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________________ २९९ महाराज श्री ने उनसे कहा कि इन ओलिया तपस्वी मुनिश्री ने ९६ दिन के उपवास किये हैं । जैन मुनि उपवास किसी स्वार्थवश नहीं करतें । अपने उपवास में स्वहित के साथ जगतकल्याण की परम भावना इनमें रही हुई है । मनुष्य को रक्षा तो सरकार कर रही है परन्तु बिचारे मूक पशु पक्षियों की रक्षा करनेवाले संसार में परमात्मा की प्रार्थना करनेवाले महात्मा के अतिरिक्त दुसरे कोई नहीं हैं। इसलिए इन तपस्वी महात्मा की खास इच्छा है कि आप सभी लोग एक दिन सभी प्राणियों की रक्षा करके ईश्वर की प्रार्थना करें । सभी कसाई लोग बोले "इंशाअल्लाह ।” परमात्मा चाहेगा तो हो जायगा।” महाराज श्री से ने कहा हम चाहेंगे तो परमात्मा भी चाहेगा । "क्योंकि हुई हमसे शोहरत है काजी खुदा की” बन्दा चाहेगा तो खुदो भी चाहेगा।" ___ महाराज श्री के समझाने पर आए हुए सर्व कसाई समाज के प्रतिनिधियों ने कहा-कि हम सभी को समझाने का प्रयत्न करेंगे ऐसा कहकर वे अपने साथी कसाई भाईयों को समझाने अपने स्थान पर चले गये । दूसरी ओर नगरपति श्री जमशेदजी नसरवानजी को बातचित के लिए बुलाये गये । सेठ श्री जमशेदजी करा ची के माने हुए गृहस्थ थे । वे परोपकारी स्वभाव के थे । कराचो का कोई भी गरीब से गरीब गृहहस्थ यदि आधी रात को भी उनके घर पर जाता तो वे उसी समय मोटर में बैठकर उसके घर जाते । कोई भी बिमार हो तो अस्पताल लेजाते । भूखा हो तो भोजन की व्यवस्था करते और नंगा हो तो वस्त्र देते । जो कोई मनुष्य जिस किसी आशा को लेकर जाता वह जमशेदजी के घर पर जाने के बाद निराश नहीं लौटता । इस परोपकार वृत्ति से सारा शहर उनसे प्रभावित था । और जमशेदजी जिन्हें भी कुछ कहते वे उनका कहना नहीं टालते । उनसे पं. श्री घासीलालजी म० ने फरमाया कि तपस्वी म० के९६ दिनके उपवास की तपश्चर्या समाप्ति के दिन यहां के कतलखाने बन्द रखवाने हैं । जमशेदजी ने कहा-इस दिशा में मैं प्रयत्न अवश्य करूंगा । सेठ जमशेदजी ने तथा भाई खीमचन्द माणेकचंद शाह ने कसाईयों के साथ संपर्क करके एक दिन का कतलखाना बन्द करने का कसाईयों से वचन लिया । तदनुसार तपश्चर्या के पूर के दिन कराची शहर का कतलखाना तथा मटन मार्केट बंद रहा । समुद्र में मच्छी पकडने का धंधा करनेवालों को समझा करके एक दिन मच्छी पकड़ने का कार्य भी बन्द रखवाया गया। फलस्वरूप उस दिन लाखों जीवों को अभयदान मिला । इस वर्ष भी तपश्चर्या के पूर के दिन एक भव्य जुलुस निकला। जिसमें सीन्धी समाज ने गतवर्ष की तरह ठण्डे पानी की गाडी तथा नुगती की गाडी जुलुस में साथ रखकर हरएक को नुगती की मिठाई दी गई। स्थानकवासी संघ ने पूर के दिन गरीबों को भोजन कराया। भोजन करने के स्थान से ४००-५०० गरीब लोग जय जयकार करते हुए उपाश्रय में आये और तपस्वी के दर्शन किये । पूर के दिन कराची के सब से बडे खालीकदिना हॉल में महाराजश्री का जाहिर प्रवचन रखा । तपश्चर्या की महत्ता पर महाराजश्री ने एक घंटे तक भाषण दिया । भाषण बडा प्रभावशाली हुआ । अन्य मनिवरों ने तथा स्थानीय विद्वानो ने भी भाषण दिये । श्रोताओं से हाल खचाखच भर गया था । ९६ दिन की उग्र तपश्चर्या से कराची की जनता बहुत ही प्रभावित थी । कराचो की लाखों जनता में से आधे से अधिक भाग के लोगों ने दर्शन का महान लाभ लिया होंगा । तपस्वीजो म० के दर्शन करके सभी आश्चर्य मुग्ध हो जाते थे । संघ ने तपश्चर्या के समाचार रेडियों से प्रसारित कर सभी को तप की महत्ता समझाई । इस महा महोत्सव को सफल बनाने में सेठश्री छगनलालजी ललचन्दजी तुरखिया, खीमचंद मगनलाल वोरा, खीमचंद माणेकचन्द शाह, श्री सोमचंद नेणसी महता, श्रीत्रिभुवनदास शाह, श्री जयचंद जीवराज शाह डाँ० निहालचंदभाई, नारायणजीभाई, सेठ पन्नालालजी दिल्लीवाले ने खूब सहयोग दिया । पारसी संसार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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