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परोपकार विहीन व्यक्ति चाहे कहों भी उत्पन्न हो जाये, चाहे किसो उच्च आमन पर या उच्च अधिकार पर आसीन हो जाये, वह वास्तव में बड़ा नहीं है । पर्वत के शिखर पर बैठने मात्र से ही कौवा कभी हंस नहीं बन सकता । और जमीन पर चलने मात्र से ही हंस कभी कौवा नहीं बन सकता । बहुप्पन का मूल्यांकन किसी जाति, वर्ण या वर्ग से नहों आंका जा सकता है। वह आंका जाता है परोपकार कि वृत्ति से ।
सज्जनों ! तुम अपने जीवन को परोपकार मय बनाओ । अपना पेट भरने के बजाय पर का पेट भरो । अपना घर भरने के बजाय किसी गरीब की झुपडी भरदो, अनाज से गोदाम भरने के बजाय किसी भूखे के पेट में एक मुट्टी अनाज भरो । यही बडे बनने का सही तरीका है ।
सन्त तुलसीदासजी कहते हैंपर उपकारी पुरुष जग भाई, जिमि नवहिं सुसंपति पाई ।
जिस शरीर से धर्म न हुआ, तप न हुआ परोपकार न हुआ स शरीर को धिकार है ऐसे शरीर को तो पशु पक्षी भी नहीं छूते । वेद व्यासजो कहते हैं --
जीवितं सफलं तस्य यः परार्थोद्यतः सदा ।
अर्थात् उसका जीवन सफल माना जाता है जो परोपकार में प्रवृन रहता है इस प्रकार परोपकार के विषय पर अपना वक्तव्य रखते हुए आपने आगे कहा- इम समय क्वेटा की स्थिति अत्यन्त चिन्ता जनक है । सेकड़ों हजारों प्राणी भूख से पीडित होकर मृत्यु के मुग्व में जा रहे हैं । ऐसे अवसर पर किया गया दान बहा मूल्यवान होता है। एक राजस्थानी कव ने ठोक हो कहा है -
अवसर खैबो, पहिरबौ, अवसर देवो दान । अवसर चुका आदमी, से आदम किण ग्यान ।।
अवसर पर दिये गये दान की श्रेष्ठता सभी धर्मों में एक स्वर में गाई है । दान दुर्गति का नाश करता है । मनुष्य हृदय को विशाल और विराट बनाता है । सोई हुई मगनवता को जागृत करता है । दान से पराया भी अपना हो जाता है । कुरान में लिखा है
प्रार्थना (नमाज) ईश्वर की तरफ आधे रास्ते तक ले जाती है, उपवास (रोजा) हमको उनके महल
तक पहुँचा देता है और खैरात-दान से हम अन्दर प्रवेश करते है। एक अंग्रेजी में कहावत हैCharity begins at home but should not be ended there.
अर्थात दान घर से प्रारंभ होता है लेकिन वहीं उसको समाप्त नहीं होने देना चाहिए । बाईबल में भी कहा है
"Your left hand should not know, what your right hand gives". तम्हारा दाया हाथ जो देता हो उसे बाया हाथ न जानन पाये ।
इस प्रकार आपने अनेक धर्मशास्त्रों के उदाहरण दे कर दान और परोपकार पर करीब डेढ घंटा तक प्रवचक दिया । प्रवचन का जनता पर बडा अच्छा प्रभाव पडा । आपके प्रवचन से प्रभावित होकर अनेक हिन्दू मुसलमान फारशी यहूदी खीस्ती आदि लोगों ने आपके प्रवचन की भूरि भूरि प्रशासा की । अनेकों ने मांस मदिरा एवं जीववध का त्याग किया । और भी अन्य लोगों ने त्याग ग्रहण किये और बंगले में क्वेटा के दुखी जनों के लिए फंड इकठा हुआ। भूतपूर्व मजिस्ट्रेट श्री दिवान केवलराम गोवर्धनदास के बंगले में महाराजश्रो का बिराजना हुआ । स्वयं दिवान साहब और अनेक कराची के नागरिकों के साथ महाराजश्री के दर्शन के लिए आये । आपका उपदेश सुनकर बडे प्रसन्न हुए । फलस्वरूप आपने एकादशी अमावस्या पूर्णिमा को रात्रि भोजन एवं लिलोत्री का त्याग किया । आप के सुपुत्र मोहनलालजी ने सदा के लिए मांसाहार को छोड दिया । आप क्रोडपति होते हुए भी सरल निरभिमानी एवं धर्म के
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