________________
२८६
है हिन्दु और मुसलमानों में धार्मिक मतभेद पाये जाते हैं किन्तु प्रभुप्रार्थना के सम्बन्ध में उनका मतैक्य मिलेगा | उनकी नमाज क्या है ? वह भी एक प्रकार की प्रार्थना ही है । यद्यपि उनकी भाषा अरबी है । उस पर मुसलिम संस्कृति का प्रभाव है फिर भी शब्द और शैली को हटा कर उनके अन्तस्थल में आप प्रवेश करेंगे तो वहां भी आपको ईश्वर के प्रति उमडता अनुराग ही दिखाई देगा ।
ईसाई धर्म में तो प्रेयर - प्रार्थना का बहुत अधिक महत्व दिया गया है । रविवार के दिन प्रायः ईसाई गिरजाघर में जाकर शान्त मुद्रा में प्रार्थना करते हैं। जैन दर्शन ययपि आत्मा में ही परमात्मा की सत्ता स्वीकार करके चला है । ईश्वर का सृष्टिकर्तृत्व तो उसे स्वीकार भी नहीं है फिर भी वह कर्ता नहीं किन्तु प्रेरक के रूप में जैन दर्शन ने ईश्वर की उपासना की है । और इसीलिए चतुर्विंशतिस्तवस्तुति के रूप में अरिहंत और सिद्ध भगवान की प्रार्थना का विधान करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रार्थना के महत्व को सभी धर्म एक स्वर से स्वीकार करते हैं । प्रार्थना के शब्द यद्यपि छोटे होते हैं किन्तु उसकी शक्ति महान होती है । बड का बीज यद्यपि छोटो होता है किन्तु उसी छोटे से बीज पर मिट्टी पड़ जाती है और उसे पानी का सिंचन मिलता है तो नन्हा सा बीज एक विशाल वटवृक्ष बन जाता है। यदि प्रभु नामका बीज अपने हृदय की भूमि में बोया जाता है और उस पर निरहंकारिता की मिट्टी डालकर प्रेम के पानी से सिंचन किया जाय तो एक दिन विराट ईश्वरीयता अवश्य फूट निकलेगी आपके मन में कण कण में इश्वरत्व का शान्त तेजमय शुभ प्रकाश फैल जायगा । आप स्वयं आत्मा में एक ज्योति का दर्शन करेंगे । आप स्वयं ईश्वर बन जाएंगे। प्रभु का नाम अशान्त मन के लिए प्रशान्त सागर के लिए नौका है । संसार के अथाह सागर में दुःख और अशान्ति की आग में जब आपकी आत्मा डूब रही होगी तब आप प्रभु नाम की नौका पर आरूढ हो जाएं। वह छोटी सी नौका आपको इच्छित मुख और शान्ति के तट पर अवश्य पहुँचा देगी । इस प्रकार प्रार्थना के महत्व व उसकी आवश्यकता पर महाराज श्री ने करीब एक घंटे तक प्रवचन दिया। प्रवचन का उपस्थित जनता पर बड़ा अच्छा प्रभाव पडा । अजैन जनता आप के धर्म निरपेक्ष प्रवचन से बडी प्रसन्नता का अनुभव करने लगी ।
पण्डितरत्न श्री घासीलालजी महाराज के प्रवचन के पश्चात् संघ के प्रमुख ने खड़े होकर संघ की ओर से महाराज श्री का स्वागत किया तथा उनकी प्रभावक प्रवचन शैली और समाज को जगाने की भावना की सराहना की।
प्रत्युत्तर देते हुए महाराज श्री ने कहा भगवान श्री महावीर स्वामी के आदेशानुसार उपदेश देना और जनता की धार्मिक भावना में वृद्धि करना हमारा मुख्य ध्येय है । अहिंसा धर्म के महान प्रचारक भगवान श्रीमहावीर स्वामी के उपदेश पर चलने से हमारी और राष्ट्र की उन्नति होगी यह निस्संशय है। महाराज श्री के पदार्पण से कराची की धर्मामृत पिपासु जनता को इतना हर्ष हुआ कि जिसका प्रकटीकरण शब्दों में नहीं हो सकता उनको चिरकालीन लालसा पूरी हुई । सर्वत्र आनन्द छा गयो । अमृतवाणी से यहां की जनता परिचित होने लगी । धीरे
महाराज श्री की प्रकृष्ट प्रतिभा तथा धीरे व्याख्यान में हजारों की संख्या में श्रोताओं का जमघट होने लगा । बाहर से भी दर्शनार्थी श्रावकों का ताता लग गया। कराची का श्री संघ भी बड़े उत्साह के साथ आगन्तुक आवकों का स्वागत करने लगा। दिन रात धर्म का ठाठ लगा रहता। सभी प्रकार की जनता आपके उपदेशों को सुनकर कृतार्थ होती थी। दोनों समय आपके व्याख्यान होने लगे व्याख्यान में सुख विपाक एवं उपासक दशांग सूत्र का अत्यन्त सरल भाषा में स्पष्टीकरण किया जाता था ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org