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________________ ३०५ रखकर भोजन नहीं बनाया जाता । जैन मुनियों का नियम हो ऐसा है कि वे अपने लिये बनाया हुआ भोजन कभी भी नहीं लेते" । प्रज्य श्री से समाधान पाकर भुनीमजी ने मखी गोविन्दरामजी सेठ को जाकर सारी बात कहो जिसे सुनकर मुखोजी को बडा आश्चर्य हुआ और जैन मुनि व धर्म के प्रति अत्यंत श्रद्धा बढ़ी । मुखी गोविन्दरामजी, सेठ किसनचन्द पोहमल ब्रदर्स, सेठ लालचन्द एडवानी परिवार, विश्ना डी. डास्वानी परिवार तथा हैद्राबाद जैन श्रीसंघ पूज्य श्री का चातुर्मास कराना चाहता था परन्तु साथ के वयोवृद्ध तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज अपनी वृद्धावस्था के कारण बिहार करने में असमर्थ होते जा रहे थे । जो चातुर्मास के लिये रहें और चातुर्मास बाद बिहार नहीं हो सके तो इतने दूर स्थिरवास रहने जैसा कोई क्षेत्र नहीं था । उस कारण हैद्राबाद से पूज्य श्री ने मारवाड के लिये बिहार कर दिया। ___हैद्राबाद शहेर से मीरपुरखास तक ट्रेने अधिक चलतो थी। जिससे पुतली मां पार्वती बहन आदि बहने तथा गुरुदास, हिराचन्दभाई आदि भाई नित्य ट्रेन से दशनार्थ आते और दो तीन घंटा ठहर कर चले जाते । मीरपुरखास तक आते रहे । उन सभी सिन्धी भाई बहनों ने पूज्य श्रीके अंतिम दर्शन मीरपुरखास में आकर किये । वापिस जाते समय उन सभी के नेत्र अश्रुपूर्ण थे । सबक-सबक कर रोते हुए बोले कि अब गुरुजीके दर्शन कब होंगे। हमें आप भूला न दें । जहां भी पधारें वहां से आसीर्वाद देते रहें जिसे हमारी आत्मा का उद्धार हो। जब तक पूज्यश्री व मुनि मण्डल दिखाई देते रहै तब तक थोडा चलते फिरसे लौटकर देखते हुए नमस्कार करते । जहां से अब दिखना असंभव लगा वहीं कुछ क्षण खडे रहकर दर्शन करते रहे और नमस्कार किया फिर स्टेशन पर पहुंचकर अश्रुभरे नेत्रों से गाड़ी में बैठकर रवाना हुए । सन् ३३ में हैद्राबाद तक जोधपुर स्टेट की रेलवे थी। मीरपुरखास इस लाइन का मुख्य केन्द्र था । बालोत्तरा से करांची तक जैन मुनियों को रेल्वे मार्ग से ही विहार करना होता था । करांची श्रीसंघ ने मीरपुर खास रेल्वे केन्द्र के टेलीफोन कंट्रोलर श्री हरगोविन्ददासभाई रालव तथा श्री रामगोपालजी से संपर्क करके इनके द्वारा इंजन से गरम पानी लेकर रखने की व्यवस्था करते थे। यहां रेल्वे स्टाफ में जोधपुर के लोग ही अधिक थे । इन सभी के आग्रह से दो व्याख्यान पूज्य श्री के वहाँ हुवे । मीरपुरखास से छोटी बडी छोर स्टेशन तक सिन्ध भूमिसरसब्ज है छोटेछोर स्टेशन से रेगीस्थान प्रारंभ होता है । खोखरेपार स्टेशन सिन्ध प्रान्त का तटवर्ती स्टेशन है। यहीं से जोधपुरराज्य प्रारंभ होजाता है । पूज्य श्री आदि मुनिवर बिहार करते हुए बाडमेर पधारे । भगवान श्रीमहावीर जयन्ती का ब्याख्यान पूज्य श्री का ओसवालो के नोहरे में हुआ । वहां से बालात्तरा पधारे । तपस्वीजी म. के शरीर की अशक्ति दिनो दिन बढती जा रही थी। येन केन प्रकार से धोरे-धारे बिहार करते हुए यहां तक तो पधार गए परन्तु अव आगे विहार करने का सामर्थ्य नहीं था। चातुर्मास के दिन भी अत्यंत समीप आते जा रहे थे। तपस्वीजी म. के गिरते हुए स्वास्थ्य को देखकर बालोत्तरा के सेठ श्री फते वन्द्र जो साहेब दांतो, श्री वक्षीरामजी श्री केशरीमलजी श्री मिश्रीमलजी आदि श्रावकों ने चातुर्मास बिराजने का आग्रह किया । पूज्य श्री का बिचार मेवाड में जाकर कहों योग्य क्षेत्र में तपस्वीजी म. को स्थिरवास रखने का था । इस कारण वहां से पारलु होकर समदड़ी के लिये बिहार किया । उधर बालोत्तरा वाले अपने गाँव में ही चातुर्मास के लिये बिराजित करना चाहते थे । अपने विचारानुसार बालोत्तरा के श्रावक चातुर्मास की विनंती के लिये पारलू तथा समदड़ी आए । बालोतरा वालों का अत्याग्रह देखकर तपस्वीजी म. की सम्मति के अनुसार चातुर्मास रहने की स्वीकृति दे दी । तपस्वी सुन्दरलालजी म. को ज्योतिष ज्ञान बहुत ही अच्छा था, आपने ज्योतिष ज्ञान के आधार से पूज्यश्री को नम्र निवेदन किया कि यह वर्ष मेरो आयु का अन्तिम वर्ष है । अब में अधिक नही रहने का हूं । तपस्वीजी म. के निर्णयानुसार शरीर बल भी घटता जा रहा था । समदडी से बालोत्तरा जाते समय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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