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प्रति विशेष रुचिवाले हैं । आपने महाराजश्री की बडी भक्ति की शय्यद नूरशाह वे वतन मलीर आसू हिन्दूगाव अफगानो स्थान के निवासी हैं। कहा जाता है कि ये पठानों के गुरू हैं और इनके सवा लाख मुरीद अनुयायी हैं । आपने जब महाराजश्री की प्रशंसा सुनी तो आप अपने कुछ अनुयायियों के साथ महाराजश्री के पास आये । धर्मचर्चा की । आप ने महाराजश्री का प्रवचन सुन कर सदा के लिए मांस का त्याग कर दिया । आप महाराजश्री के त्याग से बडे प्रभावित हुए, ओर कहा आप जैसे सन्त यदि अफगानिस्तान में होते तो बडा उपकार होता । हमारी प्रार्थना है कि आप अफगानीस्तान पधारें । हम आपको किसी प्रकार का कष्ट न होने देंगे । महाराजश्री ने जैन मुनियों का आचार विचार समझाते हुए कहा वहां तक आने को असमर्थता प्रगट की । सय्यद नुरशाह के अनुयाई दाउदबलोच आसूवलीदिलजी अयूबनुरमुहम्मद आदि मुसलमोन पठानों ने दारु मांस एवं जीववध का त्याग किया । मटीर में महाराजश्री का चार दिन तक बिराजना हुआ । चारो दिन आप के स्थान पर मेला सा लगता था । सकडों व्यक्ति प्रतिदिन आपके संपर्क में आते और जीवहिंसा एवं मांसाहार का त्याग करते । मलोर संघ ने एक दिन गरीबो को मीठे चावलों का भोजन दिया । लडु और गाठियों का बढी मात्रा में गरीबों में वितरण किया आषाढ शुक्ला ३ बुधवार ता० ३ जुलाई को आपने मलीर से विहार कर दिया । सैकडों व्यक्ति दूर तक आपको पहुँचाने आये । रात्रि के समय आपने एक वृक्ष के नीचे ही निवास किया ।
दुसरे दिन ४ जुलाई को डीगरोड पधारे । यहां भी खूब धर्मध्यान हुआ । सायं काल के समय आपने विहार कर दिया । कराची केंट (सदर) के समीप एक बंगले में आपके निवास किया । कराची से सैकडों भाई आपके दर्शनार्थ आये । रात्रि में आपका प्रवचन हुआ । प्रातः होते ही आप कराचीनगर की ओर प्रस्थान कर दिया । प्रातः काल होने तक तो कराची के हजारों भावुक नागरिक आपके स्वाग के लिए बंगले पर पधार गये थे । मंगलगान के साथ आप चलने लगे । विहार का दृश्य बडा अद्भूत था । कराची के स्वयं सेवक गण दोनों तरफ सैनिक की तरह बाअदब से रंगो बिरंगी झडियां लेकर चल रहे थे । लाल पर्दे पर सुवर्ण अक्षरों से लिखे गये सुभाषित अक्षर सब के लिए आकर्षक बन रहै थे । बोच बीच में जयघोष के शब्द से आकाश गंज रहा था। कराची नगर में प्रवेश किया तो हजारों का जन समूह स्वागत जुलूस में सम्मिलित हो गया । नगर के हर चोराहे पर लोगों के झुण्ड इस दृश्य को देख रहे थे। महाराजश्री ने अपनी सन्त मण्डली के साथ विशाल जनसमूह को अभिवादन स्वीकार करते हुए नगर के मुख्य मुख्य बाजार से होकर करीब दस बजे के समय उपाश्रय में प्रवेश किया। उपाश्रय के बाहर जनता को बेठने के लिये एक विशाल पण्डाल बनाया गया था। जनता से सारा पण्डाल रखीचोखीच भर गया । महाराजश्री अपनी सन्त मण्डली के साथ पाट पर बिराज गये । मधुर कण्ठ के साथ आपने सिद्ध भगवानकी स्तुति प्रारंभ की तो अन्य सन्तों ने एवं भोविक जनता ने भी साथ दिजा । मंगलगान के बाद प्रार्थना के महत्व को समझाते हुए आपने कहा प्रार्थना आत्मा का संगोत है । आत्मा को परमात्मा का प्रकाश देने वाली प्रार्थना है । प्रार्थना का हमारे जीवन में वही स्थान है जो मछली के लिये पानी का । मछली का जीवन ही पानी हैं । जिस प्रकार शरीर के लिए भोजन आवश्यक है उसी तरह आत्मा के लिए प्रार्थना आवश्यक है । यदि एक दिन भोजन न मिले तो गुलाब की तरह हंसता हुआ चेहरा भी मुझ जायगा । भोजन शरीर की खुराक है तो प्रार्थना आत्मा की खुराक है । विश्व के प्रत्येक धर्म में प्रार्थना को बहुत अधिक महत्व दिया है । यद्यपि धर्म के दूसरे सिद्धान्तों में धर्म के बीच मतभेद की गहरी खाई है फिर भी प्रभु प्रार्थना के सम्बन्ध में प्रायः सभी धर्मों का एक स्वर रहा है । हिन्दु धर्म के एक सन्त कहते हैं "राम से अधिक राम कर नामां" अर्थात् राम से भी अधिक राम के नाम में शक्ति
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