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________________ ३०२ विश्वमान्य एवो जैनधर्म जगतमां अस्तित्व धरावे छे ए आ प्रदेशमां भाग्येज कोई जानतुं । महाराज श्री सिंध देशनां पाटनगर कराचो नी तवारीखमां स्वर्णाक्षरे एक अनुपम प्रकरण लखायुं ते आपना आग मननी महद् कृपा थी आपना सुशिष्य घोर तपस्वीजी मुनि श्री १००८ श्री सुन्दरलालजी महाराजे अपना परम पुनित अभय छत्री शितल छायामां बे चातुर्मास दरम्यान प्रथम वर्षे ९० अने द्वितीय वर्षे ९६ उपवास करी जैन तपस्याना गौरवनी अद्भूत घोषणा करी, कराचीना कत्लखानाऔ पहेलीजवार एक दिन भर बंध रह्या कराचीना आंगने अने हिंदभरमां न भूतो न भविष्यति” दया प्रचार अनुपम कार्य थयुं । अने सैकडों जीवो अभयदान पाम्या. व्याख्यान वाचस्पति गुरुदेव ! आपनी विद्वत्ता अनुपम छे. आपनी वक्तृत्व शक्ति अगाध छे. आपनी व्याख्यान शैली अद्वितीय छे. आपनी धर्म कर्तव्य परायणता उच्चतम छे. आपनी विचार श्रेणी अगाध छे. अने आपनो साहित्य वृत्ति तो अत्यन्त विशाल छे. हिंद भरना सर्वे विद्वान प्रभावशाली श्रमणसन्तों नुं प्रशंसा पामेल श्री उपासक दशांगसूत्र ये आपनी अनुपम प्रसादीनी कृति छे. आपनाअनुपम गुणों अने अगाध ज्ञाननुं सम्पूर्ण वर्णन करवानु अमारी लेखनीमा सामर्थ्य नथी. शासन प्रभावकसंत, आपनी विद्वानां झलकता किरणों दक्षिणहिंद मां छेक कोल्हापुर पर्यन्त प्रवेशी चुवया छे. साहु छत्र छत्रपति कोल्हापुर नरेशे आपने जैन शास्त्राचार्यनु अत्यन्तगौरववन्तु पद समये छे. ए आपनी अपूर्व विद्वत्तानी प्रतीति छे. सकल आगम रहस्यवेदी गुरुजी, 'आपश्री स्वयं जैन समाजना अतीव शीतल अने उज्जवल चन्द्र छो. जैन समाजना अद्वितीय विद्वान सन्त छो. अमारा तेजस्वी साधु संप्रदायना झळकता सितारा छो. जैन समाजना भास्कर छो. आपनी आवी अद्भूत विद्वता, साहित्यसेवा, जनकल्याणनी अद्भूत भावना अने मुख्यत्वे कराची शहेरना जैन समाज प्रत्येनी आपनी अपूर्व धर्म प्रभावनाथी प्रेराई अमारी कृतज्ञता प्रदर्शितकरवा आपने अपूर्वज्ञानी "जैनाचार्य” जैनधर्म दिवाकर नी पदवी आपना चरणारविन्दमां श्रीसंघ अपण करे छे अमारी उच्चभावनाने निहाळो स्वीकारवानी महद कृपा करशो. अने अमारा संघ ने धर्मं कर्तव्य परायणतानां पंथे स्थिर करी अमने कृतार्थ करशो लि० छगनलाल लालचंद पारेख प्रमुख त्रीभुवनदास भाईचंदशाह - उपप्रमुख खीमचंद मगनलाल वोरा मंत्री गोकळदास महादेव जोधानी संयुक्त मंत्री सोमचंद नेणसी भाई मेहता - सभ्य कार्यवाहक सभा न्यालचंद धारशीभाई मेहता, हीरालाल नरसीदास शाह । छोटालाल छगनलाल शाह | रबीमचंद मोहनलाल जैन हॉस्पिटलरोड रणछोडलाइन कराची । रविवार ता० १३-१२-१९३६ श्री जैन श्वे. स्था० जैन संघ कराची ( संघ ) कराचीसंघ द्वारा आचार्य पद प्रदान करने के बाद समारोह के लिए बाहर से आगत विभिन्न सन्तों, श्रावक प्रमुखों और श्रावकसंघों की शुभ कामनाएँ व सन्देश रूप में आये हुए पत्र व तार पढ़कर सुनाये गये । इसके बाद आचार्य श्री घासीलालजी महाराराज ने स्वागत का उत्तर देते हुए फरमाया-यहां उपस्थित मुनिवरों तथा सज्जनों, संघ ने मेरे प्रति श्रद्धाभक्ति प्रेम को मूर्त रूप देने के लिए जो पद अर्पित किया है यह पद कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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