________________
२९७
सेक्रेटरी मिस्टर चौधरी ने समस्त हिन्द महासभा कराची के ओर से इस वर्ष कराची में चातुर्मास करने की पत्र द्वारा प्रार्थना की है। उस पत्र का हिन्दी अनुवाद
पूज्य श्री जैनमुनि महाराज श्रीघासीलालजी महाराज तथा मनोहरलालजी म० और तपस्वी श्री सुन्दर लालजी म० आदि महात्मा पुरूषों से हम सविनय अर्ज करते हैं कि आप यहाँ एक साल और बिराजें और अहिंसा के सिद्धान्त का प्रचार करें । जिसको कि हिन्दू धर्म में उचित स्थान मिला हुआ है और जिसके प्रचार की हमारे कराची शहर को खास तोर से जरूरत है । हम मानते हैं कि आपके अहिंसा प्रचार से बडा अच्छा असर हुआ है तथा बहुत से लोग अपने आपको सुधार रहे हैं और अहिंसा के सिद्धान्त पर चलने की कोशिस कर रहे हैं । हम फिर जैन और हिन्दू सर्व आपसे प्रार्थना करते हैं कि एक साल और यहां बिराजें और अपने पवित्र उपदेशों से हमें लाभ प्राप्त कराएँ आपके डाँ० जी० टी० हिंगोरानी डी० डी० चौधरी
श्री संघ का आत्याग्रह कराची नगर की जनता की उत्कृष्ट भावना तथा तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज की अस्वस्थता को देखकर महाराजश्री ने आगामी चातुर्मास कराची में ही करने की स्वीकृति फरमा दी । चातुर्मास की स्वीकृति से कराची की जनता में जो हर्ष हुआ उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता । चातुर्मास काल अभी दूर था । शेष काल में भी चातुर्मास की तरह धार्मिक कार्य होने लगे । शेषकाल में महाराजश्री संस्कृत टीका के साथ जीवाभिगमसूत्र का वांचन करते थे। इसके बाद श्री नेमिनाथ भगवान का चरित्र विषद व्याख्या पूर्वक समझाते थे । आप प्रथम से ही महान् कुशलवक्ता थे । उसके साथ वाणी का माधुर्य तथा शास्त्रों का तलस्पर्शी ज्ञान इतना अच्छा था कि व्याख्यान के समय श्रोतृवृन्द बरबस आपकी ओर आकर्षित्त हो जाता था । शेषकाल में सामायिक, षौषध, उपवास आयंबिल, बेले तेले आदि की तपस्या खूब होने लगी। आषाढशुक्ला त्रयोदशी से तपस्वी मुनिराजों ने प्रतिवर्ष की तरह तपश्चर्या प्रारंभ करदी । चातुर्मास प्रारंभ हो गया । महाराजश्री ब्याख्यान में प्रथम सुखविपाक, फरमाते थे । पर्युषण पर्व के समय अंतकृद्दशांग सूत्र तथा शेष समय उपासकदशांग एवं रुक्मणी मंगल बडी गम्भीर वाणी में फरमाते थे । प्रथम चातुर्मास के बाद तुरत ही द्वितीय चातुर्मास होने से लोगों की धर्मभावना में विशेष वृद्धि हुई । घोरतपस्वीश्री मांगीलालजी महाराज एवं तपस्वीरत्न श्री सुन्दरलालजी म० की तपश्चर्या चल हि रही थी । इस अवसर पर तपस्वियों के दर्शन के लिए नगर की जनता का ताता लग गया । धोवन का पानी के आधार हि से इतने लम्बे दिनों की तपश्चर्या कराची की जनता के लिए बडा आश्चर्य का कारण था । कई डॉक्टरों को एवं नरों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने लम्बे समय तक मनुष्य अन्न के बिना भी रह सकता है । वे लोग एक बार संगठित हो कर तपस्वियों के शरीर की जांच करने आये । शरीर की पूणे जांच करने के बाद डॉक्टर तपस्वियों के चरण में नसमस्तक होकर बोले-गरजी ! क्षमा करें । आप सचमुच ही एक महान आत्मा हो। इतने लम्बे समय तक भूखा रहना साधारण व्यक्ति का काम नहीं है । विशिष्ट शक्तिशाली आत्मा ही ऐसा अति दुष्कर तप कर सकती है। जैन साधुओं की इस विशिष्ट साधना से बडे प्रभावित हुए । अनेक सिन्धिभाई भाव विह्वल हो कर आखों में आंसु बहाते हुए तपस्वी के गुण गान करते थे । अनेकों ने इस महान अवसर पर शराब पीना और मांस खाना सदा के लिए छोड दिया। खान बहादुर मेयर अरदेसर भाभा ने प्रतिमाह की पहली तारीख को मांस व मच्छी शराब पीने का त्याग किया । जन्मदिवस के अवसर पर एक जीव को अभयदान देने का वचन दिया और उसदिन सभी प्रकार का मांस व शराब का त्याग किया । मिकेनीकल इंजिनीयर हरमन लिमिटेड के जेकब साहब ने सदा के लिए मांस व शराब का त्याग कर दिया । डॉ० शराफ बिलीमोरिया हेल्थओफीसर सा० ने प्रतिमास एक दिन दारु मांस व जीवहिंसा का त्याग किया। जन्म तिथि के दिन एक जीव को अभयदान देने का वचन दिया।
३८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org