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________________ नामक अखबार के प्रतिनिधि श्री ठाकरसीभाई प्रायः हर सप्ताह तपश्चर्या के समाचार एवं पं. श्री घासीलालजी महाराज के व्याख्यान प्रकाशित करते थे। पारसी संसार वांचक जन महाराज श्री के प्रवचन को बडे श्रद्धा से पढते थे । चातुर्मास में नवरात्रि के अवसर पर संध के आगेवानों ने पं. श्री घासीलालजी महाराज से निवेदन किया कि नवरात्रि में जहां जहां बलिदान होने के स्थान हैं वहां वहां अहिंसा के प्रचार के लिए मुनियों को भेजे तो बहुत ही अच्छा प्रचार होगा । तदनुसार श्री समीरमुनिजी श्री कन्हैयालालजी म. श्री मंगलमुनिजी नवरात्रि के समय सारे दिन बलिदान होने के स्थानों पर प्रचार के लिए घूमते और लोगों को समझाते थे जिससे कई जगह प्राणिवध बन्द रहे । कई जगह से हिंसा के लिए लाए हुए जानवरों को छुडवाकर संध के गृहस्थ ले आए । एक दो जगह बलिदान करनेवालों ने प्रतिरोधात्मक सामना भी किया, परन्तु नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रचार कार्य चालू रहा । जिससे परिणाम अच्छा आया । पं० मुनिश्री घासोलालजी महाराज के लगातार दो चातुर्मास कराची में होने से बडा उपकार हुआ । जैन अजैन जनता महाराज श्री की विद्वत्ता से बड़ी प्रभावित हुई । जैन साधु की चर्या बडी कठिन होती है निर्दोष संयम का पालन करते हुए सिन्ध जैसे हिंसा प्रधान देश में विहार करना लोहे के चने चबाने जैसा था । नंगे पैर, नंगे सिर, पैदल विहार, बयालीस दोष टालकर आहार पानी लेना आदि अत्यन्त कठोर नियमों का पालन करते हुए विचरना साधारण व्यक्ति का कार्य नहीं है । जैन मुनियों के कठोर आचार देखकर की अजैन जनता भी आश्चर्य मुग्ध थी । मुनिलोग यदि विद्वान, लोगस्थिति को जाननेवाले और धर्म के वास्तविक सिद्धान्तों को प्रगट करने वाले हो तो उनके उपदेश का कैसो उत्तम असर होता है इसका ज्वलंत उदाहरण कराची चातुर्मास में देखा गया । व्याख्यान में बहसंख्यक अजैन, प्रतिष्टित सज्जन व विद्वान लोग उपस्थित होते थे । सभी लोग आपके प्रवचन सुनकर मुक्तकण्ठ से आपके ज्ञान और चारित्र की प्रशंसा करते थे। आपके व्याख्यान की खास बडी खूबो तो यह थी कि उसमें संकीर्णता की तनिक भी बू न थी। किसी भी मत वाले को कडवी लगे ऐसी कोई बात न होती थी। आपका एकमात्र सिद्धान्त था लोगों को अधिक से अधिक दुर्व्यसनों से मुक्त कराना । चातुर्मास काल में हजारों व्यक्तियों ने शराब पीना और मांस खाना बन्द किया । आपका यह भव्य चातुर्मास कराची के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाने योग्य था । ___ चातुर्मास समाप्त हुआ और आपने कराची से बिहार कर दिया । कराची के हजारों नागरिकों ने अश्रुभीने नयनों से आपको विदा दी । विदाई का दृश्य बडा ही भावपूर्ण था । जिधर देखो उधर अपार जनमेदनी दृष्ठिगोचर होती थी । किन्तु सभी के मुह पर अत्यंत उदासीनता झलक रही थी । आपने कराची से विहार कर गुजरात नगर में प्रवेश किया । हजारों लोग गुजरात नगर तक पैदल ही आपके साथ चलते रहें । गुजरात नगर में एक दिन बिराजे । यहां आपका जाहिर प्रवचन हुआ । कराची की हजारों जनता ने आपका प्रवचन सुना । गुजरात नगर से विहार कर आप दिगरोड पधारे । गुजरात नगर से दिग रोड ५ मील दूर पडता है। रास्ता कच्चा होने से कांटे और कंकर विपुल मात्रा में थे । ५०० स्त्री पुरुष दिगरोड तक पैदल हो आपके साथ आये । यहां भी आपका प्रवचन हुआ । अचार्यपद महोत्सव कराची की जनता पं० मुनि श्री घासीलालजी म० श्री के व्याख्यानों को मंत्रमुग्ध होकर सुनती थी । आप की विद्वत्ता और संयमनिष्ठा से प्रभावित होकर कराची संघ ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने का विचार किया। श्री संघ ने संगठित होकर महाराजश्री के सामने अपनी भावना व्यक्त की। श्री संघ के प्रमुख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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