते थे । चातुर्मास समय नजदीक आने पर तपस्वीजी म. ने पूज्य श्री से प्रार्थना की कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी चातुर्मास में तपश्चर्या करने की मेरी अत्यन्त इच्छा है । पूज्य श्री ने फरमाया-तपस्वीजी आपका शरीर बहुत ही दुर्बल होगया है । मुनियों के बिनासहारे चल नहीं सकते हो, एसी स्थीति में तपश्चर्या कसे होगी ? तपस्वीजी महाराज ने कहा गुरुदेव! तपश्चर्या का सम्बन्ध आत्मा से है. शरीर से नहों । यह मेरा अन्तिम वर्ष है । प्रतिवर्ष तो तपश्चर्या की और इस वर्ष तपश्चर्या न करूं तो फिर मेरे संसार त्याग का फल ही क्या होगा! संसार में अपने घर से जाने वाले अपने अपने स्नेही को रास्ते के लिये भाथा ( भोजन ) बंधाते हैं तो क्या आप मुझे जाते हुए को भाथा नहीं बधाएंगे ? आप के साथ रहने का लाभ यह हि है कि आप मुझे मुक्त हृदय से अन्तिम साज ( सहाय ) दें । तपस्वीजी म. की इच्छा को पूज्य श्री सदा से मान दिया करते थे, उसी अनुसार पूज्य श्री ने तपश्चर्या करने की आज्ञा दे दी और तदनुसार तपस्वीजी म. ने प्रतिवर्ष की तरह महान तपश्चर्या प्रारम्भ की।
___ तपस्वी श्रीसुन्दरलालजी म. की तपश्चर्या असाधारण तपश्चर्या होती थी। वे केवल भूखे रहना ही नहीं जानते थे। किन्तु वे महान तप के साथ ज्ञान साधना भी करते थे ! वे अपने तप के दिनों में बिना सहारे एक सामान्य आसन पर बठेते और सुबह से शाम तक शास्त्र स्वाध्याय करते। उन्हें श्रीदशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग सूयगडांग, नन्दी सूत्र, सुखविपाक सूत्र कंठस्य थे | गृहस्थावास से ही नित्य स्वाध्याय किया करते थे । तपश्चर्या में १२ लाख १३ लाख गाथाओं की स्वाध्याय कर लेते थे। तदनुसार आत्मबल तपस्वीजी म. ने निर्विघ्न महान तपश्चर्या पूर्ण की । तपश्चर्या के पूर पर हजारों मनुष्य दर्शनार्थ आए । गांव के जैन अजैन सभी को तपस्वीजी म, के प्रति परम विशुद्ध श्रद्धा जागृत हुई । सभी ने अगते पाले राज्य कर्मचारी लोग भी दर्शनार्थ तथा पूज्य श्री के उपदेश श्रवणार्थ आए । बालोत्तरा श्रीसंघ ने उत्कृष्ट भाव से तपोत्सव मनाया । तपस्वीजी म. के तपश्चर्या का पारणा सानन्द हो गया । जो कि पारणों करने की इच्छा नहीं थी वे तो संथारे की याचना कर रहे थे परन्तु पूज्य श्री ने संथारे का समय न देखकर पारणा कराया । पारणा करने के बाद पांच छ दिन बीतने पर तपस्वीजी म. को अति दस्ते लगना प्रारंभ हो गई। तपस्वीजी म. के बद्धकोष्ठ होने से उम्रभर प्रायः कब्ज रहा करता था । परन्तु अब दस्ते लगना प्रारंभ होने से उन्होंने संथारा करने की अर्ज की पूज्य श्री तथा संघ के आगेवान गृहस्थ संथारे की जगह इलाज कराना चाहते थे।
तपस्वीजी म. को लगा कि स्नेह वश मुझे संथारा नहीं करा रहे हैं तो फिर स्वयं ने दूध, पानी दवा के अतिरिक्त अन्य वस्तु ग्रहण करना छोड़ दिया। एक दिन में तपस्वीजी म. के कृपापात्र श्री समीरमलमुनिजी म. ने पूज्य श्री की आज्ञा से दूध लेने का अति आग्रह किया । न पीने की इच्छा होते हुए भी पिलाने लगे तो उन्हें एसा लगा कि ये स्नेह से कहीं मुझे आगे बढने में रोक नहीं दें ? इसलिये सभी के सुनते हुए प्रत्याख्यान ले लिये कि पूज्य श्री के सिवाय अन्य किसी के हाथ से आज से कुछ भी पदार्थ नहीं लूंगा । इससे
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