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पैदल ही चलते हैं । पैरों में जता कभी नहीं पहनते और न कच्चा पानी का ही इस्तेमाल करतें । पास में पैसा भी नहीं रखतें । औरत मात्र को नहीं छूतें । हमारे खाने पीने के भी बडे कडे नियम हैं । इन सब नियमों के कारण हम अफगानीस्तान जैसे मुल्क में पहुँच नहीं सकते ।” महाराजश्री के मुख से जैन साधु का आचार सुना तो वे अचंभे में पड गये । और कहा-आप जैसे कठोर व्रत का पालन करने वाले फकीरों को मैं पहली बार ही देख रहा हूँ।" अफगानिस्तान के बादशाह के चाचा मुरादअली ने आप श्री का प्रवचन सुना | प्रवचन से आप बड़े प्रसन्न हुवे व्याख्यान समाप्ति के बाद मुरादेअलि ने महाराजश्री से कहा-" आज से में किसी भी जानवर को नहीं मारूंगा । कभी गोस्त नहीं खाउंगा । और न शराब ही पीउंगां । आपकी मसीहत को सदा याद रखूगो । इस प्रकार अनेक प्रभावशाली व्यक्ति आपके प्रवचन में आने लगे और उपदेश सुनने लगे।
___ सा० ११-७-३५ से प्रारम्भ की हुई महान तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज की तपश्चर्या चल ही रही थी। यह तपश्चर्या कब तक चलेगी यह अनिश्चित था। श्रावक गण चाहते थे कि तपश्चर्या की पूर्णाहुति का दिन यदि निश्चित हो जाय तो इस शुभ अवसर पर अधिक से अधिक परोपकार के कार्य किये जाय । इसी भावना से कराची श्री संघ के आगेवान श्रावक एकत्र हुए और महाराजश्री के पास आ प्रार्थना करने लगे कि तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज की तपश्चर्या को पूर्णाहुति का दिन यदि निश्चित हो जाय तो अत्युतम होगा । इस अवसर पर विशिष्ट उपकार को सम्भावना है। पत्र पत्रिकाओं द्वारा भारत के कोने कोने में तपस्वीजी के तपश्चर्या की पूर्णाहुति की सूचना कर देंगे ताकि सभी लोग इस पुण्य अवसर का लाभ लेंगे और आरंभ समारंभ का त्याग करेंगे तो अधिक उपकार होगा । इस पर महाराज श्री ने कहा-तपस्या तो कर्मों की निर्जरा के लिए की जाती है, आडम्बर के लिए नहीं । दूसरी बात तपश्चर्या की पूर्णाहति की सूचना पत्र पत्रिकाओं द्वारा करेंगे तो बाहर के सज्जन बड़ी संख्या में आएंगे इससे आप पर खर्च का बोझ अधिक पडेगा । मैं नहीं चाहता कि आप लोग किसी प्रकार के आर्थिक संकट में पडे । इस पर श्रावकों ने कहा हमारे पूर्व पुण्योदय से ही हमें इस सुअवसर की प्राप्ति हुई है । उसी दिन हम कराची के समस्त कसाई खाने बन्ध रखवाना चाहते हैं । मेहता जमशेदजी कराची में एक प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली व्यक्ति है, सन्तों के परम भक्त भी है धर्म के अच्छे अनुरागी है उनका कहना सारा शहर मानता है । उन्होंने आपके दर्शन करके कहा था कि जब तपस्था का पूर होगा ? तब पांच सात दिन पहले हमें सुचना मिल जाय तो उस दिन समस्त नगर में विश्व शान्ति की प्रार्थना का आयोजन होगा। एवं उस दिन समस्त नगर में शराब बन्दी, हिंसा एवं मांस सेवा का त्याग को प्रवृत्ति का विशिष्ट प्रकार से प्रचार करेंगे । श्री संघ ने पुनः प्रार्थना की कि इस काम का हमारे ऊपर किसी प्रकार का भार नहीं होगा । और न हम अर्थ के लिए किसी पर दबाव हि डालेंगे न हम किसी को इस काम के लिए लाचार ही करेंगे और न लाचार ही होंगे । महान तपस्या की प्रसिद्धि से कितना उपकार हो रहा है और होगा यह तो आप जान ही रहे हैं । प्रतिदिन हजारों की संख्या में सिन्धीभाई बहने दर्शनार्थ आते हैं और दारु, मांस, व जीवहिंसा आदि का अत्यन्त श्रद्धा के साथ त्याग कर जाते हैं ।
श्री संघ के अत्याग्रह वश महाराजश्री ने तपस्या के पारतो का दिन खोल दिया। आसोज सूद ११ मंगलवार ता० ८-१०-१९३५ के दिन तपस्या की पूर्णाहुति का दिन निश्चित ह । तपस्या का दिन खुलने से स्थानीय संघ में जो हर्ष हुआ उसका वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता । संघ ने हर्षावेग में महाराजश्री की एवं तपस्वी जी की जय जय कार का । कराची श्री संघ ने तपमहोत्सव की कुकुम पत्रिकाएँ छपवा दी और समस्त ग्राम नगरों में भेज दी । आमंत्रण पत्रिका का सार भाग इस प्रकार था
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