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________________ जिस प्रकार हंस अपनी चंचू से श्रीर, नीर को जुदा कर देता है उसी प्रकार परमात्मा के ध्यान द्वारा जीव कों से अलग हो जाता है। लोहे के गोले को जब आग में खूब तपाया जाता है तव वह गोला अनिमय बन जाता है । अग्निपींड जैसा दिखने लगता है मगर है वह अग्नि और गोला अलग-अलग चीज है. एक नहीं है । उसी प्रकार आत्मा भी कमों के पडदो में रहा हुआ है । वे परदे इश्वर प्रार्थना से दूर हो जाते हैं, तब आत्मा का साक्षात्कार होता है। इसलिए आज हम सर्व को प्रार्थना करनी चाहिए कि- "हे प्रभो ? तूं हम को दुखों से मुक्त कर' । अन्तः करण से जो प्रार्थना की जाती है उसमें एक अद्भूत शक्ति रहा करती है जिससे आधि व्याधि और उपाधि मिटकर आत्मा में एक अलौकिक शान्ति और निज गुण प्रगट होते हैं । प्रार्थना पर महत्व बताते हुवे फरमाया कि संवत १९०९ के शाल की बात है कि नबाबशाह जिला में नदी का पूर आने से लोक चिन्तातुर हो गये थे। तब कई लोगों ने नदी का दर्शन किया कईयों ने स्नान पूजन आचमन किया परन्तु नदी स्वयं तो अपने आवेश में बढती ही चली गई यहाँ तक की पूल टूटने का समय नजदीक दीखने लगा तव इंजिनियर मी० हेरीसन ने छह हजार मनुष्यों को बांध (पाल) बांधने के काम में लगा दिये कि बन्धा लग जाने से पुल नहीं टूटेगा। जल के वेग के सामने कोई क्या कर सकता-वह पूर तो बढतां ही चला और एक पीछे एक पुल के बन्ध टूटने लगे मी० हेरीसन हताश हो कर कहने लगा कि अब इस में मेरी शक्ति काम नहीं करती। उस वक्त वहां के हे. क्लेल्कटर जो कि मुसलिम थे, उन्होंने आकर मी० हेरीसन को कहा कि खुदा बडा है--आला है, वह ताकतवान है इसलिए सब मिलकर खुदा की प्रार्थना करो वह सर्व अच्छा करेगा । इस परं छह हजार मनुष्यों ने खुदा की प्रार्थना करनी शुरु की । प्रार्थना शुरु होते ही विशाल नदो ने अपनी माया समेट नी शुरु की, चौवीस घन्टे के अन्दर पूर कहां का कहां ही चला गया जिसका कोई पता नहीं रहा । सर्वलोग मुक्त कण्ठ से कहने लगे कि यह प्रताप प्रार्थनां का है, प्रार्थना में एक विशिष्ट चमत्कार रहा हुआ है । कौयर कहता है कि प्रार्थना करने से शैतान कांपते हैं । मी० जेम्स एक जगह लिखता है कि प्रार्थनारुपी चिराग से आफतरुपी अंधकार दूर होता है। इस प्रार्थना में आज हिन्दू मुस्लिम पारसी क्रिश्चन आदि सर्व सामिल हैं । इस प्रकार महाराज श्री ने सारगर्भित उपदेश फरमाया । तत्पश्चात श्रीयुत जमशेद एन. आर. महेता, म्युनिस्पल कोरपोरेशन लॉर्डमेयर काजी खुदाबक्ष, श्रीयुत लोकामल चेलाराम शेठ श्रीमान मणिलाल भाई पारेख आदि महाशय ने मुनिराजों के त्याग वैराग्य तथा तपस्या की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हुए प्रसंगोचित भाषण दिया और शान्त तथा एक चित्त से स्थिर हो कर सात (७) मिनीट तक प्रार्थना में लगे रहने का निवेदव किया गया । प्रभुप्रार्थना और विश्व शान्ति का अभूतपूर्वं दर्शन आचार्य श्री की पूर्वोक्त प्रकार सूचना मिलने पर (७) मिनीट तक अखिल सभा ने नीचे दृष्टि झुकाकर एक चित्त से ध्यान ( काउस ) किया, यह दृश्य तो एक अलौकिक और अदभुत "न भुतो न भविष्यति" जैसा ही हुआ । उस वक्त मूर्तिमती (साक्षात्) शान्ति का अभूतपूर्व दर्शन होने लगा, सर्व सभा में एकदम शान्ति छा गई। तदनन्तर महाराज श्री ने ॐ शान्तिः ३ तीन वार उच्चारण करके ध्यान (काउसगा खोला ( पारा) फिर श्री शान्तिनाथ भगवान का स्तवन बोलने बाद वीर जयध्वनि के साथ सभा विसर्जित हुई । और सर्व जनता में जैन धर्म की व तपस्या की अपूर्व महिमा फैली । उस रोज सैकडो लोगों का दारु, मांस व जीवहिंसा का छोडना तथा लाखों निरपरार्धी मूक ( अनबोल ) प्राणियों को अभयदान मिलना यह एक अपव उपकार हुआ है । विशेष खुशखबरी यह है कि एशिया, आफ्रीका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूरोप ये पांच खंड संसार में आधुनिक दृष्टि से बडे माने जाते हैं । वहां एसोसिएटेड प्रेस और रुटर तार कम्पनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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