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________________ २८७ प्रातः आठ बजे पं. मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज अपनी ओजस्वी भाषा में व्याख्यान फरमाते थे । नवयुवकों को धर्म की ओर प्रवृत्त करने में उनको बडी लगन थी । साढे आठ बजते ही पं. महाराज श्री व्याख्यान मण्डप में पधारते । उस समय वहां के वातावरण में सहसा स्फूर्ति समा हो जाती थी । प्रति दिन प्रारंभ में आप प्रार्थना करते उसके पश्चात् उपाशक दसांग सूत्र फरमाते थे । भगवान श्रीमहावीर स्वामी के दश श्रावकों में आनन्द श्रावक भी एक श्रावक था । उनका चरित्र उदात्त, तेजस्वी एवं आदर्श था । जब आनन्द श्रावक का वर्णन करते तब श्रोतागण बडे सावधान हो कर सुनते । आनन्द श्रावक के वर्णन का जनता पर अच्छा प्रभाव पडा । इसके बाद भावनाधिकार पर वासुदेव श्री कृष्ण को चौपाई फरमाते थे । श्री कृष्ण वासुदेव की कथा भी अत्यन्त भाव- पूर्ण हृदय को हिला देने वाले और मर्मस्पर्शी शब्दों से आप सुनाते थे । महाराज श्री के व्याख्यानों में धर्म और व्यवहार का अपूर्व सामंजस्य दृष्टिगोचर होता था । फलस्वरूप बहुसंख्यक अजैन, प्रतिष्ठित सज्जन वकिल, डॉक्टर, ऑफिसर प्रोफेसर इंजिनीयर दिवान, सिन्धी, ख्रिस्त, फारसी, ब्रह्मसमाजी, आर्यसमाजी तथा अन्य शिक्षितवर्ग व्याख्यानों में उपस्थित होने लगे । प्रत्येक रविवार को आपका जाहिर प्रवचन होता था । जैन मन्दिर के विशाल प्रांगन में ब्रह्म समाज के नव विधान भवन में, आर्य समाज के सुशीला भवन में, थियोसोफीकल सोसाईटी, खलकदीना होल, आदि बडे बडे स्थानों में आपके जाहिर प्रवचन होने लगे । आपके जाहिर प्रवचन से हजारों व्यक्ति जैन धर्म के सिद्धान्त से परिचित एवं प्रभावित हुए । पंडित महाराजश्री के साथ उस समय अन्य आठ मुनिराजभी थे । उनके नाम ये थे - श्रीमनोहरलालजी महाराज, तपस्वी श्रीसुन्दरलालजी महाराज पं. श्री समीरमलजी महाराज प्रियवक्ता पं. श्रीकन्हैयालालजी महाराज लघु तपस्वी श्रीकेशुलालजी महाराज, श्री मंगलचन्दजी महाराज लघु तपस्वी श्रीमांगीलालजी महाराज नव दीक्षित श्रीविजय चन्दजी महाराज आदि ठाना आपकी सेवा में थे । उनमें तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज एवं तपस्वी श्रीकेशुलालजी महाराज तपस्वीश्री मांगीलालजी महाराज जैसे महान तपस्वी सन्त भी आपके साथ थे । तपस्वी मुनियों ने चातुर्मास के बीच अपनी लम्बी तपश्चर्या प्रारंभ कर दी । तपस्वियों की तपस्या का स्थानीय जनता पर बड़ा अच्छा प्रभाव पडा । प्रतिदिन तपस्वी मुनिराजों के दर्शन के लिये हजारों जैन अजैन लोग आने लगे । जिन में फारसी, यहुदी मुसलमान, ख्रिस्त, सिन्धी आदि जन प्रमुख थे । श्रद्धा से तपस्वी मुनि के चरणों में भेट रखने के लिए कोई मिठाई कोई छाता तो कोई नारियल लोता तो कोई पुष्प एवं पुष्प की माला लाता तो कोई रुपया नोट लाता था । महाराज श्री उन्हें जब जैन मुनियों का आचार सुनाते तो वे लोग बडे आश्चर्य चकित होजाते थे ओर तपस्वि के त्याग से प्रभावित हो कर वे उनके सदा के लिए परम भक्त बन जाते थे । अजैन लोग मुनिराजों को भगवान का अवतार मानने लगे । प्रतिदिन हजारों व्यक्ति शराब, मांस, एवं जीववध का तपस्वीजी के पास आकर उनके पास त्याग करते । सेंकड़ों भावुक सिन्धिभाईयों ने जैन मुसलमानों ने महाराज श्री के प्रवचन धर्म स्वीकार कर लिया बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, के सैकडों से प्रभावित होकर दारु, मांस एव जीववध का त्याग किया । प्रायः सभो सिन्ध देश में जैन धर्म की महिमा फैल गई । पर्युषण पर्व में धर्माराधन संसार के हर पर्व आमोद-प्रमोद के प्रसंग लेकर आता है । पर्युषण पर्व भी आमोद प्रमोद के ही पर्व है अन्यान्य पर्वो में जहां आमोद प्रमोद के साधन भौतिक पदार्थ बनते हैं वहां पर्युषण पर्व आन्तरिक और शाश्वत आनन्द का स्त्रोत बहाता है बाहर के पर्व व्यक्ति के लिए क्षणिक आमोद प्रमोद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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