SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९६ ने अपनी खुशी से तपस्या तथा जैन धर्म सम्बन्धी खबर दो कालम भर के दी, जिसमें ता० ६-१०-३५ को दारू मांस जीवहिंसा निषेधक सन्देश पहुँचाया जिस से अखिल संसार में जैन धर्म व तपस्या की महिमा फैल गई । यह खबर दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रिमासिक, हिन्दी, गुजराती इंग्लिश आदि संसार की अनेक भाषाओं के पेपर वालों ने लेख लिखकर तपस्या का सन्देश प्रायः अखिल भुमण्डल में पहुँचाया जिससे लाखों नहीं करोडों मनुष्यों पर आदर्श तपस्या की महिमा का तथा जैन धर्म का अलौकिक प्रभाव पड़ा। यहां प्रायः सभी लोग जैन धर्म के अनुरागी बने । सन्तों के त्यागमय जीवन देख कर वे लोग इन्हें ईश्वर की विभुति मानने लगे। इस प्रकार कराची का यह चातुर्मास कराचो नगर के लिए ऐतिहासिक बन गया । सुदीर्घ तपश्चर्या के बाद वृद्ध अवस्था के कारण तपस्वीजो का स्वास्थ्य बिगड गया । प्रतिदिन निर्बलता बढने लगी। कराची संघ ने बडे मनोयोग से तपस्वीजी की चिकित्सा करवाई। चातुर्मास समाप्त हो गया । किन्तु उपस्वीजी का शरीर ठीक न होने से महाराजश्री को वहीं बिराजना पड़ा। १९९३ का चातुर्मास पुनः कराची में चातुर्मास समाप्ति पर कराची संघ ने तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज की शरीर की अस्वस्थता देखकर महाराजश्री से प्रार्थना की कि आप तपस्वीजी के स्वास्थ्य के लिए इस वर्ष भी यहीं बिराजे । संघ की प्रार्थना पर एवं तपस्वीजी के शरीर की अवस्था को देखकर महाराजश्री ने कराची श्रीसंघ की बात मान ली । कराची में दीर्घ समय तक बिराजने से कराची नगरपति श्री जमशेदनसरवानजी महेता मुनिश्री के दर्शनार्थ अवारने अवार आते रहते थे । उनसे अच्छा परिचय हो गया । कराची के म्यु० मेयर श्रीकाजीखुदाबक्षजी तथा सिन्ध के सेठ लोकामल चेलाराम, सी. आई. डो. इन्स्पेक्टर श्रीमिनोचेर आदि भी दर्शनार्थ आये इनसे भी महाराजश्री का गाढ परिचय हो गया । चातुर्मास का समय भी समोप में आया तबतक महाराज श्री कराची के आस पास ही विचर रहे थे । महाराजश्री की कराची से विहार करने की बड़ी इच्छा थी। महाराजश्री तपस्वीजी के स्वास्थ्य के ठीक होने की राह भी देख रहे थे । कराची का श्रीसंघ महाराजश्री की सेवामें पहुँचा ! उसमें स्थानीय मूर्तिपूजकसमाज एवं हिन्दु धर्म के अनेक आगेवान सज्जन भी महराजश्री के पास आये और प्रार्थना करने लगे की इस वर्ष का चातुर्मास आपका यहीं होना चाहिए क्योंकि तपस्वीजी महाराज का स्वास्थ अभी विहार के योग्य नहीं हुआ । तथा आपके आगामी चातुर्मास से गत चातुर्मास की अपेक्षा अधिक उपकार होगा। हजारों सिन्धी भाई बहन मास शराब जीवहिंसा जैसे दुष्कृत्यों का त्याग करेंगे। इस चातुर्मास की विनती मात्र जैन समाज ही नहीं कर रहा है किन्तु कराची नगर की समस्त जनता की ओर से परमभक्त मेयर श्री जनाब काजीखुदाबक्षजी भी पत्र द्व कर रहे हैं। उनके पत्र का हिन्दी तर्जुमा की नकल इस प्रकार है । कराची के मेयर साहब के ता. ३०-४ १९३९ पत्र का हिन्दी अनुवाद :---- __मुझे यह कहने में बड़ी खुशी है कि गुरुजी श्रीघासीलालजो म. का कराची शहर में पधारना और निवास करना सिर्फ जैन समाज के लिए ही नहीं बल्कि कराची के रहने वाले जैनेतर लोगों के लिए भी खुशी और गौरव का कारण है । जैन समाज का बड़ा भाग्य है कि उक्त गुरुजी महाराज जैसे पवित्र महात्मा उनमें मौजूद हैं और मुझे यकीन है कि इस शहर में कुछ अर्से के लिए और ठहरें तो जैन समाज के नैतिक उद्धार में बडीभारी मदद मिलेगी और मुझे यह भी यकीन है कि उन महान गुरुजी महाराज के जीवन की पवित्रता का असर दूसरी कौमो पर भी बहुत अच्छा पडेगा । दः काजी खुदाबक्ष ३० अप्रिल १९३६ मेयर-कराची नगरपालिका ___ इस प्रकार हिन्दूमहासभा के अध्यक्ष डा० जी, टी० हिंगोरानी एफ. आर. सी. एस. ने एवं जनरल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy