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________________ नहीं दे सकतें । कुछ आवश्यक पत्र ये हैंश्री एकलिंगजी श्री रामजी श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन उपाश्रय कराची ( सिंध) शुभस्थान जुड़ा आपकी प्रार्थना पत्रीका प्राप्त हुई. ब मुजीब उसके हमारे स्टेट में आसोज शुक्ला ११ को अगता पलाने के लिए मुतालकोन के तमाम हुक्म नामे जारी कर दीये गये हैं और यहां भी संपूर्ण अगता पलाया जावेगा । तमाम मुनिराजों को विधिवत् हमारी वन्दना अर्ज करा देवें । पत्र हमेशा लिखा करें । ता. ५-१०१९३५ इस्वीसं दः रावतजो. सवाईसिंहजी रावतजी साहब ठिकाना जुडा (भोमट) मेवाड धीरे धीरे तपस्या की पूर्णाहुति का काल भी समीप आपहुंचा । जिस दिन की संघमें बहुत समय से प्रखर प्रतीक्षा की जा रही थी । वह वि० सं. १९९२ आसोज सुद ११ मंगल वार ता० ८-१०-३५ का शुभ दिवस उदय हुआ । उस दिन कराची शहर में दर-दर के प्रदेशों से अनेक साधर्मिक बन्धु इस अपूर्व अवसर को देखने के लिए एकत्रित हुए । महाराज श्री के निवास स्थान के समीप ही ५००० हजार व्यक्ति आराम से बैठ सके इतना बडा पाण्डाल बनाया गया। आसौज शुक्ला ११ के प्रात: सूर्योदय होते ही नगर के आबाल-बृद्ध नर नारीगण बडे समुह में पाण्डाल की ओर बढ़ चले । प्रातः कालीन मंगल गीतों से दिशाएं मुखरीत हो रही थी। प्राकृतिक सुषमा में एक नवोन्मेष दृष्टिगोचर हो रहा था । महाराजश्री के आगमन के पूर्व ही हजारों व्यक्ति पाण्डाल में यथा स्थान बैठ चुके थे । प्रबन्ध व्यवस्था इतनी सुन्दर थी की दुर बैठा प्रत्येक श्रोता महाराजश्री का व्याख्यान अच्छी तरह से सुन सकता था । तपस्वी जी श्री सुन्दरलालजी महाराज एवं पण्डित प्रवरश्री घासीलालजी महाराज अपने निवास स्थान से सन्तमण्डली एवं अन्य श्रावक श्राविकाओं से परिवेष्टित होकर करीब आठ बजे समारोह के स्थान पर पधारे । उपस्थित जन समूह ने खडे होकर ओदर पूर्वक प्रणाम की मुद्रा में सन्तों का स्वागत किया। इस समय उपस्थित करीब १० १२ हजार मानव मेदनी होगी। एसा प्रतीत होता था कि मानो समस्त कराची नगर आज इसी एक ही स्थान पर आकर केन्द्रित हो गया हो । पाट के मध्य स्थान पर पं. श्री घासोलालजी महाराज एवं तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज बिराज गये । आस पास अन्य मुनि समुदाय पाट पर बिराजमान थे। नगर के प्रतिष्ठत नागरिक बेठे थे और उनके पीछे जन साधारण का अपार समूह उपस्थित था । यह दृश्य ऐरण प्रतीत होता था मानो श्री तीर्थकर भगवान का समोवशरण ही हो। महाराज श्री ने मंगलाचरण प्रारंभ किया। मंगला चरण की समाप्ति के बाद पं. प्रवर ने सुमधुर एवं गम्भीर वाणी में प्रवचन प्रारंभ करते हुए कहा____ भारत भूमि सदा काल से तपोभूमि रही है । यह विशेषता अन्य किसी राष्ट्र में नहीं हैं । भारतवर्ष एक धर्म प्रधान देश है । यहा विविध धर्म और संप्रदाय विद्यमान हैं। इन सभी धर्म और संप्रदाय में तप की आवश्यकता पर महान बल दिया है। जिसके द्वारा आत्मा के सभी विकार नष्ट हो जाए और उसका स्वरूप निखर जाए वह तप कहलाता है । तप जीवनोत्थान का प्रशस्त पथ है। तप की उत्कृष्ट आराधना से व्यक्ति तीर्थकर पद भी प्राप्त करता है। श्री गौतम स्वामी ने एक बार भगवान श्री महावीर स्वामी से प्रश्न किया-तवेणं भंते जीवे किं जणयइ ? तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ उत्त० २९।२७ तप धके प्रभाव से अनेक भवों के संचित निकाचित पाप-कर्मों का नाश होता है। आत्मा निष्कर्म बन कर अजर-अमर परम पद व सदा के लिए अक्षय अनंत सुख प्राप्त करता है। तप के प्रभाव से इप्सितस्तु की प्राप्ति स्वयमेव हो जाती है तप के प्रभाव से धन्नाजी, दृढप्रहारी, हरिकेशी मुनि, ढंढणमुनि, अर्जुनमाली मुनि आदि प्रमुख मुनीश्वरों ने सकल कर्मों का क्षय करके सिद्ध पद प्राप्त कर लिया था । शास्त्रकार तो यहां तक कहते है कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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