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________________ २९४ "खल कदीना होल' नामक विशाल भवन में पहुंचकर सभा के रुप में एकत्रित हुआ। यहां शहर के सारे मुख्य मुख्य नेतागण आदि करीब छह (६०००) हजार जनता की उपस्थिति हुई थी। प्रार्थना सभा यह (खलकदीना होल) विशाल भवन था स्त्री पुरुषों से ठसाठस भर गया, स्थानाभाव के कारण बहुत से लोगों को पैरों पर खडा रहना पडा । इस प्रार्थना (सम्मेलन) में हरएक मजहब के आदमी नजर आते थे । तदन्तर पण्डित रत्न पूज्य मुनिश्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज, मनोहर व्याख्यानी पण्डित मुनि श्री मनोहरलाल जी महाराज, विद्यार्थी मुनि श्रीसुमेरमलजी म. श्री पं. रत्नमुनि श्रीकन्हैयालालजी म० तपस्वी मुनि श्री केशवलालजो म० लघुतपस्वी मुनि श्री मांगीलालजी म. लघुमुनि श्री विजयचन्दजी म. आदि ठाणा सात अपने विराजने के स्थान से यहां पधारे । बाद श्रीयुत जमशेदजी एन. आर. महेता ने खडे होकर हाथ जोड सभा से अपील की कि आज का दिन शान्ति का दिन है इसलिए हम सब लोगों को शान्त होकर बैठना चाहिए, आप लोग शांन्ति रखेंगे तब ही कार्य सुचारु रुपसे हो सकेगा। बाद सभा में एकदम शांति का सामराज्य छागया अर्थात् सब सभा एकचित्त होकर सुनने लगी। फिर चार बालिकाओं ने भगवान श्री महावीर स्वामी का स्तुतिगर्भित मंगल गायन गाया। फिर सब मुनिराजों ने मिलकर प्रभुस्तुति की और पण्डितरत्न पूज्य मुनि श्री घासीलालजी महाराज साहब ने भगवान श्री महावीर स्वामी का सन्देश तथा तपस्या का महात्म्य समझाते हुए प्रसंगोचित प्रभावशाली उपदेश सुनाया जिसका सारांश यहां दियाजाता है प्रार्थना प्रवचन-जो किसी इन्द्रिय द्वारा ग्रहण नहीं हो सकता कान से सुना जाता नहीं, आंख से देखा जाता नहीं, नाक से सुन्धा जाता नहीं, जिह्वा से चक्खा जाता नहीं और शरीर से छूआ जाता नहीं एसे निरंजन निराकार ज्योतिस्वरूप विश्ववल्लभ शुद्ध स्वरूप परमात्मा को मेरा नमस्कार हो । हम परमात्मा से भिन्न नहीं हैं परमात्मा की प्रार्थना किसलिए और किस तरह करनी चाहिए ? तथा हमें क्या करने से परमात्मा का साक्षात्कार होता है ? इत्यादि हकीकत तो बहुत विस्तार वाली हो जाती है परन्तु संक्षेप में इतना कहना प्रर्याप्त है कि परमात्मा की भक्ति करनेवाला खुद परमात्मा बन जाता है, जैसे कृमि (लट) का एक ध्यान भौरे की आवाज में रहने के कारण वह (कृमि) भो एक रोज भौंरा बन जाता है, उसी प्रकार परमात्मा का ध्यान भजन करने वाला पुरुष भो एक दिन सिद्धस्वरुप बन जाता है, अतः हम परमात्मा से भिन्न नहीं है, अर्थात् हममें और परमात्मा के स्वरुप में कोई भिन्नता नहीं है, क्योंकि जो गुण और शक्ति परमात्मा में है वह अपने में भी मौजूद है, ज्योतिस्वपरू परमात्मा में प्रकाशमान् है वह हमारे में भी विद्यमान है, परन्तु परमात्मा शुद्ध है और अपनी आत्मा माया तथा प्रपंच रुपी कीचड में फँसी हुई है। जिससे आत्मा का शुद्ध स्वरूप ढका हुआ है। इसलिए हम को चाहिए की परमात्मा का ध्यान व भजन करके आत्मा की शुद्धि करें। यह आत्मा कर्मरूपी फन्दे में फंसा हुआ है। इसी से आत्मा को दुःख होता है और यह दुःख्न परमात्मा की प्रार्थना से हट सकता है । अतः हमे परमान्मा की प्रार्थना करनी चाहिए । तपस्वीराज का आदेश आज प्रभु प्रार्थना करने के लिए योगनिष्ट तपस्वी महात्मा मुनि श्री सुन्दरलालजी महाराज का फर. मान है और वे खुद तीन महिने से प्रार्थना में बिराजे हुए हैं और दो रोज बाद आप (९०) उपवासों का पारणा करने वाले हैं इसलिए आप लोगों के कुटुम्ब परिवार की व करांची व देश एवं राज्य की शान्ति के लिए आज सर्व को प्रार्थना करनी चाहिये' यह तपस्वी महात्मा का फरमान है। आत्मशुद्धि कैसे की जावे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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