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________________ २८८ के कारण बनके आयाम पर्व व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर मोडता है। एक विलक्षण प्रकाश देता है, जिससे व्यक्ति स्वयं को देख सके। जिसको आत्म दर्शन का स्वाद आ जाता है, वह बाह्य जगत में नहीं भटकता । सिनेमा का आनन्द वह लेता है जिसके पास गृह आनन्द नहीं है, घर में आनन्द वह लेता है जिसके पास योगानन्द व आत्मानन्द नहीं है। आत्मानन्दको पा लेने के बाद संसार के समस्त आनन्द नगण्य और फीके लगते हैं । जो व्यक्ति आनन्दको पा लेता हैं वह कभी बाह्य आनन्द की खोज में नहीं भटकता पं. मुनि श्री के प्रति दिन के धर्मोपदेश से पर्युषण महापर्व में आशातीत धर्म ध्यान हुआ। पर्युषणों के दिनों में व्याख्यान में इतनी अधिक भीड होने लगी कि व्याख्यान पंडाल में जनता को खड़े रहने की भी जगह नहीं रहती थी। फलस्वरूप एक ही समय में तीन मुनिराजों को तीन स्थानों पर अलग अलग व्याख्यान देने पडे फिर भी सैकडों नर नारीगण स्थानाभाव के कारण व्याख्यान का लाभ से वंचित रह जाते थे । वे दर्शन करके ही सन्तोष का अनुभव करने लगे । तपस्या की समाप्ति के दिन सर्वत्र नगर में प्रतिदिन अन्तगढ सूत्र वांचन होने लगा । मध्यान्ह के समय भी महाराज श्री के प्रवचन होते थे । श्रावक श्राविकाओं में भी तपस्या अच्छी हुई, बेले तेले से लगाकर नौ दश तपस्याओंके कई थोक हुए। छोटी छोटी अनेक बालाओं ने भी बडी हिम्मत और उत्साह के साथ तपस्या की । भाईयों ने पचरंगी तपस्या भी की । इस प्रकार पर्युषण पर्व के दिन बडे आनन्द और उत्साह के साथ सम्पन्न हुए | लघु तपस्वी श्री मांगीलालजी महाराज का पारणा तपस्वी जी ने इकसठ दिन की सुदीर्घ तपस्या की उत्साह नजर आता था। भाद्रपद शुक्ल एकादशी ता० ९-९-१९३५ के दिन तपस्वी जी ने सुखरुप पारना किया । पारने के दिन करीब ३०० व्यक्तियों ने भी विविध प्रकार की तपस्या का पारणा किया । नगर के हजारों अनाथ अपंग एवं दुखी जनों को मीठा भोजन दिया। नगर के समस्त कसाई खाने उस दिन बन्द रखे गये थे । फलस्वरूप हजारों पशुओं को अभयदान मिला । तपस्या की पूर्णाहुति के दिन समस्त जैनों ने अपना कारोबार बन्द रखा। उस दिन हजारों सामायिके हुई। आवकों की तरफ से विविध प्रकार की प्रभावनाएँ हुई। महाराज श्री का जाहिर प्रवचन भी हुआ। महाराज ने तप की महत्ता पर अपना ओजस्वी प्रवचन दिया । फलस्वरूप अनेकों ने व्रत प्रत्याख्यान लिये । सैकडों सिन्धी भाईयों ने मांसाहार का त्याग किया । कुछ व्यक्तियों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया । इस प्रकार श्री लघु तपस्वीजी का पारना अत्यन्त उत्साह एवं धर्म प्रवृत्ति के साथ पूर्ण हुआ। इधर महान तपस्वी श्रीमुन्दरलालजी महाराज की तपश्चर्या तो चल हो रही थी । इस तपश्चर्या का जनता पर व्यापक प्रभाव पडा । तपश्चर्या की ज्यों ज्यों प्रसिद्धि बढती गई त्यों त्यों जनता भी बडी संख्या में तपस्वीजी के दर्शनार्थ आने लगी। यूरोपियन मिलटरी ऑफिसर गोरे एवं भारतीय सैनिक सुशिक्षित नागरिक नगर के प्रतिष्ठित सज्जन राज्यकर्मचारी गण प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में तपस्वीजी के दर्शनार्थ आते ओर उनके त्याग से प्रभावित हो कुछ न जीवनोपयोगी त्याग ग्रहण करते । कुछ अफगानीस्तान के राजदूत मूसाखांजी दर्शन के लिए आये । महान तपस्वीजी की दीर्घ तपश्चर्या और जैन साधुओं के अचार को देख कर बड़े प्रभावित हुए। महाराजश्री का व्याख्यान भी सुना । व्याख्यान सुनकर बड़े प्रसन्न हुए । व्याख्यान श्रवण के बाद मूसाखान ने बड़े अदब से कहा - स्वामीजी ! हमारा बादशाह फकीरों से डा प्रेम करता है । उनकी हर तरह से इज्जत करता है आप जैसे त्यागी महात्मा की हमारे देश के लिए बड़ी जरूरत है। यदि आप अफगानिस्तान पधारेंगे तो आपको किसी प्रकार की भी तकलीफ नहीं होने देंगे । इस पर महाराज श्री ने कहा- हम लोग जैन साधु हैं। हम हमेशा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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