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________________ व्यक्तियों से आपने कहा मैं संघपति बनने की अपेक्षा संघसेवक बनना अधिक पसन्द करता हूं । आचार्य पद यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का पद है । इस पद को निभाने के योग्य इस समय मैं नहीं हैं। अन्त में श्रावकों का आग्रह तथा सभी मुनिवरों की प्रार्थना पर स्वयं इच्छा न होने पर भी आपने विवष आचार्य बनने कि बाबत में मैन रहे । महाराज श्री मिलीर पधारे। मलीरवासियों के हर्ष का पार न रहा हजारों नरनारियों ने आपका भव्य स्वागत किया। मार्गशीर्ष वदी नौम रविवार संवत् १९९३ ता. १३-१२-३६ का दिन पट्टप्रदान करने के लिए नियत किया गया । कराची से मलीर तक संघ ने बसों व मोटरों की व्यवस्था कर दी । आचार्यपद महोत्सव में सम्मलित होने के लिए हजारों व्यक्ति बाहर से आने लगे । सारा नगर भक्त श्रावक वृन्द से भर गया । मलीर और कराची संघ ने स्वागत का उत्तम प्रबन्ध किया । ता. १३-१२-३६ को प्रातः ही महोत्सव के स्थान में दर्शकों की भीड जमा होने लगी । रंग विरंगे पोशाखों में सजे हुए विभिन्न प्रान्त निवासियोंका यह सम्मेलन अपूर्वसा दिखाई देता था। यह एसा मालूम पडता था जैसे जिनशासन को रमणीय उद्यान रंग बिरंगे फूलों से भरा हो और विकाश के यौवन में प्रवेश कर रहा हो । धार्मिक उद्देश्य के लिए एकत्र इतने बडे जन समूह को देखकर यही प्रतीत होता था कि भारतीय जीवन में धर्म कितना ओत प्रोत हुआ है। सभा मण्डप में पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज अपनी मुनि मण्डली के साथ पाट पर बिराजे । श्रावकों ने तथा मुनिवरों ने मंगलगान के साथ आपका अभिनन्दन किया मुनियों के तथा कराची संघ के प्रतिष्ठित सज्जनों ने प्रासंगिक प्रवचन दिया बाद में सर्व मुनिमंडल ने बडेहर्ष से पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज को जय ध्वनि के साथ आचार्य पद की चद्दर ओढाई । चद्दर ओढाने समय उपस्थित जन नादसे प्रांगन को गंजारित कर दिया । संघ के प्रमुख व्यक्तियों ने आचार्यपद एवं जैनधर्म दिवाकर पद को समर्पित करने वाली पत्रिका गुरु देव को अर्पन कर बाद में समस्त संघ में उसे वितरित की उसकी प्रति लिपि इस प्रकार है-- श्री: ॥ श्रीवीतरागाय नमः प्रसिद्ध वाचक, पञ्चदशभाषा ज्ञाता, अनेकग्रन्थ निर्मापक, वादिमानमर्दक, श्रीशाहु छत्रपति कोल्हापुर राज्यगुरु तत् प्रदत्त “जैनशास्त्राचार्यपदविभूषित बालब्रह्मचारी पंडित रत्न आशु कवि सिद्धान्त महोद्धि पूज्यपाद सकल गुणालंकृत, परम पूज्य श्री१०८ मुनि श्री घासीलालजी महाराजनी चरण सेवामां । समर्पित पूज्यपाद गुरुजी सहस्त्र अब्दो पश्चात् आपना विद्वान शिष्यमण्डल सहित प्रभु महावीरना पुनित पगले चाली, ये महान विभूतिना अनुगामी बनी, आपे सिंध प्रदेशनी भूमि पावन करी, ए सिंघप्रदेशनु महद भाग्य छ। विकट प्रदेशनो विहार सेकडों वर्षों थी संतोना परिचयथी वंचित रहेला जन समुदायने आपे अमृतमय वाणी थी आपेल सबोद सिंध प्रदेशमा आपे प्रवर्तावेल अद्भूत धर्मोद्योत ए अत्यन्त अतीव उज्जवल अने प्रशंसनीय छ । सिद्धान्त महोदधि गुरुदेव ! अत्यन्त निखालस वृत्तिथी अमोने कहेवाद्यो के आप अने आपना पुरोगामी पूज्य श्री फूलचन्द्रजी महाराज के जेमना हिस्से सिंधनु क्षेत्र खुलवानु मानजायछे. ए अने आप सर्व सिंधमां पधार्या पहेलां Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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